
*इस संसार में भक्तजन सदैव से निर्गुण निराकार एवं सगुण साका की आराधना करते आये हैं | कोई निराकार ब्रह्म की पूजा करता है तो कोई साकार की | साकार को जाने बिना निराकार को नहीं जाना जा सकता है | जो प्रेम , भाव एवं लीला का अनुभव सगुण साकार में हो सकता है वह निर्गुण निराकार में शायद ही हो पाये | कुछ लोग कहा करते हैं कि साकार की पूजा करने की अपेक्षा निराकार की पूजा करना अत्युत्तम है परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि साकार की पूजा करके ही निर्गुण निराकार को जाना जा सकता है | स्वयं भगवान श्रीराम ने अपनी बाललीला में यह बताने का प्रयास किया है | एक बार माता कौशल्या ने बालक राम को स्नान कराके पलना में पौढ़ा दिया अपने इष्टदेव की पूजा के लिए स्नान किया और "करि पूजा नैवेद्य चढ़ावा" विचार कीजिए कि जो निर्गुण निराकार से सगुण साकार बनकर कौशल्या जी की गोद में आये हैं उनको कौशल्या जी चाहती हैं कि वे सो जायं और जो ब्रह्म मूर्ति में वह नैवेद्य ग्रहण करें | परंतु क्या हुआ ? वही बालक राम जाकर नैवेद्य ग्रहण करने लगे | यह मात्र कौशल्या जी का ही व्यवहार नहीं अपितु सम्पूर्ण संसार यही व्यवहार कर रहा है | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में साक्षात ब्रह्म आस पास ही होते हैं परंतु मनुष्य उनको ढूंढ़ने पीजा करने के लिए इधर उधर भटका करता है | प्रत्येक मनुष्य की आत्मा में ही परमात्मा का निवास है परंतु मनुष्य अपनी आत्मा में परमात्मा का दर्शन नहीं पाता | इसी भाव को हृदय में रखकर हमारे मनीषियों ने "नर सेवा नारायण सेवा" का उद्घोष किया था परंतु आज हम उस उद्घोष के विपरीत कर्म कर रहे हैं | हमें अपने पुराणों में वर्णित कथाओं के माध्य से यह शिक्षा लेनी चाहिए कि ईश्वर निराकार रूप में कण कण में समाहित है और वही ईश्वर साकार रूप धारण करके हमारे आसपास किसी न किसी रूप में घूमा करते हैं परंतु हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं क्योंकि हम तो उन्हें मन्दिरों एवं मूर्तियों में ढूंढ़ा करते हैं और जीवन भर हमारी यह खोज समाप्त नहीं हो पाती |*
*आज मनुष्य आधुनिकता एवं भोतिकता में इस प्रकार व्यस्त हो गया है कि उसे सगुण साकार रूप में ब्रह्म के दर्शन ही नहीं हो पा रहा है | जो कार्य माता कौशल्या ने किया था आज वही प्रत्येक मनुष्य कर रहा है | जिस प्रकार साकार रूप में कौशल्या जी पास श्री राम जी थे परंतु वे उनको सुलाकर भगवान के विग्रह को भोग लगा रही थीं "करि पूजा नैवेद्य चढ़ावा" उसी प्रकार हम भी व्यवहार जगत में कर रहे हैं | कुछ लोग प्रश्न यह भी कर सकते हैं कि माता कौशल्या जी के पास तो सगुण साकार रूप में भगवान श्रीराम थे परंतु हम साकार रूप में उनको कहाँ से प्राप्त करें ! ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि प्रत्येक व्यक्ति के पास सगुण साकार परमात्मा माता - पिता एवं गुरु के रूप में उपस्थित हैं | परंतु साक्षात साकार ब्रह्म (माता पिता गुरु) की उपेक्षा करके मनुष्य भगवान को भाँति भाँति के नैवेद्य अर्पित करने का प्रयास कर रहा है | भगवान श्री राम यही शिक्षा प्रदान करते हैं कि हे मैया ! विचार करो भोग की आवश्यकता किसको है | आप मुझे पलने में सुलाकर विग्रह रूप में मुझे नैवेद्र अर्पण करना चाह रही हैं ? आज यही पूरे समाज में देखने को मिल रहा है कि लोग बड़े - बड़े मन्दिरों में जाकर छप्पन भोग विग्रह को अर्पित तो करते हैं परंतु उनके ही घर में उनके माता पिता उन्ही की उपेक्षा का दंश झेलते रहते हैं तो भला भगवान की वह विग्रह छप्पन भोग कैसे स्वीकार कर सकती है | यदि निर्गुण की पूजा करनी है तो पहले सगुण की पूजा करनी होगी | बिना सगुण की पूजा किये निर्गुण को न तो जाना जा सकता है और नही प्राप्त किया जा सकता है | मानस की एक एक चौपाई में गूढ़ रहस्य छुपा है आवश्यकता है उसको समझकर हृदयंगम करने की |*
*माता पिता साक्षात ईश्वर हैं उनका अनादर करके किसी भी देवी देवता की पूजा कभी भी सफल नहीं हो सकती | यदि परमात्मा को पाना है तो माता पिता में ही उनको प्राप्त करने का प्रयास किया जाय |*