कुछ भी साथ नही जाता इंसान के,
बस जाता है नाम, काम,
गुण, प्यार, व्यवहार, और बोल
कौन सी शोहरत पर आदमी को नाज है
जबकि आखरी सफर के लिए भी
आदमी औरों का मोहताज है
बीत जाती है ज़िंदगी ये ढूँढने में
कि ढूँढना क्या है? जबकि
मालूम ये भी नही कि जो मिला है
उसका करना क्या है
मशहूर होना मगरूर मत होना
छू लो कदम कामयाबी के लेकिन
कभी अपनों से दूर मत होना
जिंदगी में खूब मिल जायेगी,
दौलत और शोहरत पर...
अपने ही आखिर अपने होते हैं,
ये बात कभी भूल मत जाना