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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
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*भगवत्प्रेमी सज्जनों ,*
*तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस अपने आप में अनेक गूढ़ार्थों को समेटे हुए आवश्यकता है इसकी सत्यता को जानने की | मानस ऐसा अथाह सागर है इसमें जितनी बार डुबकी लगाओगे उतने ही रत्न इसमें से प्राप्त होंगे | बाबा जी ने एक चोपाई लिखी जिस समय मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम , महामाया जानकी जी के लिए विलाप कर रहे हैं तो उन्होंने मनुष्यों से ही नहीं वरन पशु पक्षियों से भी उनका पता पूछा था | बाबा जी ने भाव दिया है |*
*हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी !*
*तुम देखी सीता मृगनैनी !!*
भगवान ने *पक्षियों से* पूछा *मृगों से* पूछा और *भंवरों से* पूछा |
विचार करने वाली बात यह है क्या हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम झूठ बोल सकते हैं या उनकी बात कभी असत्य हो सकती है ? इस पर एक भाव प्रकट करना चाहता हूं |
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने सर्वप्रथम कहा है *हे खग* अर्थात उन्होंने सबसे पहले *पक्षियों से* सीता का पता पूछा |
*भगवत्प्रेमी सज्जनों ,*
विचार कीजिएगा कि सीता का पता सबसे पहले *पक्षी* ने ही बताया | जब सीता की खोज करते हुए दोनों भाई आगे बढ़े तो उनको घायल अवस्था में *पक्षी* जटायु मिला और जटायु ने उनसे कहा :--
*लइ दक्षिन दिसि गयउ गोसाई !*
*विलपति अति कुररी की नाईं !!*
*हे खग* कहकर सबसे पहले *पक्षियों से* पूछा एक तो सबसे पहले बताया भी *पक्षी* (जटायु) ने |
अगला पता वह पूछते हैं *मृग* |
पशु को संस्कृत में *मृग* ही कहा जाता है | *पशु नाम मृग:* | दूसरा पता सीता जी का भगवान श्रीराम को *पशु* ने ही बताया और वह वानर वेष में वानर राज *सुग्रीव* थे , जिन्होंने कहा :--
*गगन पन्थ देखी मैं जाता !*
*परबस परी बहुत विलपाता !!*
उसके बाद भगवान पूछते हैं *मधुकर श्रेनी*
*मधुकर* कहा जाता है *भंवरे* को परंतु मानस में बाबा जी ने *मधुकर कहा है संत को* | बाबा जी इसका प्रमाण देते गुए लिखते हैं :---
*सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही !*
*मधुकर सरिस संत गुन ग्राही !!*
जब भगवान ने पूछा *मधुकर श्रेनी* *खग* ने बता दिया , *मृग* ने बता दिया अब *मधुकर श्रेनी* को सीता का पता बताना है | वह *मधुकर श्रेनी* लंका में हनुमान जी को मिला |
जिस प्रकार *भंवरा* हमेशा गुनगुन गुनगुन किया करता है उसी प्रकार *संत* भी हमेशा राम-राम किया करते हैं और राम राम करने वाला लंका में हनुमान जी को *विभीषण* के रूप में मिला , जिस ने स्पष्ट कर दिया कि सीता जी अशोक वाटिका में बैठी हैं | तब जाकर हनुमान जी को सीता जी का दर्शन हुआ |
कहने का तात्पर्य है कि भगवान ने जिस जिस से पूछा उसने भगवान की बात को अन्यथा ना लेते हुए उनको सीता जी का पता बताया |
*मानस का यह भाव अपनी ओर से समर्पित है !*
*मानस की चौपाइयों के भाव को लेकर कभी भी विवाद की स्थिति नहीं उत्पन्न होनी चाहिए क्योंकि मानस की एक चौपाई के अनंत भाव बाहर निकल कर आते हैं और सभी अपने आप में अकाट्य होते हैं |
*जय जय श्री सीताराम*🙏🙏
*सर्वे भवंतु सुखिनः*🚩🚩
*आचार्य अर्जुन तिवारी*
*प्रवक्ता*
*श्रीरामकथा/श्रीमद्भागवत*
*9935328830*
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