जिन्दगी ने सताया मुझे इतना है कि
आँखों से लहू निकल आया है
मेरे ज़ख्मो का कोई हिसाब नहीं है
अपना हि कोई जब जुल्म करने पर उत्तर आया है
मै रात कि तन्हाईयो मे जाग रहा हु
जबकि दुनिया की आँखों मे ख़्वाब उत्तर आया है
मै लरजते होठो से सच कहता हु
मैंने कभी कोई गुनाह नहीं किया
फ़िर भी हर हाथ मे पत्थर निकल आया है
मुझको आज सलीब पर लटकाएगे वो
कह रहे थे मुहूर्त निकल आया है