*मनुष्य अपने संपूर्ण जीवन काल में अपने कर्मों एवं क्रियाकलापों के माध्यम से महान एवं पतित बनता है | जिसने जीवन के रहस्य को जान लिया अपने जीवन को उच्चता की ओर ले कर चल पड़ता है और जिसने जीवन को नहीं समझा , उसके महत्व को नहीं जाना वह प्रतिदिन नीचे की ओर गिरता हुआ पतित हो जाता है | मनुष्य के जीवन में , जीवन में विचारों का बहुत बड़ा महत्व है , विचारों की शक्ति की कोई सीमा नहीं होती है | विचारों का यह महत्व है कि मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है क्योंकि मनुष्य के विचारों के अनुसार ही कर्म होने लगते हैं और मनुष्य उसी प्रकार बनता चला जाता है | विचारों का प्रभाव मनुष्य को तत्समय तो नहीं समझ में आता है परंतु कुछ समय बाद उसका प्रभाव जीवन पर झलकने लगता है | कई लोग अपने विचार बिना सोचे समझे प्रस्तुत कर देते हैं परंतु उनका विचार नकारात्मकता की श्रेणी में चला जाता है | बार-बार नकारात्मक विचार प्रस्तुत करने पर मनुष्य भी नकारात्मक होता चला जाता है और नकारात्मक व्यक्तित्व दिन प्रतिदिन खंडित होता रहता है | हमारे शास्त्रों ने मनुष्य के विचारों को ही कर्म के बीजों की संज्ञा दी है , यही विचार मनुष्य के व्यवहार के प्रेरक भी होते हैं | मन के विषय में बताया गया है कि मन नाम की कोई वस्तु मुख्य रूप से नहीं है बल्कि जिसे मन कहा जाता है वह विचारों का प्रवाह मात्र है | यदि मनुष्य के विचार अच्छे एवं सकारात्मक होते हैं तो उसका जीवन आशा एवं विश्वास से परिपूर्ण हो जाता है वहीं यदि मन में नकारात्मक विचार भरे हुए हैं तो जीवन हर क्षण आक्रांत रहेगा और मनुष्य को कहीं भी शांति नहीं मिलेगी | जिस प्रकार किसी गंदे पानी की गंदगी को साफ कर देने से वह जल स्वच्छ हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य यदि अपने नकारात्मक विचारों को अपने हृदय से निकाल दे तो उसका जीवन भी स्वत: शुद्ध एवं निर्मल हो जाएगा | यह साधारण सी बात है कि जब मनुष्य की प्रतिक्रिया उचित एवं सकारात्मक रहती है तो वह प्रसन्न रहता है वहीं दूसरी ओर यदि उसका मस्तिष्क किसी नकारात्मक विचारों से भरा हुआ होता है तो उसे सारी सुख सुविधाएं भी अच्छी नहीं लगती है | शायद इसीलिए मानव जीवन में विचारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है |*
*आज समाज में चारों और तरह-तरह के अपराध देखने को मिल रहे हैं इसका मुख्य कारण मनुष्य के विचार ही हैं | अपने विचारों के वशीभूत होकर के मनुष्य अनेक ऐसे कृत्य भी कर रहा है जो कि समाज के लिए नकारात्मक संदेश देते हैं | अपने परिवार के प्रति , समाज के प्रति एवं राष्ट्र के प्रति आपके मन में जैसे विचार , जैसी भावना होगी उसी प्रकार की टिप्पणी भी मनुष्य के मुख से बाहर निकलती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में चारों ओर फैले हुए व्यभिचार एवं उपद्रव की घटनाओं को देखते हुए यह कह सकता हूं कि आज मनुष्यों का विचार निम्न स्तर का हो गया है | किसी के भी विषय में किसी भी प्रकार की टिप्पणी कर देना आज साधारण सी बात हो गई है | आज मनुष्य की स्थिति यह है कि दिन भर तो वह एक दूसरे की निंदा , चुगली एवं अनेक प्रकार के व्यर्थ के प्रपंचों में उलझा रहता है , जाने-अनजाने पाप कर्म करता रहता है और सायंकाल को सत्संग में बैठकर ध्यान लगाकर सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है तो यह भला कैसे संभव है | मनुष्य को अपने जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए , मनवांछित परिणाम पाने के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम अपने विचारों को संयमित करें | जब मनुष्य अपने विचारों को सकारात्मक एवं श्रेष्ठता का संवाहक बना लेगा तभी वह अपने जीवन में सब कुछ प्राप्त करने के योग्य बन पाएगा , परंतु आज का मनुष्य दिन भर टेलीविजन , मोबाइल और सोशल मीडिया के माध्यम से अनेक अवांछनीय कार्यक्रम देखता रहता है जिसके परिणामस्वरूप उसी प्रकार के विचार उसके मन में प्रवेश भी होते रहते हैं तो ऐसे में अच्छे विचारों की आशा करना भी मूर्खता ही होगी | अच्छे विचारों का समावेश अपने मस्तिष्क में करने के लिए सर्वप्रथम परिवेश को शुद्ध एवं सकारात्मक बनाने की आवश्यकता होती है |*
*मनुष्य को जैसा परिवार , संस्कार एवं परिवेश प्राप्त होता है उसके विचार उसी अनुरूप ढलने लगते हैं इसलिए प्राथमिक आवश्यकता है कि परिवार के संस्कार को संवारा जाय जिससे अनावश्यक विचार मस्तिष्क में प्रवेश न करने पायें |*