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जीवन

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रूठना मनाना तो जीवन का दस्तूर है, वैसे हम तो बेकसूर हैं,मानो तो पास नहीं तो दूर हैं- #अतुलदूबेसूर्य

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*मानव जीवन विचित्रताओं से भरा पड़ा है ! अपने जीवन काल में मनुष्य अनेक प्रकार के अनुभव करता हुआ उसी के अनुसार क्रियाकलाप करता रहता है | मानव जीवन को संवारने में सकारात्मकता का जितना हाथ है उसे बिगाड़ने में नकारात्मकता उससे कहीं अधिक सहयोग करती है | इन्हीं नकारात्मकता का ही स्वरूप है संदेह या शंका | क

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*मानव जीवन बड़ा ही विचित्र है यहां समय-समय पर मनुष्य को सुख एवं दुख प्राप्त होते रहते हैं | किसी - किसी को ऐसा प्रतीत होता है कि जब से उसका जन्म हुआ तब से लेकर आज तक उसको दुख ही प्राप्त हुआ है ! ऐसा हो भी सकता है क्योंकि मनुष्य का इस संसार में यदि कोई सच्चा मित्र है तो वह दुख ही है क्योंकि यह दुख स

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श्री गुरु गोविन्द सिंह जी प्रकाश पर्व डॉ शोभा भारद्वाज पहले मरन कबूल कर जीवनदी छड़ आस श्री गुरु गोविंद सिंह जी का मूल मंत्र था यह तरक्की का मूल मंत्र हैउन्होंने वीरों की वीरता का आह्वान करते हुए निराश देश में ऐसी हुंकार भरी हर बाजूफड़क उठीचिड़ियाँ तो मैं बाज लड़ाऊँ ,सवा लख से एक लड़ाऊँ ,ताँ गोविन्दसिं

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वैक्सीनपर सियासत क्यों?डॉशोभा भारद्वाज ईरानमें चाय पीने का अलग ढंग है घर में हर वक्त चाय हाजिर रहती है .वहाँ की चाय औरकहवा खाने मशहूर हैं शाम को कहवा खानों में किस्सा गोई चलती है घरों में भी ठंड केदिनों में अलादीन मिट्टी के तेल का स्टॉप जलता रहता है घर भी गर्म करता है उस परउबलने के लिए पानी रख देते

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*मानव जीवन में मनुष्य एक क्षण भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता है क्योंकि यह सृष्टि ही कर्म प्रधान है | मनुष्य को जीवन में सफलता एवं असफलता प्राप्त होती रहती है जहां सफलता में लोग प्रसन्नता व्यक्त करते हैं वही असफलता मिलने पर दुखी हो जाया करते हैं और वह कार्य पुनः करने के लिए जल्दी तैयार नहीं होते | जी

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*सनातन धर्म में कर्मफल के सिद्धांत को शास्त्रों एवं समय समय पर ऋषियों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है | कर्म को तीन भागों में विभाजित किया गया गया है जिन्हें क्रियमाण , संचित एवं प्रारब्ध कहा जाता है |इन्हें समझने की आवश्यकता है | क्रियमाण कर्म तत्काल फल प्रदान करते हैं | ये प्राय: शारीरिक होते हैं

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*इस धरा धाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य अनेक प्रकार के भोग भोगता हुआ पूर्ण आनंद की प्राप्ति करना चाहता है | मनुष्य को पूर्ण आनंद तभी प्राप्त हो सकता है जब उसका तन एवं मन दोनों ही स्वस्थ हों | मनुष्य इस धरा धाम पर आने के बाद अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाता है तब वह उसकी चिकित्सा किसी चिकित्सक स

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*मानव जीवन में सामाजिकता , भौतिकता एवं वैज्ञानिकता के विषय में अध्ययन करना जितना महत्वपूर्ण है , उससे कहीं महत्वपूर्ण है स्वाध्याय करना | नियमित स्वाध्याय जीवन की दिशा एवं दशा निर्धारित करते हुए मनुष्य को सद्मार्ग पर अग्रसारित करता है | स्वाध्याय का अर्थ है :- स्वयं क

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*मानव जीवन अत्यनेत दुर्लभ है , इस सुंदर शरीर तो पाकरके मनुष्य के लिए कुछ भी करना असम्भव नहीं है | किसी भी कार्य में सफलता का सफल सूत्र है निरंतर अभ्यास | प्राय: लोग शिकायत करते हैं कि मन तो बहुत होता है कि सतसंग करें , सदाचरण करें परंतु मन उचट जाता है | ऐसे लोगों को स

