27 जुलाई 2021
जिंदगी प्यार का दूजा नाम,
साँस है बाकी कर पूरा अधुरा काम।
ज़िंदगी की अधुरी किताब,
अश्कों की अज़िबोगरीब दॉस्ता है।
मानो न मानो दोस्त,
यह जिंदगी मुकम्मल बेज़ुवाँ है।
उल्फ़त का यह है जनाजा,
बेवफ़ाई हीं इसका इन्तिहॉ है।
सिद्दतों का असर यक़िनन,
फ़रिस्ते गर चे हमपर मेहरवॉ है।
खुदगर्ज- जाहील इन्सान पे,
होती नहीं कुदरत मेहरवॉ है।
शातीर मिज़ाज का मालिक,
दोज़ख में भी जगह न है पाता।
ख़न्जर किया पार कलेजे के,
मज़हब का नाम है जब आता।
गरीबों का हक-हकूक़ खा-पचा,
अमीरजादा बन वह बड़ा कहलाता।
सिकन्दर से अकबर की सफ़र,
वह तय कभी भी नहीं कर है पाता।
सितारों की बात वह करता,
अपनी धरती को तो नाप नहीं पाता।
हज-तीर्थ-किताबों के पन्नों में,
मालीक को मंदीर में वह बिठाता।
खुद की नब्ज़-दिमाग़ का,
मुआयना नहीं वह कर पाता।
कवि शायर बन कर अधना,
सहज नेह में रम उसे पा जाता।
जिंदगी ओ' मौत का असर-
बंदों पर कभी हो नहीं पाता।
जिंदगी जीना सीख बंदे,
गिरतों का हाथ थामता
तो जन्नत पाता।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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