*जो काम विकार से भी ज्यादा खतरनाक है वह* सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है।
* मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥
सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है॥
किसी समय की बात है एक ठाकुर साहब थे, तीर्थयात्रा करने गये, चार धाम की यात्रा करके चालीस दिन के उपरांत घर लौटकर आये, सारे गाँव वालो ने बड़ा स्वागत-सत्कार किया, ठाकुर साहब ने कहा में क्रोध को छोड़कर आया हूँ, उनका नाई प्रणाम करने आया जो ठाकुर साहब की मालिश किया करता था।
जब नाई मालिश करने लगा तो ठाकुर साहब से पूछा क्या आप क्रोध को छोड़कर आ गये? ठाकुर साहब ने कहा कि हाँ मैंने क्रोध नही करने का संकल्प लिया है, तीन चार बार पुछने पर ठाकुर साहब डंडा लेकर नाई के पीछे भागे, देखो कितना क्रोध छोड़कर आये है, स्थान छोडने से जीवन नही बदलता।
धुम्रपान जैसी चीज को छोडने के लिए व्यक्ति क्या-क्या नही करता? कसम खाता है, बन्डल तोड़ता है और अन्त में मरते समय तक भी नही छोड पाता, पूरे जीवन की ताकत केवल बीडी कैसे छूटे, इसी पर लगा देता है, अगर उससे आधी ताकत परमात्मा की ओर चलने में लगाई होती तो परमात्मा का अनुभव हो जाता,
भोग में ध्यान को जोड़ दीजिये योग हो जायेगा, भोग में प्रेम को जोड़ दीजिये भक्ति हो जाएगी, जो भी जीवन के भोग हैं इनमें प्रेम जोड दीजिए बस, वो सब परमात्मा का प्रसाद हो जायेगा, फिर निवास कहीं भी करो बन में या भवन में? इसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता।
सामान्यतः तो हम सब सोये हुये हैं, आप सभी ने भी अनुभव किया होगा यदि रास्ते पर आप जा रहे है आपके बिल्कुल करीब से कोई निकल गया और आपने देखा ही नही, जबकि आपकी आँख खुली हुई है तो आपने देखा कैसे नही? आँखे खुली हैं, बगल से कोई निकल गया पर आपको होश नही है।
आप पढ रहे है, कई पेज पढ लिये लेकिन ध्यान कुछ नहीं कि क्या पढा? दो चार पेज पढने के बाद आंख बंद करके सोचो कि क्या पढा तो कुछ याद नही, आंखें अक्षरों को तो देख रही थी लेकिन चित्त कही और था, आँख तो देख रही थी लेकिन ह्रदय आपका सोया था, चेतना सोयी हुई थी।
भगवान महावीर ने कहा है कि सोयी हुई, खोयी हुई क्रियाएं हैं, यही प्रमाद है, हम जो कुछ भी करें बोध पूर्वक करें, जागकर करे, वही ध्यान हो जायेगा, कई लोग क्रोध के लिए बहुत रोते है कि क्रोध बहुत आता है क्या करें, कैसे छोडे? जहां भी जायें वही प्रश्न करते हैं कि क्रोध कैसे छोडे?
