*"जीतने का मतलब बहुत धन कमा लेना नहीं है। जीतने का मतलब है उत्तम चरित्रवान एवं मानसिक रूप से संतुष्ट या सुखी होना।"*
संसार में बहुत से लोग पढ़ाई लिखाई कर लेते हैं, ऊंची ऊंची डिग्रियां प्राप्त कर लेते हैं, धन भी बहुत मात्रा में कमा लेते हैं, और वे समझते हैं, कि *"हम जीवन में जीत गए अर्थात हम सफल हो गए।"*
*"परंतु सफलता की यह परिभाषा अधूरी है।"* यह ठीक है कि जीवन में जीतने के लिए अथवा सफलता प्राप्त करने के लिए पढ़ाई लिखाई भी खूब अच्छी होनी चाहिए। ऊंची-ऊंची डिग्रियां भी हों, इसमें भी कोई आपत्ति नहीं है। और धन-संपत्ति मकान मोटर गाड़ी आदि भौतिक सुख साधन भी पर्याप्त हों, जिससे कि कोई काम अटके नहीं, सुविधा पूर्वक सारे काम संपन्न हो जावें। इन सब चीजों से हमारा कोई विरोध नहीं है। *"परंतु इसके साथ साथ यदि जीवन में शांति नहीं है, मन इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं है, जीवन में सच्चाई और ईमानदारी नहीं है, यदि सेवा एवं परोपकार की भावना नहीं है। यदि सभ्यता और नम्रता नहीं है, तो ये सब भौतिक संपत्तियां आपके पास होते हुए भी आप सफल नहीं हैं, ऐसा मानना चाहिए।"*
जीवन की सही सफलता तभी होती है, जब व्यक्ति के जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार से उन्नति का संतुलन हो। *"आजकल लोग केवल भौतिक धन-संपत्ति के पीछे पड़े हैं। आध्यात्मिकता को तो भूल ही चुके हैं। ईमानदारी सच्चाई आदि उत्तम संस्कारों को भूल चुके हैं। इसलिए वे अधूरे सफल हैं। अथवा यूं कहें, कि असफल हैं।"*
पूरी सफलता के लिए आपके जीवन में उत्तम संस्कार और विचार होने अनिवार्य हैं। *"जिस व्यक्ति को ये उत्तम संस्कार विचार और सभ्यता नम्रता आदि उत्तम गुण प्राप्त हो जाते हैंं, वही व्यक्ति भाग्यशाली है। उसे जीवन में कोई हरा नहीं सकता। उस पर ईश्वर माता-पिता गुरुजन आदि सब का आशीर्वाद बना रहता है। वही जीवन में आनंदित होकर जीता है।"*