*सनातन धर्म मैं चार प्रकार के पुरुषार्थ बताए गये हैं :- धर्म , अर्थ , काम एवं मोक्ष | जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना होता है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में लिखा है :- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !! अर्थात चौरासी लाख योनियों में मानव योनि ही श्रेष्ठ है जिसे साधना का धाम एवं मोक्ष का द्वार कहा गया है | विचार कीजिए अन्य योनियों में जीव जहां कोई भी साधन नहीं साध सकता हैं वही मनुष्ययोनि में अनेक प्रकार के साधन के माध्यम से मोक्ष के द्वार में प्रवेश कर सकता है | साधन क्या है ? इसे कैसे किया जाय ? इस पर हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णन मिलता है , जिसे देखने की आवश्यकता है | मोक्ष का अर्थ होता है आवागमन से मुक्ति प्राप्त करना परंतु मोक्ष प्राप्त करने के लिए शरीर का त्याग करना आवश्यक नहीं है इस सशरीर भी प्राप्त किया जा सकता है | मनुष्य इस धरा धाम पर आते ही विषयों में लिप्त हो जाता है | भगवान की माया इतनी प्रबल है कि जन्म लेते ही जीव को घेर लेती है और मनुष्य अपने जीवन के उद्देश्य को भूल जाता है | मानव जीवन का उद्देश्य यद्यपि मोक्ष प्राप्त करना है परंतु माया के विकट प्रपंचों में वह इसको भूल जाता है | मोह , लोभ , काम , क्रोध इत्यादि माया के सैनिक इस प्रकार जीव को घेर लेते हैं कि संसार के प्रपंचों (विषय वासनाओं) से निकल ही नहीं पाता , जबकि बाबा जी ने स्पष्ट लिख दिया है कि "येहि तन कर फल विषय न भाई" | इन विषयों से मुक्ति पाना तभी संभव है जब मनुष्य सांसारिक ज्ञान से अलग हटकर आत्मज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करेगा | जिस दिन मनुष्य को आत्मज्ञान प्राप्त हो जाता है उसी दिन समझ लो कि उसका मोक्ष हो जाता है | आत्मज्ञान क्या है ? इस पर विचार किया जाय तो यही तथ्य निकलकर सामने आता है कि जिस दिन मनुष्य जीव एवं पदार्थ में भेद करना समाप्त कर देता है उसी दिन समझ लो उसको आत्मज्ञान हो जाता है और यही आत्मज्ञान मोक्ष की स्थिति तक ले जाता है | मोक्ष प्राप्त करने के लिए शरीर का क्या करना आवश्यक नहीं है इसके लिए मनुष्य को अपने आप उस स्थिति में पहुंचना होगा जब वह जड़ , चेतन का भेद भुलाकर ईर्ष्या , द्वेष , लोभ आदि का त्याग करके सब में परमात्मा का दर्शन करने लगे | जिस दिन मनुष्य सब में परमात्मा का दर्शन करने लगता है उसी दिन समझ लो उसका मोक्ष हो गया अन्यथा जीव बारंबार अपने कर्मानुसार अनेक योनियों में जन्म लेता रहता है | कर्म ़फल का सिद्धांत इतना अकाट्य हैं कि इसे काट पाना स्वयं परमात्मा के भी बस में नहीं है | इसलिए यदि मनुष्य को मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा है तो उसे समस्त संसार के कण-कण में परमात्मा का दर्शन करना होगा और यह बिना आत्मज्ञान के संभव नहीं है | आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सद्गुरुओं की शरण एवं सत्संग की प्रबल आवश्यकता होती है |*
*आज के युग में जहां चारों ओर लोभ , मोह , काम , क्रोध आदि का साम्राज्य दिखाई पड़ रहा है वहां लोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए अनेकानेक उपाय तो करते हैं परंतु कष्ट इस बात का होता है कि उनके द्वारा किए गए उपाय दिखावे के ज्यादा होते हैं | यह मैं हूं , यह मेरा है इससे मनुष्य ऊपर नहीं उठ पा रहा है | आत्मज्ञान प्राप्त करने की बात की जाय तो आज मनुष्य ना तो सद्गुरु की शरण में जाना चाहता है और ना ही सत्संग करना चाहता है तो भला उसे आत्म ज्ञान कैसे प्राप्त हो सकता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" जहां तक दृष्टि डालता हूं वहां तक यही दिखाई पड़ता है कि लोग मोक्ष प्राप्त करने का विचार करके अपने घर परिवार का त्याग तो कर देते हैं , ये सन्यासी बन कर किसी मठ मंदिर पर चले जाते हैं परंतु वहां भी उन्हें लोभ एवं मोह इतना जकड़ लेता है सांसारिकता से बाहर नहीं निकल पाते हैं | सब में परमात्मा का दर्शन करने की तो बात ही दूर है मनुष्य की स्थिति वह है कि थोड़ा सा ऐश्वर्य एवं संपत्ति प्राप्त कर लेने के बाद वह स्वयं को परमात्मा मांनने लगता है | इस प्रकार के कृत्य करके मनुष्य भला मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकता है | ऐसा नहीं है कि आज के युग में कोई मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता अनेकों साधक ऐसे भी हैं जो आज के इस आधुनिकता के परिवेश में भी स्वयं को जानने का प्रयास कर रहे हैं | मनुष्य संसार के अनेक विषयों का ज्ञान तो प्राप्त करना चाहता है परंतु मैं क्या हूं ? इस धरा धाम पर आने का मेरा उद्देश्य क्या है ? यह वह कभी नहीं जानना चाहता है | जिस दिन मनुष्य स्वयं के विषय में जान लेगा उसी दिन वह मोक्ष की और अपना कदम आगे बढ़ा देगा | स्वयं के विषय में जान लेना ही आत्मज्ञान कहा गया है , यह आत्मज्ञान मनुष्य को सत्संग के बिना कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता है , परंतु आज लोग सत्संग भी मनोरंजन के लिए ही कर रहे हैं तो ऐसे में मोक्ष कैसे प्राप्त होगा यह विचारणीय विषय है |*
*संसार में रहकर संसार से विरक्त हो जाना ही मोक्ष है | विरक्त हो जाने का भी यह अर्थ नहीं है कि वह सांसारिक रिश्तो को भूल जाय | सबके साथ रहते हुए , सबसे सामंजस्य बिठाते हुए मनुष्य आत्मसाधन करके मोक्ष का अधिकारी हो सकता है |*