जब मैंने अपनी सूरत देखी
आईना बिखर गया
काँच हाथो मे चुभा , चेहरा बिखर गया
तुमको पाने की जो दुआ मांग ली
मन्दिर के अन्दर पत्थर बिखर गया
मेरे गम पे ना जाओ यह तो मेरा मुकदर है
थी तमाम खुशियाँ लिखी हुई मेरे मुकदर मे
लेकिन विकास क्या करे नरगिस
मुझे खुशियाँ देने के वादे से , ख़ुदा मुकर गया
कांच हाथो मे चुभा , लहू जमीं पर बिखर गया
आ ही जाते है यू तो वो अक्सर छत पर
जाने आज की रात दिल का चाँद किधर गया
सुबह की धूप मे कोहरा है शामिल
इसलिए आज मुझको घर ही रहने दो
और फ़िर शाम तलक मुझको तन्हा करके
जवानी का एक और दिन गुजर गया
काँच हाथो मे चुभा , दवा लेने सारा शहर गया
विरान खण्डहर सी है मेरी जिन्दगी
कब आएगा कोई रूह तलक महकाने
या ये समझू रमन , जीवन ये बेकार गया