वैक्सीन
पर सियासत क्यों?
डॉ
शोभा भारद्वाज
ईरान
में चाय पीने का अलग ढंग है घर में हर वक्त चाय हाजिर रहती है .वहाँ की चाय और
कहवा खाने मशहूर हैं शाम को कहवा खानों में किस्सा गोई चलती है घरों में भी ठंड के
दिनों में अलादीन मिट्टी के तेल का स्टॉप जलता रहता है घर भी गर्म करता है उस पर
उबलने के लिए पानी रख देते हैं पानी के ऊपर छोटी केतली में चाय भाफ से उबलती है
धनवान घरों में समोवर में पानी उबलता रहता है ऊपर ढक्कन खोल कर उड़ती भाफ पर छोटी
केतली में चाय उबलने के लिए रख देते है . चाय हर वक्त हाजिर छोटे कांच के गिलासों
को पहले गुनगुने से धोते हैं .गिलास में पहले गर्म पानी डालते हैं फिर चाय से
गिलासों को भर देते हैं .यहाँ पहले चाय किशमिश या खजूर के साथ पीने का रिवाज था
किशमिश या खजूर का टुकडा मुहँ में रख कर
चाय की चुस्किया लेते थे. वहाँ लोग एक किस्सा सुनाते थे फिरंगी अर्थात इंग्लैंड ने
ईरानियों के लिए कंद बनाये हमारे यहाँ चीनी के क्यूब चलते हैं. चीनी को जमा कर
लगभग 18 इंच ऊँचा लम्बा गोल आकार का कंद मिलता है इसे महिलाएं सरोते से छोटे –
छोटे टुकड़े काट कर कांच के खूबसूरत बड़े कटोरे में सजा कर रखती हैं चाय के साथ कंद
,ईरानी चाय पीने का तरीका अलग हैं बिना दूध की उबलती चाय में कंद को डुबोकर
दांत से जरा सा काट कर ऊपर से चाय का घूंट भरते हैं हमें हैरानी होती थी चाय में
चीनी क्यों नहीं मिलाते वहाँ एक किस्सा प्रचलित है फिरंगियों ने कंद बनवा कर ईरान में
सप्लाई किया ,समझाया इससे चाय स्वादिष्ट लगेगी लेकिन मौलाना ने फतवा दिया यह जमा
चीनी का कंद फिरंगियों का बनाया है हमारे लिए हराम है फिरंगी सौदागरों ने न जाने कैसे
मौलाना को समझया उन्होंने फिर से फतवा दिया कंद के छोटे टुकड़े को चाय के पानी में
डुबो कर हमाम कराओ तब इसका इस्तेमाल कर सकते हैं तब से कंद का कोना चाय में डुबोकर
चाय की चुस्कियां लेते हैं.
हमारे यहाँ भी मौलाना फतवा देते हैं यह उनकी राय
मानी जाती हैं . मुझे यह किस्सा तब याद आया जब रजा एकेडमी के फाउंडर मौलाना सैयद नूरी ने कोरोना वैक्सीन के खिलाफ मोर्चा
खोलते हुए इल्जाम लगाया वैक्सीन में सुअर की चर्बी का जिलेटिन इस्तेमाल हो रहा है. उनके अनुसार ख़ास कर
चीन जैसे देशों की कंपनियां, वैक्सीन में सूअरों और गायों से निकाली गई सामग्री का उपयोग कर रहीं हैं, ताकि इसे अधिक टिकाऊ
बनाया जा सके. हम रजा एकेडमी, दुनिया में विकसित होने वाली वैक्सीन की एक विस्तृत लिस्ट की मांग की ताकि लोग ये निर्णय ले सकें उन्हें कौन सी
वैक्सीन का उपयोग करना चाहिए .
चैनलों
में इस पर बहस शुरू हो गयी बुद्धिजीवियों ने वेक्सीन को जीवन रक्षक माना अपने समाज
के हित में मौलाना ने अबाउट टर्न करते हुए भारत में बनी दोनों कोरोना वैक्सीन को
अपनी स्वीकृति दे दी उन्हें स्वदेशी वैक्सीन से कोई एतराज नहीं है.
इस्लामिक स्कॉलर शम्सी इलयासी ने इस विवाद पर
कहा है कि दवा के बारे में किसी प्रकार की सियासत नहीं करनी चाहिए.
लेकिन उनका
क्या करें जो वेक्सीन पर राजनीति कर रहे हैं अखिलेश यादव ने इसे भाजपाई वैक्सीन का
नाम दे दिया कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं ने भी वैक्सीन पर एतराज जताया एक नये नेता नें अपनी राजनीति चमकाने के लिए इसे
नपुंसक कर देने वाली वैक्सीन बताया .राशिद अल्वी कभी अटपटे बयान नहीं देते उन्होंने
भी अपने बयान में कहा बीजेपी विपक्ष पर टीके का गलत इस्तेमाल कर सकती है
हास्यास्पद है .यह लोग तो चोरी छिपे या विदेशों में जाकर वैक्सीन लगवा लेंगे आम
लोगों का क्या होगा ?
विश्व में
महामारी का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन वैज्ञानिक वायरस एवं बैक्टीरिया के द्वारा
फैलने वाली बीमारियों का निदान ढूंढते रहते हैं सबसे पहले 1796 में ब्रिटिश डाक्टर
एडवर्ड जेनर ने स्मौलपाक्स की बीमारी से लड़ने के लिए वैक्सीन तैयार कर विश्व को
रोगों से संघर्ष करने की राह दिखाई थी .अब वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी से लड़ने
के लिए वैक्सीन ईजाद की केवल राजनेता ही नहीं बिजनेस की दुनिया में भी एक दूसरे के
वैक्सीन पर प्रश्न उठा रहे हैं हमें गर्व होना चाहिये हमारे देश का अपना वैक्सीन
देश वासियों को लगेगा .भारत ने कोरोना के खिलाफ जंग भी मजबूती से लड़ी हम उस दौर से
नहीं गुजरे जिससे विकसित देश गुजरे हैं .