*मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , समाज में अनेकों प्रकार के लोग समय-समय पर मिला करते हैं ऐसे में मनुष्य के पास यदि व्यवहारकुशलता एवं पारस्परिक तालमेल के गुण हैं तब तो वह समाज में सामंजस्य बैठा सकता है अन्यथा नहीं | व्यवहार कुशलता व पारस्परिक तालमेल दोनों आपस में घुले मिले हैं | जो व्यवहार कुशलता के सूत्रों को जानते हैं वहीं परस्पर तालमेल बैठा सकते हैं , इसी तरह जिन्हें परस्पर तालमेल की कला मालूम है वही व्यवहार कुशलता निभा पाते हैं और जीवन जीने के लिए इन दोनों गुणों की परम आवश्यकता होती है | जीवन साधना का संपूर्ण ढांचा इन्हीं के सहारे टिका हुआ है | हमारे पूर्वजों ने बताया है कि जो भी जीवन साधना करना चाहते हैं उन्हें व्यवहार कुशलता व पारस्परिक तालमेल के कौशल में निपुण तो होना ही चाहिए क्योंकि तब व्यवहारिक जीवन में शांति होगी , तभी आंतरिक जीवन में शांति , स्थिरता व एकाग्रता दिखाई देगी और आध्यात्मिक चेतना का प्रवाह अवाध रूप से बह सकेगा | यहां भावनाओं का कोई स्थान नहीं होता है | भावनाओं में बहकर कोई निर्णय न लेते हुए मान - अपमान से परे हटकर समाज में स्थापित होने के लिए एक दूसरे से सामंजस्य स्थापित करना ही व्यवहार कुशलता का पर्याय है | प्राय: मनुष्य के दुख का कारण यह होता है कि अमुक के द्वारा हमारा सम्मान नहीं किया गया और वह उद्विग्न हो जाता है तथा इसी उद्विग्नता एवं भावावेश में आकर ऐसे कदम उठा लेता है जो कि उसके भविष्य के लिए उचित नहीं होते | यह कृत्य परस्पर तालमेल का ना होना दर्शाता है | जहां परस्पर तालमेल होता है , मनुष्य में व्यवहार कुशलता होती है वहां यदि वाद-विवाद भी होता है तो मनुष्य अपनी व्यवहार कुशलता एवं वाकपटुता के द्वारा तालमेल बैठाने में सफल हो जाता है और यही जीवन साधना का रहस्य है |*
*आज समाज में आपसी सामंजस्य का अभाव स्पष्ट देखने को मिलता है | मनुष्य हर स्थान पर अपना सम्मान चाहता है परंतु वह यह भूल जाता है कि जो भावनाएं और विचार हम दूसरों के प्रति रखते हैं वही भावनाएं और विचार दूसरा हमारे प्रति भी रखता होगा | सीधी सी बात है कि हम अपने चिंतन को परिष्कृत करते हुए इस सच्चाई को दृढ़ता से अपनाएं कि जो विचार और भावनाएं हम जिंदगी के खेत में बोते हैं वही अंकुरित - पोषित होकर हमारे सामने फसल बनकर ललाहाती है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि व्यवहार दो प्रकार के होते हैं व्यवहार के दोनों स्तरों को समझना बहुत आवश्यक है | प्रथम स्तर में वे लोग हैं जिनसे हमारे व्यवहार बहुत ही सघन व आत्मीय होता है ` दूसरे स्तर में वे सभी हैं जिनसे हम किसी कारण बस कुछ समय के लिए मिलते हैं | पारिवारिक लोग या जिन से आत्मीय संबंध है हमें उनके व्यक्तित्व को , उनकी भावनाओं को सुक्ष्मता से समझने का प्रयास करना चाहिए | वही दूसरे स्तर के लोग जिन से हम कुछ समय के लिए मिले हैं उनके व्यक्तित्व को भी समझना परम आवश्यक है | इसके लिए मनुष्य को सघन आत्मचिंतन की आवश्यकता होती है जो कि आज नहीं दिखाई पड़ रहा है | यही कारण है आज कि परिवार , समाज एवं अनेकों समूह समय-समय पर विघटित हो रहे हैं | इसके लिए जिम्मेदार एक व्यक्ति नहीं होता है बल्कि दोनों पक्ष बराबर के जिम्मेदार होते हैं | मनुष्य एक दूसरे को न समझ पाने के कारण ही परस्पर तालमेल नहीं बैठ पाता है और व्यवहार कुशलता निष्क्रिय हो जाती है , और लोग एक दूसरे से दूर होते चले जाते हैं | इसे समझने की आवश्यकता है ! अपने समाज को जोड़कर रखने की आवश्यकता है ! व्यवरार कुशलता बनाए रखते हुए परस्पर तालमेल बैठाना ही होगा |*
*व्यवहार कुशलता व पारस्परिक तालमेल सदैव प्रेम से सिक्त होता है | यदि इसमें कहीं थोड़ी बहुत परेशानियां भी आ जाएं तो मनुष्य को उन्हें सहन करना चाहिए और किसी भी स्तर पर विषमताओं से घबरा न करके सामंजस्य बैठाने का प्रयास करना चाहिए |*