■★हर घर में बच्चे खटते★■
कुटीर-उद्योग के नाँवे,
गाँव-शहर में बच्चें खटते यहाँ।
बड़े-बुड़ों से अधिक काम करते,
छुटभैये बच्चे यहाँ।।
बाल अपराध न्यायाधीश
मौज-मस्ती करते हैं यहाँ।
श्रम मंत्रि की कोठी पर
नाबालिक बच्चे खटते यहाँ।।
बच्चे बंधुआ मजदूर बन
दिन-रात काम करते यहाँ।
ठकुराईन स्लेट की जगह-
जूठे बर्तन थमाती यहाँ।।
अठारह पार करते हीं
बबुआजी की शादी करवाते यहाँ।
नाम की उठी गैरकानूनी जमिंदारी-
अभी चलती यहाँ।।
पोसाऊ पशुवत ऐसे बच्चे रहते,
अट्टालिकाओं में यहाँ।
चौका-बर्तन झाडू-पोछा-
सौतेली माँ करवाती है यहाँ।।
गरीबी है श्राप मगर अमीरों की
सरकारें रोज बदलती यहाँ।
जाये भाड़ में भविष्य बच्चों का-
मेहनती होते बच्चे यहाँ।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, पश्चिम चंपारण, बिहार