हमारा निवेदन है कि क्रोध को त्यागिगे नहीं, उसे जानिये, जब क्रोध को जान जायेंगे तो धीरे-धीरे सीमित हो जायेगा, हम क्रोध का दमन करते हैं, क्रोध का शमन करना चाहियें, क्रोध चित्त की विक्षिप्त अवस्था है, क्रोध में व्यक्ति कुछ क्षण के लिए पागल हो जाता है, ये अस्थाई पागलपन है, जैसे शराबी नशे में कुछ और होता है।
आपने शराबी की वो घटना सुनी होगी, शराबी बड़े मस्त होते है, एक शराबी रात को शराब पीकर आ रहा था, झूमता हुआ अपनी मस्ती में कुछ गाता चला जा रहा था, साधु भी अपनी मस्ती में रहता है, उसको भी नशा है, शराबी को देह का नशा होता है, जबकि साधु को विदेह का नशा होता है।
शराबी को बाहर नशा है साधु को भितर नशा है, ये बाहर बोलता है साधु भीतर बोलता है, शराबी का शरीर डगमगाता है और साधु का ह्रदय नाचता है, साधु और शराबी के नशे में बस इतना ही अन्तर है, तो वो शराबी नशे में आ रहा था, इधर अकबर बादशाह की सवारी जा रही थी, बादशाह के संतरी बोल रहे थे, हटो-हटो , उन्होंने शराबी को थोड़ा धक्का दे दिया।
शराबी बोला धक्का मत दो मैं भी बादशाह हूँ, संतरी ने कहा तुझे मालूम नही पगले ये अकबर बादशाह की सवारी आ रही है, शराबी ने कहा कैसा अकबर? खड़ा हो गया, राजा की सवारी रूक गयी, ये भी बादशाह वो भी बादशाह, ये अपनी हस्ती का बादशाह और शराबी अपनी मस्ती का बादशाह।
शराबी अकबर से बोला ये हाथी कितने का देगा? राजा के सेनीक लाल हो गये. बादशाह ने कहा नहीं, इस समय यह दूसरे आनन्द में है, दूसरी दुनिया में हैं, इसका नाम पता पूछ लो, कल प्रातः काल इसको हमारे दरबार में पेश करना, यात्रा चली गयी, शराबी अपने घर आ गया, रात्रि को सोया, सवेरे तक नशा उतर गया।
कितने समय रहेगा नशा? चाहे पद का हो या पैसे चाहे प्रतिष्ठा का, जल्दी उतर जाता है, पद से उतर जाने के बाद लोगों के चेहरे देखो, रात में सोये तो वर्तमान पद में थे, सुबह उठे तो भूत हो गये, भूत को कौन देखना पसंद करेगा? सुबह उस शराबी को अकबर के दरबार में बुलाया गया, वह घबरा गया, अकबर बादशाह ने पूछा बोल भाई हाथी कितने में खरीदोगे?
इसने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी, सरकार हाथी खरीदने वाला तो रात में ही चला गया. मैं तो इस समय आपका सेवक हूँ, वो मैं नही बोल रहा था, मेरी भीतर शराब बोल रही थी, ऐसे ही हर व्यक्ति क्रोध में ना जाने क्या-क्या कह जाता है, बाद में पश्चाताप करता है इसलिये क्रोध को छोडने की चिन्ता मत करो उसको समझने की चिन्ता करो।
क्रोध के प्रति मेहरबानी करके जागिये, क्रोध को पहचानिये, अगर आप बोधपूर्वक जीवन की क्रियायें करना प्रारंभ कर देंगे तो बुराई अपने आप छूट जायेगी, फिर आप किसी को गाली नही दे सकते, आपको गाली देने के पूर्व पता चल जायेगा कि आप गाली दे रहे हैं फिर गाली देना असंभव हो जायेगा, वास्तव में गाली तो हम बेहोशी में देते हैं।
अगर आपको यह बोध हो जाये कि आप क्रोध में आ रहे हैं तो आप क्रोध कर नही सकोगे, जो क्रियायें हम मूर्छित होकर करते हैं वे सब पाप हैं, वे सब क्रियायें जो हम परिपूर्ण जाग्रत अवस्था में करते हैं वे सब पुण्य हैं, परिपूर्ण जाग्रत अवस्था में पाप करना असंभव है, जाग कर कोई पाप कर सकता है क्या?
भोजन भी हम जागकर नही करते, मैं कई बार सम्यक आहार पर लिख चुका हूँ, सम्यक आहार का अर्थ है कि जब हम भोजन करें, भोजन के बाद हमको अपने पेट का पता ना चले, ये सम्यक आहार हैं, अगर हमको पेट का बोध होता है तो समझना चाहिये कि हमने आवश्यकता से अधिक भोजन कर लिया।
हमको शरीर के उसी अंग का बोध होता है जो अस्वस्थ है, सिर में जब दर्द होता है तभी सिर का पता चलता है, पैर में या पेट में जब दर्द होता है तभी उनका पता चलता है, किसी बड़े चिकित्सक ने कहा है लोग जितना भोजन करते हैं उतने में आधे तो उनका पेट भरता है और आधे से डाक्टर के परिवार का पेट भरता है।
हम भूख के लिये भोजन नहीं करते हम स्वाद के लिये भोजन करते हैं, ये स्वाद का भोजन ही हमको डाक्टर के पास ले जाता है, जो डाँक्टर का पेट न भरे वही सम्यक आहार हैं।(कॉपी)