टुटा टुटा है बदन
बुझा बुझा है मन
जबकि आज सुलझी हुई है
हर उलझन
कतरा कतरा करके बहता है
आँखों से समन्दर
फिर भी होठो पे ,
सजी हुई है मुस्कान
रूठा रूठा है साजन
तो , सूखा सूखा है सावन
कुछ तितलियाँ और भवरे करते है गुँजन
फिर भी तेरे बिन
सुना सुना है घर आँगन