*हाड़ जले लाकडी जले, जले जलावन हार।*
*कौतुक हारा भी जले,किस से करुँ पुकार।*
*लकडी भी जल गयी और हड्डियां भी जल गयी। जिसने किसी को जलाया था वो भी एक दिन जल गया।*
*जो कभी बैठकर दुसरे की जलती चिता को देख रहा था वो भी जल गया।*
**सबका बारी बारी जलने का नम्बर आ रहा है।*
*अगली बारी लगता है मेरी है।कोई बताओ मैं क्या करुँ,किसकी पुकार करुँ जो मुझे इस डरावनी चिता से बचाये।*
*यह दोहा अपने आप में मनुष्य के अन्दर चलती विचारधारा,उठते प्रश्नों के बारे में बहुत कुछ कह देता है।*
*इस प्रकार के प्रश्न तब उठते हैं जब मनुष्य पर वैराग्य हावी होता है।*
*वैराग्य प्रदत्त और अर्जित होता है। कोई बचपन से ही वैरागी विचारों का होता है तो कोई स्वाध्याय से वैराग्य उत्पन्न करता है।*
*शास्त्र कहते हैं कि अभ्यास और वैराग्य से ही जीवन लक्ष्य को पाया जा सकता है। पर आज के समय में वैराग्य कैसे उत्पन्न करें*।*
*मेरा स्वयं का अनुभव यही कहता है कि वैराग्य के लिये एक बार श्मशान का चक्कर लगा लेना चाहिए। भूत प्रेत तो नहीं चढेंगे, पर शरीर की अन्तिम गति को देखकर वैराग्य का नशा जरुर चढ़ जायेगा। जीवन और मृत्यु की सच्चाई पता चल जाती है।*
*वहाँपहले लकडी जलती है और लकडी के साथ साथ वो शरीर भी जल जाता है जिसके लिये ना जाने कितने पाप किये, ना जाने कितनो को सताया और उनका दिल दुखाया था। अब स्वाहा हो जाता है। जिन बेटों के लिये सब कुछ छोड़ जाते हैं वो बेटे चिता ठंडी होने का इन्तजार भी नहीं कर पाते, और बटवारे के लिये झगड़ने लगते हैं। जवान हो तो नारी सोचती है कब और किससे दुसरी शादी करुँ। कर्जदार सोचते हैं की अच्छा है, चला गया अब कर्ज नहीं देना पडेगा इत्यादि इत्यादि। सब पड़ा रह गया घर बार, गाडी बंगला, धन दौलत। शुभ कर्म जीव के साथ गये, केवल और केवल धर्म साथ गया।*
*वाह रे प्रभु! तेरी माया।*
*सारा जग भरमाया।*