🌺🌲🌺🌲🌺🌲🌺🌲🌺🌲🌺
‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ३६* 🌹
🩸🍏🩸🍏🩸🍏🩸🍏🩸🍏🩸
*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
*लक्ष्मण जी* मेघनाथ के सम्मुख जाकर अपने धनुष की टंकार से युद्ध की घोषणा करते हैं | मेघनाथ ने कहा :- *लक्ष्मण !* मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था | आज मैं तेरा वध करके अपने भाइयों की हत्या का बदला लूंगा | *लक्ष्मण जी* ने कहा :- मूर्ख ! वीर युद्ध क्षेत्र में कभी प्रलाप करते है ! युद्ध करते हैं !! ऐसा करके *लक्ष्मण जी* ने अपने तीखे बाणों से मेघनाथ पर प्रहार कर दिया |
*लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा !*
*भिरहिं परस्पर करि अति क्रोधा !!*
*एकहि एक सकहिं नहिं जीती !*
*निसचर छल बल करइ अनीती !!*
*लक्ष्मण* एवं मेघनाथ दोनों ही अतुलनीय बलशाली है क्रोधित होकर एक दूसरे पर वाणों की वर्षा तो कर रहे हैं परंतु एक दूसरे को जीत नहीं पा रहे हैं | मेघनाथ ने जब देखा कि *लक्ष्मण* को सामने से जीतना संभव नहीं है तो वह छिपकर कर मायायुद्ध करने लगा |
*छिपइ कबहुँ खल युद्ध करइ ,*
*कबहुँक प्रगटत है सम्मुख आई !*
*कबहूँ रथ पर देखराइ परइ ,*
*कबहुँक आकाश मां परइ देखाई !!*
*माया करि माया युद्ध करइ ,*
*बोलइ दसकंधर केर दुहाई !*
*"अर्जुन" शेषवतार लखन ,*
*पल महँ सब माया दूरि पराई !!*
मेघनाद के माया युद्ध को देखकर *लक्ष्मण जी* ने श्री राम से कहा कि :- हे भैया ! इसके माया युद्ध को काटने के लिए मुझे *ब्रह्मास्त्र* चलाने का आदेश दीजिए | श्रीराम ने कहा :- *लक्ष्मण !* ब्रह्मास्त्र चलाना नीति के विरुद्ध है | *लक्ष्मण* ने कहा :- भैया ! यह राक्षस किसी भी नीति को नहीं मानते हैं तो मैं क्यों मानूं ? मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं कि :--
*अयुध्यमानं प्रच्छन्नं प्राञ्जलिम् शरणागतम् !*
*पलायमानम् मत्तं व न हन्तुं त्वमेहादृशा !!*
अर्थात *हे लक्ष्मण !* जो सम्मुख युद्ध न करके छिपकर मायायुद्घ कर रहा हो , शरणागत हो गया हो , युद्ध से भाग रहा हो या पागल हो गया वह उस पर ब्रह्मास्त्र जैसे महाअस्त्र का प्रयोग वर्जित है | *लक्ष्मण जी* ने कहा परंतु भैया उसके माया युद्ध का उत्तर यही है | श्रीराम ने कहा नहीं *लक्ष्मण !* अधर्म के द्वारा प्राप्त विजय कभी कल्याणकारी नहीं होती है ! अतः तुम वीरों की भांति धर्म युद्ध करो | जो आज्ञा कहकर *लक्ष्मण जी* ने क्रोध में भरकर मेघनाथ पर प्रहार किया | *श्री लक्ष्मण जी* ने मेघनाद के मायायद्ध को एक ही वाण से काट दिया | इस महासंग्राम को देवता देख रहे हैं | *लक्ष्मण जी* ने अनेकों बाणों से मेघनाथ के रथ एवं सारथी को को नष्ट कर दिया | मेघनाद जैसा बलशाली , देवराज इन्द्र को भी परास्त करके इंद्रजीत की उपाधि पाने वाला आज *लक्ष्मण जी* के बाणों से आहत होकर भय भीत दिखने लगा |
*नाना विधि प्रहार कर शेषा !* *राच्छस भयऊ प्रान अवशेषा !!*
*रावन सुत निज मन अनुमाना !*
*संकठ भयउ हरिहिं मम प्राना !!*