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*मानव जीवन बड़ा ही रहस्यमय है | इस जीवन में दो चीजे मनुष्य को प्रभावित करती हैं पहला स्वार्थ और दूसरा परमार्थ | जहाँ स्वार्थ का मतलब हुआ स्व + अर्थ अर्थात स्वयं का हित , वहीं परमार्थ का मतलब हुआ परम + अर्थ अर्थात परमअर्थ | परमअर्थ के विषय में हमारे मनीषी बताते हैं कि जो आत्मा के हितार्थ , आत्मा के आ

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*ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की , अनेकों प्रकार के जीव उत्पन्न किये | इन्हीं जीवों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को प्रकट किया | सृष्टि के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है , मानव जीवन पाकर के मनुष्य में सद्गुण का आरोपण करने के उद्देश्य ईश्वर ने अपना ही एक स्वरूप बनाकर स्वयं के प्रतिनिधि के रूप में इस धरा धाम पर

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*ईश्वर द्वारा बनाई हुई यह सृष्टि बहुत ही रहस्यमय है | इस रहस्यमय सृष्टि में अनेकों अनसुलझे प्रश्न मनुष्य को परेशान करते रहते हैं , इन सभी प्रश्नों का उत्तर तो वह किसी न किसी ढंग से ढूंढ लेता है परंतु सबसे जटिल प्रश्न यह है कि "मैं कौन हूँ ?" मनुष्य आज तक यह स्वयं नहीं जान पाया कि "मैं कौन हूँ ?" किस

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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इसे पा करके सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है | किसी भी इच्छित फल को प्राप्त करने के लिए श्रद्धा एवं विश्वास होना आवश्यक है इससे कहीं अधिक किसी भी कार्य में सफल होने के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है | यदि मनुष्य का आत्मविश्वास प्रबल होता है तो उसे एक ना एक दिन सफलता

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जीवन की अबुझ पहेली✒️जीवन की अबुझ पहेलीहल करने में खोया हूँ,प्रतिक्षण शत-सहस जनम कीपीड़ा ख़ुद ही बोया हूँ।हर साँस व्यथा की गाथाधूमिल स्वप्नों की थाती,अपने ही सुख की शूलीअंतर में धँसती जाती।बोझिल जीवन की रातेंदिन की निर्मम सी पीड़ा,निष्ठुर विकराल वेदनासंसृति परचम की बीड़ा।संधान किये पुष्पों केमैं तुमको पु

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*इस धरा धाम पर मनुष्य के साथ जुड़ी है मानवता एवं मानवीय गरिमा | साधारण जीवन से उठते हुए मानवीय गरिमा का पालन करके मानवता को अपनाने वाले ही महापुरुष कहे गए है | एक साधारण नागरिक का कर्तव्य मात्र अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने तक होता है | दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण न करना साधारण नागरिक का कर

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*सुंदर सृष्टि का निर्माण करके परमात्मा चौरासी लाख योनियों के मध्य मनुष्य को अनगिनत विभूतियों एवं अनन्त संपदाओं से सुसज्जित करके इस धरा धाम पर भेजा है | सही एवं गलत का निर्णय करने के लिए उसमें विवेक नामक शक्ति आरोपित कर दी है | सही समय पर उठाए गए सही कदम जीवन की सही दि

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गीत ******** जीवन उलझा मेरा दौलत को कमाने में।हम भूल गए घर को कुछ वक्त बिताने में।सब छूट गए अपने बस याद बसी मन में।हूँ आज दुखी फिर भी रहता खुश जीवन में।परदेश बसे आकर घरद्वार छुटा अपना।है आज दुखित माता सूना ममता अँगना।हूँ आज नही सुख में अवशोष जमाने में।जीवन उलझा मेरा दौलत को कमाने में।बस च

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*इस सृष्टि का निर्माण प्रकृति से हुआ है | प्रकृति में मुख्य रूप से पंचतत्व एवं उसके अनेकों अंग विद्यमान है जिसके कारण इस सृष्टि में जीवन संभव हुआ है | इसी सृष्टि में अनेक जीवो के मध्य मनुष्य का जन्म हुआ अन्य सभी प्राणियों के अपेक्षा सुख-दुख की अ

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हम सबने मानव जीवन पाया कुछ अच्छा कर दिखलाने को सब धर्म एक है ,एक ही शिक्षा फिर हम सब हैं इतने बेगाने क्यों जो दूसरों का है दुःख समझते दुःख रहता उनके पास नहीं औरों को हंसाने वाले रहते कभी उदास नहीं आचरण हमारा ही हम सबको हर ऊँचाई तक पहुंचाता है अगर यह दुराचरण बन जाये तो गर्त तक ले जाता है कष्ट उठाने स

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