*जीव भोगी है..... ईश्वर से भी कपट करता है।*
वद्धावस्था में भजन करेंगे,
गृहस्थी की जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर भजन करेंगे।
वृन्दावन में कुटिया बनाकर भजन करेंगे,
किसी एकान्त स्थान में भजन करेंगे,
कुछ वर्ष बाद केवल भजन ही करेंगे।
यह सभी बातें हम अपने आप से अपनी आत्मा से कपट करने के लिये कहते हैं..........
सत्य तो यह है कि भोगों में मन रमता है, कुछ और भोग लें, फ़िर मिले न मिले, भजन तो कभी भी हो सकता है।
भजन कभी भी नहीं हो सकता, भजन केवल अभी ही हो सकता है, यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिये। श्वासों का पता नहीं, क्षणभंगुर देह का पता नहीं, तो किस आधार पर हम आत्मा को धोखा देते हैं।
हम भोगों को नहीं भोग रहे, भोग ही हमें भोगते हैं.........!