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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ३३* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम विशाल बानर सेना के साथ दुर्गम रास्तों को पार करते ही समुद्र तट पर पहुंचे | उस विशाल सेना में *लक्ष्मण जी* की महिमा का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी ने *बरवै रामायण* में लिखा है :----
*विविध बाहनी विलसत सहित अनंत !*
*जलधि सरिस को कहै राम भगवंत !!*
*श्री लक्ष्मण जी* के साथ (वानर और भालओं की ) नाना प्रकार की सेना शोभा पा रही है | श्री राम की सेना विशालता समुद्र को भी लज्जित कर रही है , क्योंकि समुद्र की भी एक सीमा होती है | एक सीमा के बाद उसका भी क्षेत्र समाप्त हो जाता है परंतु जिस सेना में *लक्ष्मण जी* के रूप में साक्षात भगवान अनन्त (शेष जी ) विराजमान थे और जो स्वयं श्री राम ( नारायण ) की सेना थी उसे प्राकृतिक समुद्र के समान नहीं कहा जा सकता , क्योंकि समुद्र तो ससीम है परंतु श्री राम जी की सीमा सेना में अनन्त ,असीम *लक्ष्मण जी* स्वयं हैं | इस प्रकार से सेना जब समुद्र तट पर पहुंच गई तो वहीं शिविर बन गये | एक दिन श्रीराम अपने शिविर में बैठे हुए थे तभी गुप्तचरों ने आकर सूचना दी कि रावण का अनुज भ्राता *विभीषण* अपने निजी सचिवों के साथ श्री राम के दर्शन को आया है | भगवान श्रीराम ने सुग्रीव से उनकी राय पूछी तो सुग्रीव ने कहा :- हे भगवन ! राक्षसों की माया बड़ी विचित्र है | हो सकता है कि वह हमारा भेद लेने आया हो इसलिए उसे बांधकर रखा जाए | भगवान श्री राम ने कहा:- मित्र ! वह हमारी शरण में आया है और मेरी और मेरे रघुकुल की मर्यादा शरणागत वत्सल की है | भगवान कहते हैं :---;
*रघुकुल की रीति रही शरणागत वत्सल की ,*
*शरण में जो आया उसे हृदय से लगाएंगे !*
*क्रूर हो कुचाली चाहे वधिक पातकी भारी ,*
*शरणागत होय तो सब पातक भुलाएंगे !!*
*मन में दुर्भावना समेटे हुए पापी जीव ,*
*सम्मुख हुआ तो सब दोष मिट जाएंगे !*
*"अर्जुन" विभीषण की स्थिति हो जैसी भी ,*
*उनको सम्मान सहित अपना बनाएंगे !!*
श्री राम कहते हैं कि हे सुग्रीव ! हमारे रकुल रीति है कि यदि कोई पाती , हत्यारा , क्रूर भी शरण में आ जाता है तो वह अभयदान पा जाता है | और हे मित्र ! विचार करो कि कोई दुष्ट हृदय का व्यक्ति क्या मेरे सामने आ सकता है ?? यदि मान लिया आ भी जाता है तथा उसके हृदय में कोई दुर्भावना भी हुई तो आप शायद हमारे अनुज भ्राता *लक्ष्मण* को भूल रहे हो | सुग्रीव को बड़ा आश्चर्य हुआ कि भगवान आखिर क्या कहना चाहते हैं | भगवान कहते हैं:---
*जग महुँ सखा निशाचर जेते !*
*लछिमन हनहिं निमिष महुँ तेते !!*
हे सुग्रीव ! यहां तो एक विभीषण अपने कुछ सचिवों के साथ आ रहा है तो आप भयभीत हो रहे हैं कि वह भेद लेने आ रहा है | मित्र ! एक रहस्य की बात सुन लो ! मात्र लंका एवं रावण ही नहीं अपितु इस सृष्टि में जितने भी निशाचर एवं आततायी हैं उन सबका वध हमारा *लक्ष्मण* एक क्षण में कर सकता है | श्री राम के श्रीमुख से *लक्ष्मण जी* के बलाबल की महिमा सुनकर बांदर मंडल हतप्रभ रह गया | विभीषण को श्रीराम ने अपनी शरण देकर उसका राज्याभिषेक कर दिया | बिना रावण का वध किये ही राघव ने विभीषण को लंका पति की उपाधि दे दी | सुग्रीव ने कहा :- हे प्रभु ! आप ने विभीषण को लंका का राजा तो बना दिया परंतु यदि हम रावण को हम ना जीत पाए तो क्या आपका वचन झूठा नहीं हो जाएगा ???? भगवान श्रीराम कहते हैं :- हे सुग्रीव !
*मारि दशानन राज विभीषण कहँ देइहौं यह आन हमारी !*
*जौं न मरा दशकण्ठ तबहुँ नहिं असत् होय यह आन विचारी !!*
*छाँड़ि अयोध्या रहब वन महँ भाइन्ह संग महँ सगरौ महतारी !*
*"अर्जुन" लंक को छाँड़ि विभीषण का करि देइहौं अवधविहारी !!*
भगवान श्री राम की इस बात को सुनकर रघुनंदन की जय जयकार होने लगी | भगवान श्रीराम ने अपने सखा सुग्रीव के साथ-साथ विभीषण जी से भी पूछा कि हे मित्रों ! लंका के तट तक तो हम आ गए हैं परंतु इसे समुद्ररूपी विशाल बाधा को कैसे पार किया जाय ? कृपा कर आप सभी उचित सलाह बताइए जिससे कि इस विशाल सागर को पार करके हम अपनी सेना के साथ लंका तक पहुंच सके | समुद्र को पार करने का उपाय सभी लोग अपने-अपने विवेकानुसार बताने लगे |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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