*इस संसार में मानव समाज को पुरुष प्रधान समाज कहा जाता है , परंतु विचार कीजिए कि परमात्म ब्रह्म ने इस सकल संसार की सृष्टि की वह भी माया के बिना अधूरा है क्योंकि माया के बिना सृष्टि का संचालन ही नहीं हो सकता | पुरुष एवं प्रकृति मिलकर के इस सृष्टि का निर्माण करते हैं उसी प्रकार पुरुष प्रधान समाज में नारी के बिना कुछ की सोचना दिवास्वप्न ही है | पुरुष को उत्पन्न करने वाली नारी इस सृष्टि का मूल है | जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत एक नारी पुरुष के उज्जवल भविष्य की कामना ही किया करती है | यदि यह कहा जाय कि नारी विभिन्न रूपों में आदिकाल से लेकर आज तक पुरुषवर्ग को शक्ति प्रदान करती रही है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | विभिन्न रूपों में पुरुषवर्ग के लिए नारी अनेक प्रकार के व्रत/उपवास किया करती है | इनमें से कुछ व्रत इतने कठिन होते हैं कि सबके बस की बात ही नहीं है | स्वयं को शक्तिमान समझने वाला पुरुष ऐसे व्रतों को सुनकर के ही कांप उठता है | सूर्योदय से लेकर अगले सूर्योदय तक निर्जल रहकर व्रत यदि कोई कर सकता है तो वह नारी ही है | इसी क्रम में सबसे कठिन व्रत यदि कोई है तो वह है "हरतालिका तीज" का व्रत , जिसे कजली तीज भी कहा जाता है | चौबीस घंटे बिना जल पिए पति के दीर्घायु एवं सुंदर जीवन की कामना नारियों के द्वारा करके पूजन किया जाता है | अखंड सौभाग्य की कामना मन में लेकर के आदि शक्ति मैया गौरी का पूजन करते हुए यथाशक्ति श्रृंगार की सामग्री ( सौभाग्य द्रव्य ) मैया पार्वती को नारियों के द्वारा अर्पित किया जाता है जिससे कि उनका सौभाग्य अखंड बना रहे | पुरुष प्रधान समाज का नारियों के प्रति उपेक्षित भाव देखते हुए भी , अनेक दंशों को सहन करने के बाद भी नारियाँ इस कठिन व्रत का पालन करती है | उनके इन व्रतो को देखकर पुरुष प्रधान समाज को भी उनके त्याग एवं तपस्या पर चिंतन मनन अवश्य करना चाहिए | जो पुरुष प्रधान समाज अपनी पत्नी के लिए कोई व्रत नहीं रखता वह पत्नियां अपने पति के द्वारा तिरस्कृत होने पर भी उन की मंगल कामना के लिए यदि ऐसे व्रत रखती हैं तो पुरुष वर्ग को इन कार्यों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए |*
*आज हरतालिका तीज के दिन सभी सुहागिनें अपने सुहाग की रक्षा के लिए , पति की लंबी आयु के लिए युगों से चले आ रहे इस व्रत के विधान का पालन करती है | अनेक उदाहरण तो ऐसे भी देखने को मिलते हैं कि जहां पति ने अपनी पत्नी का त्याग कर दिया है न्यायालय में उनका वाद भी चल रहा है परंतु फिर भी उन नारियों के द्वारा यह व्रत किया जा रहा है | पति भले ही मदिरापान करके नित्य अपनी पत्नी को दुर्बचन बोलते हुये उसके साथ दुर्व्यवहार करता है परंतु अपने पतिदेव के दुर्व्यवहार को भूल कर त्याग की मूर्ति नारियां हरतालिका तीज का व्रत पालन कर रही हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि हरतालिका तीज का व्रत विशेष रूप से उत्तर प्रदेश , बिहार एवं मध्य प्रदेश में "हरतालिका तीज" के नाम से जाना जाता है | वहीं कर्नाटक तमिलनाडु और राजस्थान में यह "गौरी हब्बा" के नाम से जाना जाता है | पुरुष वर्ग को विचार करना चाहिए कि यह नारियां जो कठिन से कठिन व्रत करती हैं वह आखिर किसके लिए ?? जहां नारियों के द्वारा पुरुष वर्ग की कुशलता के लिए इन कठिन व्रतों का पालन किया जाता है वहीं पुरुष वर्ग यदि नारियों के लिए कुछ नहीं कर पाता तो कम से कम उनका सम्मान तो करना ही चाहिए क्योंकि पुरुष का अस्तित्व नारी से ही है | जिस घर में नारी नहीं होती है वह घर भूतों का डेरा कहा जाता है , क्योंकि नारी ही लक्ष्मी रूप में घर को सजाती - संवारती है | ऐसी पूजनीय / वंदनीय नारी का तिरस्कार करके पुरुष कृतघ्नता का ही परिचय दे रहा है जिस घर में नारी का सम्मान नहीं होता है उस घर से लक्ष्मी सदैव के लिए रूठ कर चली जाती है | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने दांपत्य जीवन में अपनी पत्नी को बराबर का सम्मान अवश्य प्रदान करना चाहिए जिससे कि गृहस्थ जीवन प्रसन्नता पूर्वक व्यतीत होता रहे | ऐसे कठिन व्रत करने वाली नारियाँ अवश्य ही सम्मान की पात्र है |*
*पुरुष प्रधान समाज ने सदैव नारियों को तिरस्कृत किया है | जो कि उचित नहीं है | किसी भी वृक्ष की डालियां पत्ते एवं फूल भले ही कितने सुंदर क्यों ना हो परंतु उनका अस्तित्व उस वृक्ष की जड़ से ही होता है ,| जिस दिन जड़ कट जाती है उसी दिन वृक्ष का अस्तित्व समाप्त हो जाता है | मनुष्य समाज की जड़ नारी है इसलिए अपनी जड़ को सुरक्षित रखना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बनता है |*