*इस धराधाम पर परमात्मा ने चौरासी लाख योनियों का सृजन किया | इन सभी में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बना तो उसका एक प्रमुख कारण यह था कि परमात्मा ने मनुष्य को सोंचने - समझने की शक्ति दे दी | अन्य जीव जहां मात्र अपने लिए जीवन जीते हैं वही मनुष्य के अपने परिवार , समाज एवं राष्ट्र के प्रति कुछ कर्तव्य है , अपने कर्तव्यों का पालन करने के कारण ही मनुष्य महान मना | मनुष्य का सबसे बड़ा कर्तव्य मानवता के प्रति होता है | एक मनुष्य का परिवार के प्रति , समाज के प्रति एवं राष्ट्र के प्रति कुछ कर्तव्य होते हैं और अपनी इन कर्तव्यों का पालन मनुष्य आदिकाल से करता चला आ रहा है | अन्य जीवो की अपेक्षा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है एक दूसरे के साथ व्यवहार एवं संपर्क करके मनुष्य आगे बढ़ा , आपसी सामंजस्य / सहयोग की भावना ही मनुष्य को अन्य प्राणियों से पृथक करती हैं | आज मनुष्य यदि इतनी प्रगति कर पाया है तो उसका कारण एक ही है कि प्रारंभ से ही मनुष्य एक दूसरे को अपना ज्ञान , अपना अनुभव एवं अपना व्यवहार साझा करता रहा है | ईश्वर की व्यवस्था ऐसी है कि मनुष्य अकेले कुछ नहीं कर सकता है | आदिकाल से ही मनुष्य ने ईश्वर का सर्वत्र दर्शन किया है | मनुष्य ने यह अनुभव किया वह केवल शरीर नहीं बल्कि उससे भी अलग कुछ है जो शरीर को चलायमान रखता है और तब हमारे पुरुषों ने उसे आत्मा का नाम दिया | आत्मा के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध भी मनुष्य को हुआ | पूर्व काल से जिस प्रकार मनुष्य ने एक दूसरे के सहयोग के माध्यम से विकास किया उसका कारण था कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का बोध था | मानव जीवन मैं मनुष्य के कर्तव्यों को चार भागों में विभाजित किया गया है | प्रथम तो अपने प्रति कर्तव्य , द्वितीय परिवार के प्रति कर्तव्य , तीसरे भाग में समाज के प्रति कर्तव्य का पालन था तो शेष बचे जीवन में आत्मा के प्रति , मानवता के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने की शिक्षा दी गई थी | हमारी प्राचीन काल से प्रार्थना रही है :-- "सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया: ! सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चित् दु:ख भाग् भवेत् !!" यह मात्र प्रार्थना नहीं अपितु मानवमात्र का कर्तव्य है कि वह इसके लिए निरंतर प्रयत्नशील रहे |*
*आज मनुष्य ने बहुत विकास कर लिया और निरन्तर विकासपथ पर दौड़ भी रहा है परन्तु इतना विकास कर लेने के बाद भी मनुष्य का जैसे कुछ खो सा गया है , उसके भीतर एक खोखलापन दिखाई पड़ता है तो इसका यही कारण है कि मनुष्य अपने कर्तव्यों से विमुख होकर अनेक क्रियाकलाप कर रहा है | संपूर्ण सृष्टि में विवेकवान होने का गौरव प्राप्त करने वाले मनुष्य आज अपने विवेक का प्रयोग ना करके कुछ विशेष व्यक्तियों की बात सुनकर के उनकी इशारे से अनेक कृत्य कर रहे हैं जिससे समाज , राष्ट्र की क्षति तो हो ही रही है साथ ही ऐसा करने वालों का भी विकास बाधित हो रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही कहना चाहूंगा कि प्रत्येक व्यक्ति को यह विचार अवश्य करना चाहिए कि उनके द्वारा किए जा रहे कृत्यों से मानवता का ह्रास तो नहीं हो रहा है | वे मानवता के प्रति अन्याय तो नहीं कर रहे हैं | हमें यह समझना होगा कि हमारा कर्तव्य अपने परिवार , समाज एवं राष्ट्र के प्रति भी है | कुछ लोग जो मात्र अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं उन्हें हमारी तरफ से हमारे कर्तव्यों से कोई लगाव नहीं है | हमें ढाल बनाकर के कुछ राजनीतिक दल अपनी राजनैतिक रोटियां सेक रहे हैं | हमें अपने कर्तव्य विमुख करने में यदि इनका हाथ है तो दोषी हम भी हैं जो अपनी कर्तव्यों को भूल कर के किसी के इशारे मात्र से कोई भी कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं | हमें यह समझना होगा कि मनुष्य का सबसे बड़ा कर्तव्य मानवता के प्रति है | जिस दिन मनुष्य अपने कर्तव्यों का आभास करके उसका पालन करने लगेगा उस दिन पुनः इस धरती पर स्वर्ग की संकल्पना पूर्ण की जा सकती है | मनुष्य मात्र इतना विचार कर ले उसका उसके परिवार , समाज एवं राष्ट्र के प्रति क्या कर्तव्य है तो समझ लो कि मनुष्य मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह आसानी से कर लेगा और जिसे अपने कर्तव्यों का भान नहीं वह दूसरों के इशारे पर जीवन भर नाचा करता है और जीवन में समय-समय पर तकलीफ भोगा करता है , इसलिए आवश्यक है अपने जीवन को सार्थक करने के लिए अपने कर्तव्य को ज्ञान अवश्य प्राप्त करें |*
*प्रत्येक मनुष्य बुद्धिमान है किसी के कुछ कहने पर उस विषय में अपनी बुद्धि का प्रयोग करके तब यह निर्णय करना चाहिए कि हम जो कर रहे हैं वह मानवता के विरुद्ध तो नहीं है |*