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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ३५* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
समुद्र के बताए मार्ग का अनुसरण करते हुए नल नील को अगुवा बनाकर समुद्र पर विशाल एवं अकल्पनीय सेतु का निर्माण करके वानर सेना के साथ श्री राम एवं *लक्ष्मण जी* लंका पहुंचे | *लक्ष्मण जी* ने कहा भैया ! अब हमें विलंब ना करते हुए आक्रमण कर देना चाहिए | श्रीराम ने कहा कि *लक्ष्मण !* जब हम लंका तक आ ही गए हैं तो युद्ध तो होगा ही , परंतु नीति यह कहती है कि युद्ध रोकने के जितने भी उपाय हो उन्हें कर लेना चाहिए क्योंकि कोई भी विशाल / विकराल युद्ध संपूर्ण मानव जाति के लिए विनाशकारी ही होता है | *लक्ष्मण* ने कहा भैया ! क्या हम युद्ध नहीं करेंगे ?? श्री राम कहते हैं कि *लक्ष्मण* युद्ध होगा परंतु यदि आवश्यक हुआ तो | पहले हम शांतिदूत रावण के पास भेजेंगे यदि वह सीता को लाकर शरणागत हो जाता है तो युद्ध की आवश्यकता ही नहीं होगी | इधर तो यह चर्चा चल रही है उधर लंका में जब मंदोदरी ने सुना कि श्री राम ने समुद्र को पार कर लिया है तो उस ने रावण को समझाने का प्रयास किया बहुत प्रकार से समझाने पर भी जब रावण ने माना तो मंदोदरी कहती हैं कि हे नाथ :---
*सिंध तरेउ उनकर बनरा ,*
*तुम से धनु रेख गयी न तरी !*
*तेहि वानर बाँधत क्यों न वधेउ ,*
*उन वारिधि बाँधि के बाट करी !!*
*तेल औ तूल से पूँछ जरी न ,*
*जरी गढ़ लंक जराय जरी !*
*"अर्जुन" जब तक निबहे रहबो ,*
*नहिं राघव हाथ की मार परी !!*
मंदोदरी कहती है कि हे नाथ ! जिसे आप साधारण मानव कह रहे हैं उसके एक छोटे से बानर ने विशाल समुद्र को लाँघकर इतिहास बना दिया और आप स्वयं को वीर कहते हुए भी राम के छोटे भाई *लक्ष्मण* के द्वारा धनुष से खींची गई *लक्ष्मणरेखा* को भी नहीं लाँघ पाए थे तो उनसे युद्ध क्या करेंगे ? परंतु *"विनाश काले विपरीत बुद्धि"* होने के कारण रावण ने समस्त राक्षस जाति को युद्ध की ज्वाला में झोंक दिया |
रामादल की ओर से युवराज अंगद शांतिदूत बनकर गए परंतु परिणाम कुछ नहीं निकला और युद्ध प्रारंभ हो गया | युद्ध इतना भयंकर था कि सूर्यदेवता भी आकाश में छिप गये | युद्धक्षेत्र में हनुमान जी का पराक्रम देखकर श्री राम जी ने *लक्ष्मण* से कहा कि *हे लक्ष्मण:----*
*हाथिन सों हाथी मारे घोरे सों संघारे घोरे ,*
*रथनि सों रथ विदरनि बलवान की !*
*चंचल चपेट चोट चरन चकोट चाहे ,*
*हहरानी फौजें भहारानी जातुधान की !!*
*बार-बार सेवक सराहुना करत रामु ,*
*"तुलसी" सराहैं रीत साहेब सुजान की !*
*लांबी लूम लसत लपेट पटकत भट ,*
*देखो ! देखो !! लखन लरनि हनुमान जी !!*
श्री राम जी कहते हैं कि *हे लक्ष्मण !* देखो हनुमान कैसे रथ से रथ , हाथी से हाथी एवं घोड़ों से घोड़ों को लड़ा कर मार रहे हैं | *लक्ष्मण* देखो हनुमान किस प्रकार अपनी पूंछ में लपेट लपेटकर राक्षसों को पटक रहे हैं | *भगवत्प्रेमी सज्जनों !* भगवान अपने भक्तों का मान इसी प्रकार बढ़ाते हैं | वह दिन भी आया जब लंका का युवराज इंद्रजीत *मेघनाद* स्वयं युद्धभूमि आ गया | समरभूमि में आते ही *मेघनाद* किसी आंधी की भांति पूरे रणक्षेत्र में छा गया |
