*"अहंकार" उसी को होता है, जिसे बिना किसी "संघर्ष" के सब कुछ प्राप्त होता है..!! और जिसने अपनी मेहनत से हासिल किया है, वही दूसरों की "मेहनत" की कद्र कर सकता है..!!*
*आपकी परेशानी अक्सर स्वयं निर्मित होती है, यदि आप ईश्वर में दृढ़ विश्वास विकसित करते हैं,? और उसकी इच्छा के प्रति समर्पण करते हैं, तो वह आपको विफल नहीं करेगा, यह "शरणागति" (ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण) की अवधारणा है, "ईश्वर" के इस समर्पण से जो आनंद प्राप्त किया जा सकता है, वह किसी अन्य माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, आपके साथ जो कुछ भी होता है, उसे अपने भले के लिए किया गया है ऐसा समझो, उस आनंद की खोज करें जो "परीक्षणों" और "क्लेशों" से प्राप्त किया जा सकता है, यह उम्मीद करना सच्ची भक्ति का संकेत नहीं है, कि जीवन सुख और आराम की एक अटूट श्रृंखला हो, क्या यही सच्ची खुशी है? किसीने पूछा कि सुख धन के कब्जे में है, या परमात्मा की सेवा में,? तो उसे धन प्राप्ति में कोई आनंद नहीं मिला, उन्होंने प्रभु की सर्वव्यापी को पहचानने में सबसे बड़ा आनंद अनुभव प्राप्त किया, और इसी तरह सभी भक्तों को हर चीज में ईश्वर के अस्तित्व के बारे में जागरूक होना चाहिए, और अपने दैनिक कर्तव्यों को परमात्मा के प्रति समर्पण के रूप में करना चाहिए, ईश्वर के चरणों में विश्वास हमारे अंदर की "सकारात्मकता" को बनाए रखकर, हमारे आत्मबल को मजबूत बनाता है, सत्य कहें तो, भक्ति ही किसी व्यक्ति के अंदर साहस पैदा करती है, सच पूछो तो भक्ति के प्रताप से ही वो साहसी औ बलशाली भी बन पायें है, आप परमात्मा के जितने करीब हैं, प्रभु भी आपके उतने ही करीब हैं, अगर आप इस "सच्चाई" को समझ लेंगे तो, आपको "एहसास" होगा कि "ईश्वर" हर जगह और कण-कण में हैं...*