मैं नादान था मोहब्त कर बैठा
वो समझदार था हमसे नफरत कर बैठा
हमने उनको हमेशा पलकों पे रखा
वो हमको नजरो से गिरा बैठा
हाथ उसका मेरे हाथ मे तो पहले भी नहीं था
ज्यूही फेरी उन्होंने नज़र ,
उनका हसीन ख्वाब आँखों मे टूट बैठा
मै अब कभी खुद को देखता हू
कभी उनका सितम देखता हू ,
आईना दिल का , उनके पत्थर से टूट बैठा
मेरा तो कोई मांझी भी नहीं , कोई साहिल भी नहीं
और कोई ख़ुदा भी नहीं
जो इक अपना था वो भी आज रूठ बैठा