*मानव जीवन पाकर की मनुष्य अपने जीवन भर में अनेको क्रिया कलाप करता है , अनेकों शत्रु एवं मित्र जीवन में बनते रहते हैं | मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका स्वयं का क्रोध है , क्रोध में आकर मनुष्य अंधा हो जाता है और उसका विवेक शून्य हो जाता है ऐसी स्थिति में वह क्या कर जाएगा उसको स्वयं को पता नहीं होता | क्रोध एक आंधी की भांति आता है और अपने साथ अनेकों प्रकार के रिश्ते नातों को नष्ट कर के चला जाता है | मनुष्य को क्रोध क्यों होता है ? यदि इस पर विचार किया जाए तो यही परिणाम निकल कर आता है कि जब मनुष्य के अनुसार कोई काम नहीं होता , जब मनुष्य को असंतोष हो जाता है या उसकी अनियंत्रित इच्छाएं पूरी नहीं होती है तो उसको क्रोध आता है और इसका परिणाम यह होता है कि घर , परिवार , मित्र , सहकर्मी सभी के साथ उसकी कटुता बढ़ जाती है | क्रोध जहां अपने आसपास वालों के लिए घातक तो होता ही है साथ ही स्वयं क्रोधी के लिए भी वह अत्यंत घातक सिद्ध होता है | क्रोधी मनुष्य का कोई मित्र भी नहीं बन पाता है | क्रोध को बस में करने के लिए मनुष्य की संकल्प शक्ति दृढ़ होनी चाहिए ! मनुष्य को आत्म संतोष होना चाहिए ! मृदुभाषी बनकर सदैव मीठा बोलने की आदत डालनी चाहिए ! इसके साथ ही बात बात में मुस्कुराने का प्रयास करना चाहिए ! इससे क्रोध पर विजय पायी जा सकती है अन्यथा क्रोध नामक शत्रु मनुष्य को एवं उसके चरित्र को भी नष्ट कर देता है |*
*आज के आधुनिक युग में प्राय: देखने को मिलता है कि लोग छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित होकर के एक दूसरे से बहस करने लगते हैं | क्रोधी का स्वभाव तो यह होता है कि वह अपने से बड़ा किसी को मानना ही नहीं चाहता | आज यह देखने को मिल रहा है कि लोग राह चलते राहगीरों से भी बहस करके झगड़ा करने लगते हैं और बात बढ़ने पढ़ते यहां तक पहुंच जाती है की हत्या तक कर डालने जैसी जघन्य घटनाएं देखने को मिल रही है | आज जो प्रतिशोध , अराजकता का माहौल सर्वत्र दिखाई पड़ रहा है उसका एकमात्र कारण मनुष्य का क्रोध ही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज आत्म संतोष किसी में दिखाई ही नहीं पड़ता है | क्रोधित होने का एक बड़ा कारण आज की खाद्य व्यवस्था भी है आज मनुष्य सात्विक आहार फल , हरी सब्जियों का सेवन नाम मात्र को कर रहा है इसकी अपेक्षा फास्ट फूड एवं उत्तेजक पदार्थों का सेवन मनुष्य के द्वारा किया जा रहा है जिससे उनके स्वभाव में क्रोध की वृद्धि हो रही है | यदि क्रोध पर विजय पाना है तो मनुष्य को सर्वप्रथम आत्म संतोष करना होगा और छोटी-छोटी बातों पर बहस न करके उससे गहनता से विचार एवं आत्ममंथन करना होगा | जब मनुष्य गहनता से किसी भी विषय पर आत्ममंथन करेगा तो विषय वस्तु को समझ जाने के बाद उसको क्रोध नहीं आएगा परंतु आज मनुष्य को ना तो संतोष हो पा रहा है और ना ही वह आत्ममंथन करना चाहता है | यही कारण है कि आज सर्वत्र क्रोध एवं क्रोध के दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं |*
*क्रोध एक मानसिक बीमारी है प्रत्येक मनुष्य को इससे बचने का प्रयास करना चाहिए | जो स्वयं को संभाल ले जाता है , आत्म संयम के द्वारा जो दूसरों की बातों को हंसकर टाल देता है वह इस घातक बीमारी से बचा रहता है |*