दिल को समझाने चला तो दिल नहीं माना
कोई अपना होकर नहीं माना तो कोई पराया होकर नहीं माना
प्यार उससे किया तो यह हाल किया
मुस्कुराती हुई जिन्दगी को रुला कर ही माना
जिन्दगी ने बददुआ दी मुझे ऐसी
जो भी मिला मुझे , मुझे जला कर ही माना
अपने पाँव मे काटे लेता हु उसकी राह के
वो जो मुझको लूट के ही माना
मुझको दवा देने का जब आया वक़्त "विकास "
मेरे जख्मो से वो खेल कर ही माना