अब्र था - सब्र था - पानी मे खिलता गुलाब था
उसकी झील सी आंखों में मेरा ख्वाब था
नफा था - नुकसान था - मगर व्यापार बेहिसाब था
रोज का खर्चा निकलता इसी से जनाब था
बुखार था - जुखाम था - कोरोना का कहर था
चांद से चेहरे पर डर का नकाब था
क़ुर्फ़ था - फक्र था - उनकी महफ़िल में रोशनी थी
मेरे हिस्से अन्धेरा था - शायद यही मेरा नसीब था
दिल था - जज्बात थे - और वो रूप की रानी थी
बस मेरे हाथ मे उसके प्यार की रेखा खराब थी
सूरज था - आग थी - शोले थे - हवा में गरमी थी
बढ़ते तापमान के आगे मेरी तबियत खराब थी
झूठी तसल्ली का बोसा , रोज देता हूं दिल को अपने
जिसके लिए बेकरार है तू , वो किसी और का ख्वाब थी
फिर उसने जिद की कुल्फी खिलाने की उस गरीब से
महंगाई के कारण उसके - बटुए से तन्ख्वाह गायब थी