ख़ुदा भी जब चाहे हमसे रूठ जाता है
और हमको मनाना भी कहा आता है
जब भी किसी से करते है मोहब्ब्त
दिल का आईना टूट जाता है
और हमको जोड़ना भी कहा आता है
फिर से उनकी बेरुखी हासिल है
बिना बात के हम पे सितम ग़ाफ़िल है
अब माफ़ी से कम तो क्या बात होगी
और हमको माफ़ी मांगना भी कहा आता है
रूख़ पे नक़ाब है , जैसे चाँद पे बादल है
दिल तो पहले से ही घायल है , पास आने का वो कर रहे इशारा है
और हमको परदा हटाना भी कहा आता है
वो तो महलो मे रहते है
मेरे नन्हे से दिल मे कैसे रहेंगे , आँखों मे जो रख लू तो
और हमको ख़्वाब सजाना भी कहा आता है
कशमश का ये अहसास हम पे भारी है
आँखों से बरसात जारी है , आज की रात हम पे भारी है
उनसे आज सामना तो होगा ,
और हमको अपने गम को छुपाना भी कहा आता है