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कविता

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कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियआज बैठकर सोचा मैनेक्या खोया क्या पाया हैएक चीज़ जो साथ रहीवो तो बस माँ का साया है||आज मुझे हा याद नहीअपने बचपन की बातेमाँ ने क्या-२ कष्ट झेलेतब मिली मुझे ये काया है||संसार मे जब मैने जन्म लियाना जाने कितना रोया थापर सारी दुनिया को भूलमाँ के आचल मे निडर हो सोया था||मुझे ठीक से

जख्म गहरा था मगर, हमने दिखाया ही नहीउसने पूछा नही, हमने बताया ही नही||कुछ ना समझे वो अगर, इसमे खता मेरी कहाँहाल ए दिल हमने कभी उनसे छिपाया ही नही||मेरी निगाहें है निगेहबान अभी तक उनकीजाने वाला तो कभी लौट कर आया ही नही||याद तन्हाई मैं जब भी तेरी आयी हमकोकैसे कह दूँ क़ि कभी अश्क बहाया ही नही||तेरी दुन

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियवक़्त को क्यो फक़्त इतना गवारा ना थाजिसको भी अपना समझा, हमारा ना था||सोचा की तुम्हे देखकर आज ठहर जाएना चाह कर भी भटका पर, आवारा ना था||धार ने बहा कर हमे परदेश लाके छोड़ाजिसे मंज़िल कह सके ऐसा, किनारा ना था||दुआए देती थी झोली भरने की जो बुढ़ियाखुद उसकी झोली मे कोई, सितारा ना था

रोटी की सही कीमत जानता है ,भूख से बिलबिलाता बदहाल बेसहारा बच्चा ,ढूंढ रहा है जो होटल के पास पड़ी झूठन में रोटी के चन्द टुकड़े,जिन्हें खाकर बुझा सके वो अपने उदर की आग को ,जिसकी तपन से झुलस रहा है उसका कोमल, कुपोषित ,कमजोर बदन |झपट पड़ा था जो फैंकी गयी झूठन पर उस कुते से प

आफिस का अंतिम दिन था, छोड़ना था शहर बस यही सोचता हूँ, कि कैसा होगा सफ़र... उम्मीदे थी बहुत सारी, निकलना था दूरसुबह से ही जाने क्यो, छाया था सुरूरबैठे-२ हो गयी देखो सुबह से सहर            कैसा होगा सफ़र......शाम कल की थी, तब से थे तैयारसाथ सब ले लिया, जिस पर था अधिकारचल दिए अकेले ही पर नयी थी डगर   

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियतेरे शहर मे मैने गुज़ारी थी एक जिंदगीपर कैसे कह दूं हमारी थी एक जिंदगी ||जमाने से जहाँ मेने कई जंग जीत लीवही मोहब्बत से हारी थी एक जिंदगी ||मुझको ना मिली वो मेरा कभी ना थीतुमने जो ठुकराई तुम्हारी थी जिंदगी ||महल ऊँचा पर आंशु किसी के फर्स परतब मुझको ना गवारी थी एक जिंदगी ||कलम

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजिंदगी के उस मोड़ पर(यह कविता एक प्रेमी और प्रेमिका के विचारो की अभिव्यक्ति करती है जो आज एक दूसरे से बुढ़ापे मे मिलते है ३० साल के लंबे अरसे बाद)जिंदगी के उस मोड़ पर आकर मिली हो तुमकी अब मिल भी जाओ तो मिलने का गम होगा|माना मेरा जीवन एक प्यार का सागरकितना भी निकालो कहा इससे कु

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजो भी आए पास           सब दूर हो गयेतोड़ा हुए बदनाम           तो मशहूर हो गये||कल तक जो दूसरो से          माँगकर के जिंदा थेजीता चुनाव आज जो          वो हुजूर हो गये||हम भी तो कल तक          दफ़न थे चन्द पन्नो मेबाजार मे बिके जो          सबको मंजूर हो गये||पहाड़ो से टकराकर के 

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घरकैसी होगी ज़मीन, वो कैसा होगा शहरहाथो मे हाथ रहे, तू हरदम साथ रहेकुछ मै तुझसे कहूँ, कुछ तू मुझसे कहेमै सब कुछ सहुं, तू कुछ ना सहेसुबह शुरू तुझसे, ख़त्म हो तुझपे सहरजहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ...कुछ तुम चलोगी, तो कुछ मै चलूँगाकभी तुम थकोग

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियअब इन राहो पर सफ़र आसान लगता हैजो गुमनाम है कही वही पहचान लगता है||जिस शहर मे तुम्हारे साथ उम्रे गुज़ारी थीकुछ दिन से मुझको ये अनजान लगता है||कपड़ो से दूर से उसकी अमीरी झलकती हैमगर चेहरे से वो भी बड़ा परेशान लगता है||मुझको देख कर भी तू अनदेखा मत करतेरा मुस्करा देना भी अब एहसान

