जिन्दगी तुम मुझे फिर से जीने की वज़ह दे रही हो
मैं इनाम का हकदार हु या फिर कोई सज़ा दे रही हो
मैंने ग़ज़ल लिखना जब से बन्द किया है
कोई नजम बन के तुम सदा दे रही हो
नया कुछ लिखू क्या , मेरे पास अल्फ़ाज़ नहीं बचे
ये जान कर भी शब्द नगरी तुम मुझे अवसर दे रही हो
मैं मोहबत का मरीज हु ज़्यादा नहीं जियूँगा
ये जान कर भी तुम दवा दे रही हो