शेष जी *(लक्ष्मण जी)* मेघनाथ पर अनेक प्रकार के प्रहार करने लगे | *लक्ष्मण जी* के प्रहारों से व्याकुल होकर मेघनाद को ऐसा प्रतीत हुआ कि अब प्राणों पर संकट आ गया है | जब उसे लगा कि लक्ष्मण उसका प्राणान्त कर देंगे तब :----
*जीत न पायो लखन को , विफल भये सब बान !*
*इंद्रजीत ने शक्ति को , तब तीनों आह्वान !!*
मेघनाद के जब सारे अस्त्र-शस्त्र विफल हो गये तब उसने शक्ति का आवाहन किया | *वीरघातिनी* नामक शक्ति उसने छल से *लक्ष्मण जी* के ऊपर चला दी , जिसके प्रभाव से *लक्ष्मण जी* युद्ध भूमि में मूर्छित होकर गिर पड़े | जिस समय *लक्ष्मण जी* शक्ति बाण के लगने से गिरे उस समय राक्षस वीर किलकारी मारने लगे , रामादल में हाहाकार मच गया | मेघनाद ने विचार किया कि *लक्ष्मण* को उठाकर ले चलें पिता जी प्रसन्न हो जाएंगे | उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि *लक्ष्मण* के शरीर को लंका ले चलो , परंतु शेषावतार *लक्ष्मण जी* के शरीर को कोई भी राक्षस वीर हिला नहीं सका | यहां तक कि मेघनाद ने भी अपनी सारी शक्ति लगा दी | *भगवत्प्रेमी सज्जनों !*:----
*दानव मानव गंधर्व यक्ष ,*
*पूजा करइं जिनको नित ध्यावैं !*
*जिन क्रोधानल में जरिके ,*
*चौदह भुवन पल मांहिं नसावैं !!*
*जगत आधार परे भुंइ पर ,*
*लीला प्रभु की कोउ जात न पावैं !*
*"अर्जुन" रावनसुत तेहि कहँ ,*
*बहु जोर लगाइ उठाइ न पावैं !!*
मेघनाथ अपनी पूरी शक्ति लगाकर भी जगत आधार *लक्ष्मण जी* को नहीं उठा पाया | इतने में हनुमान जी ने आकर मेघनाद को एक लात मार कर धराशायी कर दिया और *लक्ष्मण जी* को लेकर श्री राम की ओर चल पड़े | *लक्ष्मण* को अचेत अवस्था में हनुमानजी लेकर आ गये | श्री राम ने *लक्ष्मण* को अचेत देखा तो उनका सिर अपनी गोद में रखकर विलाप करने लगे |
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* थोड़ा समझने का प्रयास करें | *लक्ष्मण जी* जीव है और श्री रामजी ब्रम्ह | जीव ब्रह्म की गोद में पहुंचा कैसे ?? हनुमान जी के माध्यम से | हनुमान जी क्या हैं ?? हनुमान जी संत हैं | *मित्रों !* इस मायामय संसार में जीव काम , क्रोध , मोह , लोभ , अहंकार , मात्सर्य आदि अवगुणों के चक्रव्यूह में फंसकर इस संसार में आने का उद्देश्य भूल जाता है , और वह भौतिकवादी सांसारिकता में अचेत हो जाता है | यहाँ आकर ब्रह्म को जानते हुए भी ब्रह्म की ओर उन्मुख नहीं हो पाता | जीव को ब्रह्म की ओर उन्मुख कराने में संतों की मुख्य भूमिका होती है | सन्त का स्वयं का कोई उद्देश्य न होकर एक ही उद्देश्य होता है लोक कल्याण | जिस प्रकार अचेत *लक्ष्मण जी* को उठाकर हनुमान जी ने श्रीराम की गोदी तक पहुंचा दिया उसी प्रकार यदि जीव स्वयं को संतो के चरणों में समर्पित कर दें तो सन्त उसको परमात्मा तक पहुंचाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं , परंतु स्वयं का समर्पण किसी भी संत चरणों में करने के पहले यह अवश्य परख लेना चाहिए कि वह सन्त है या कि कपट वेषधारी झूठा संत | *लक्ष्मण* को देखकर श्री राम जी विलाप करने लगे | पूरा वानरदल शोकसागर में डूबने लगा |
*शेष अगले भाग में :----*
🔥♻️🔥♻️🔥♻️🔥♻🔥️♻️🔥
आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