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🍃🍃सावन का झूला🍃🍃
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पिछला सावन बीता उदास-
इसबार भी उदास हीं जाएगा।
सत् त्याग तम् का संक्रमण
यह सावन भी सूना जाएगा।।
प्रदूषण कम कर हीं सावन
सुहाना फिर आ पायेगा।
बाढ़ से जलजला झूला
बगियन में कैसे लटकायेगा।।
रिम झिम फुआर सावन की
पुकार रहा साजन को।
अकेला देख इज़हार कर,
मना रूठे अपने प्यार को।।
दिन तरुणाई के भूला न देना,
झूले की याद झुरझुरी समाएगी।
तीसरी लहर आये नहीं बस-
बहार अबकी झूम के आएगी।।
अल्हड़पन बीत रहा-
पेंगें उँची उचक लचक लगायेगी।
यौवन फूट रहा लज्जा से पर,
मौर्डन स्विमिंग पूल जायेगी।।
अँगड़ाई यौवन की दलहीज पर
सिमट सिमट वधु जाएगी।
नटखटपन छूटा-
पिया घर छोड़ मयके से जाएगी।।
खुले आकाश में ऊँची उड़ान,
शौहरत बेशूमार मिल जाए।
अपनों को लम्हा लम्हा निहार,
गदगद हो सब इतरा जाएं।।
अपनों परायों को प्यार लुटा,
एक भी प्यासा रह नहीं पाए।
बादल बनी मन प्रेमसुधा,
हर साल सावन बरसाए।।
प्रेमसुधा से धरा धाम का,
परिप्लावन हो जाए।
अबकी सावन का झूला,
घर घर में धूम मचाए।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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