प्यार कि बरसात शबनमी थी
कल रात बस तुम्हारी कमी थी
प्यार कि बरसात शबनमी थी
जिसमे भींग के भी हम प्यासे रहे
कहा गया आखिर वो बरसा हुआ पानी
जो देखा तो पाया कि आँखों मे नमी थी
कल रात बस तुम्हारी कमी थी
आखिर हम मे किस बात कि कमी थी
जो देखा तो पाया उनकी मोहबत मे कमी थी
रात भर तेरे ख़्वाबों के पलंग पे सो नहीं पाए
तेरी यादो ने आ आ के रात भर परेशान किया
करवटे बदलते रहे रात भर हम
सुबह तलक महसूस हुई तेरी कमी थी
प्यार की बरसात शबनमी थी
आज मौसम ए बहार मे नमी थी
छा गए फिर से बादल बरसात के
बारिश कि बुँदे ही अब कुछ कर गुजरे तो अच्छा
खिल जाए वो ग़ुलाब तुम्हारे लगाए हुए
खिला दे जो उनको , उस मिट्टी मे कहाँ इतनी नमी थी
टूटते रिश्ते कि कुछ बुँदे , मेरी आँखों से बह निकली थी
और मेरी कलम कि स्याही बनी ,
इस ग़ज़ल को तेरी नज़र करता हु
आखरी बार हमारी मोहबत कि कहानी लिखता हु
आज तो दर्द इतना गहरा निकला,
ग़ज़ल लिखी जिस कागज़ पे,
प्यार कि बरसात शबनमी थी
कल रात बस तुम्हारी कमी थी