*आंधी बनि मेघनाद आयो है समर भूमि ,*
*गरजा कुमार युद्ध जीतन को आयो है !*
*कहां राम लक्ष्मण सुग्रीव अरु हनूमान ,*
*कहां है विभीषण काल को जो बुलायो है !!*
*बाणन पै बाण छाँड़ि युद्ध कीन्हो अंधकार ,*
*भागे वानर भालू सब युद्ध विसरायो यो है !*
*देखि विकराल युद्ध "अर्जुन" विचार करें ,*
*मेघनाद आयो है कि स्वयं काल आयो है !!*
*मेघनाद* के रण कौशल से वानर - भालू हतोत्साहित हो गए और रण छोड़कर भागने लगे | ऐसा लग रहा था कि स्वयं महाकाल युद्ध क्षेत्र में तांडव कर रही हों देवताओं में भय व्याप्त हो गया | उसके इस प्रकार के तांडव को देखकर शेषावतार *लक्ष्मण जी* का क्रोध बढ़ गया और उन्होंने श्रीराम से कहा :---
*हाथ में धनुष बान और कटि में कृपान ,*
*आन रामा दल की मैं स्वयं बचाऊँगा !*
*शीश पर सवार हुआ अभिमानी मेघनाद ,*
*आज इसे रण का मजा मैं चखाऊंगा !!*
*दे दो आदेश तात अधिक अब न सहात ,*
*आज इसे भारत का बल मैं दिखाऊंगा !*
*"अर्जुन" लखन कहैं शीश पर धरो हाथ ,*
*नाथ रघुकुल का पताका फहराऊँगा !!*
*लक्ष्मण जी* को मेघनाथ के कहे दुर्बचन असहनीय हो गए और उन्हें श्री राम से युद्ध में जाने की आज्ञा मांग रहे हैं | विभीषण ने कहा :- *कुमार लक्ष्मण* जिसे तुम साधारण मेघनाथ समझ रहे हो वह इतना साधारण नहीं है | *लक्ष्मण* ने कहा कि विभीषण जी ! युद्ध क्षेत्र में वीर पुरुष यह कभी नहीं विचार करते हैं कि सामने आया हुआ शत्रु साधारण है या असाधारण | युद्धक्षेत्र में वीर का एक ही धर्म होता है युद्ध करना , सामने भले ही काल खड़ा हो | *लक्ष्मण जी* ने कहा:- लंकेश ! शत्रु को बलवान समझकर युद्ध करने के लिए जाने में संकोच वाले वीर नहीं कायर होते हैं | विभीषण ने कहा *लक्ष्मण जी* हमें आपकी वीरता पर संदेह नहीं है परंतु यह सत्य है कि मेघनाद ने इंद्र को भी परास्त किया है इसलिए असावधानी घातक हो सकती है | श्री राम ने कहा विभीषण जी *लक्ष्मण* साधारण वीर नहीं है आप इनके बल कौशल को नहीं जानते हैं इसलिए ऐसा कह रहे हैं | ऐसा कहकर श्री राम ने *लक्ष्मण* को युद्ध में जाने की आज्ञा प्रदान की | *लक्ष्मण जी* अंगद आदि वीरों को साथ में लेकर युद्ध के लिए चल पड़े | उस समय *लक्ष्मण जी* की शोभा का वर्णन तुलसीदास जी ने बहुत ही सुंदर ढंग से किया है :--
*छतज नयन उर बाहु विसाला !*
*हिमगिर निभ तनु कछु एक लाला !!*
चौड़ी छाती और विशाल भुजाओं वाले *लक्ष्मण जी* की आंखें क्रोध से लाल हो रही है | हिमालय की भांति गौर वर्ण वाले *लक्ष्मण जी* का शरीर क्रोध् के कारण लाल हो रहा है | इस प्रकार *लक्ष्मण जी* वहां पहुंचे जहां मेघराज साक्षात काल बनकर वानर सेना पर बरस रहा था |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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