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजैसी हो वैसी चली आओअब शृंगार रहने दो|अगर  माँग हे सीधीया फिर जुल्फे है उल्झीना करो जतन इतनासमय जाए लगे सुलझीदौड़ी चली आओ तुम,ज़ुल्फो को बिखरा रहने दोजैसी हो वैसी चली आओअब शृंगार रहने दो|कुछ सोई नही तुमआधी जागी चली आओसुनकर मेरी आवाज़ऐसे भागी चली आओजल्दी मे अगर छूटे कोई गहना,या

वो शायर था, वो दीवाना था, दीवाने की बातें क्यूँकवि:- शिवदत्त श्रोत्रियमस्ती का तन झूम रहा, मस्ती मे मन घूम रहामस्त हवा है मस्त है मौसम, मस्ताने की बाते क्योइश्क किया है तूने मुझसे, किया कोई व्यापार नहीसब कुछ खोना तुमको पाना, डर जाने की बाते क्योबड़ी दूर से आया है, तुझे बड़ी दूर तक जाना हैमंज़िल देखो

कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहेकत्ल करने वाले, अख़बार देखते रहे|तेरी रूह को चाहा, वो बस मै थाजिस्म की नुमाइश, हज़ार देखते रहे||मैने जिस काम मे ,उम्र गुज़ार दीकैलेंडर मे वो, रविवार देखते रहे||जिस की खातिर मैने रूह जला दीवो आजतक मेरा किरदार देखते रहे||सूखे ने उजाड़ दिए किसानो के घरवो पागल अबतक सरकार

सुबह निकलने से पहले ज़राबैठ जाता उन बुजुर्गों के पासपुराने चश्मे से झांकती आँखेंजो तरसती हैं चेहरा देखने कोबस कुछ ही पलों की बात थी  ________________लंच किया तूने दोस्तों के संगकर देता व्हाट्सेप पत्नी को भीसबको खिलाकर खुद खाया यालेट हो गयी परसों की ही तरहकुछ सेकण्ड ही तो लगते तेरे ________________निक

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हां ! हमनें गांधी को मारा दियाक्‍योंकि वह करता था आदर्श की बातें?क्‍योंकि वह चलता था सचाई-नैतिकता की राह परउसकी दी हुई आजादी हमें नहीं भाई,हम आजादी नहीं चाहते थेहम चाहते थे स्वतंत्रता के नाम परअराजकता एक अव्‍यवस्‍थाजो आजादी आज हम ढो रहे हैवो नहीं है गांधी के सपनों की आजादीबदला इस इस आजादी से कुछ भी

हाशिये पर से अपनी आँखों को शून्य में टांगकर हाशिए पर से देखा किया मैंने सुबह दोपहर और शाम का बारी-बारी से घर की दहलीज़ पर आना और देह चुराकर चला जाना दिन भर कई छोरों सेहोती र

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काव्य को मानव-जीवन की व्याख्या माना जाता है। मानव जीवन पर्याप्त विस्तृत-व्यापक है। मानवेत्तर प्रवत्ति भी मानव जीवन से सम्बद्ध है क्योंकि उसका भी मानव से नित्य संबंध है। फलतः कविता के विषय की सीमा आंकना सहज-संभव नहीं। मानव-जीवन और मानवेत्तर प्रकृति का प्रत्येक क्षेत्र, अंग, भाव-विचार, प्रकृति-प्रवृत्

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शब्दनगरी यूज़र्स के लिए सुनहरा मौका, इस मंच पर आयोजित कविता प्रतियोगिता में भाग लीजिये| इस कविता प्रतियोगिता का विषय, "हमारी मातृ-भाषा: हिंदी" है|प्रतियोगिता के लिए २-४ पंक्तियों में कविता लिखे|चुनी गयी, सर्वेष्ठ् कविताओं को रचनाकार के नाम के साथ शब्दनगरी मंच पर, प्रकाशित किया जायेगा|

हे कलियुग तेरी महिमा बड़ी अपारमानव ह्रदय कर दिया तूने तार-तारअब तो भाई , भाई से लड़ते हैंबाप भी माई से लड़ते हैंबेटी , जमाई से लड़ती हैसब रिश्तों में डाली तूने ऐसी दरारउजड़ गए न जाने कितने घर-परिवारहे कलियुग तेरी महिमा बड़ी अपार | अच्छाई को बुराई के सामने तूनेघुटने टेकने पर मजबूर कियाअपने , सपनों से कित

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'कविता' साहित्य भाषा के माध्यम से जीवन की मार्मिक अनुभूतियों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यंजना के दो माध्यम माने गए हैं---गद्य और पद्य। छंदबद्ध, लयबद्ध, तुकान्त पंक्ति ही पद्य मानी जाती है जिसमें विशिष्ट प्रकार का भाव-सौंदर्य, सरसता और कल्पना का पुट होता है। मात्र छंदबद्ध रचना तब तक कविता नहीं

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