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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ३७* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
श्री राम जी *लक्ष्मण* को गोद में लेकर विलाप कर रहे हैं ! नर लीला करते हुए श्री राम कहते हैं हे *भैया लक्ष्मण !* उठ जाओ क्यों अपने भैया को रुला रहे हो ? मैंने तुम्हारे ही बल पर रावण से युद्ध ठाना था , आज तुम इस प्रकार हम से मुंह मोड़ कर नहीं जा सकते ! *लक्ष्मण* तुम मेरे एक इशारे पर काल को भी बांधने को तैयार हो जाते थे आज तुम्हें मेरी करुणामयी पुकार क्यों नहीं सुनाई पड़ रही है ? उठ जाओ भैया ! काहे अपने भैया को रुला रही हो | विभीषण ने कहा प्रभो ! यदि आप ऐसे अधीर हो जायेंगे तो सारे संसार का क्या होगा ? श्री राम ने कहा लंकेश ! आज मेघनाद ने *लक्ष्मण* को ही नहीं अपितु पूरे रघुकुल का विनाश कर दिया है | मेरी मैया ने मुझसे कहा था राम ! *लक्ष्मण* को लिए बिना वापस मत आना | तो जब *लक्ष्मण* ही नहीं रहेगा तो मैं जीवित कौन सा मुँह लेकर अयोध्या जाऊंगा | श्री राम कहते हैं :---
*लखन बिना मोरे प्रान नहीं ,*
*मोरे बिनु प्रान तजेगी सीता !*
*अवधि पै जौ पहुँचौं न अवध ,*
*प्रान तजइ मोरा भरत सुभीता !!*
*भरत बिना शत्रुघ्न अरु जननी ,*
*सब मरिहहिं पुरजन मनचीता !*
*"अर्जुन" कुल रघुकुल नाश भयो ,*
*रावन सुत ने हम सों रन जीता !!*
श्री राम कहते हैं :- हे *भैया लक्ष्मण !* उठो नहीं तो तुम्हारे साथ मैं भी प्राण त्याग दूंगा , मेरे बिना सीता नहीं रहेगी और भाई भरत ने भी कहा था कि चौदह वर्ष के बाद एक दिन भी बीतेगा और मैं अयोध्या नहीं आऊंगा तो वह भी अपने प्राण त्याग दे देगा , भरत के बिना शत्रुघ्न भी नहीं रहेगा | *लक्ष्मण !* जिसके चारों पुत्र नष्ट हो जाएंगे उसकी माताएं कैसे जीवित रहेगी ? *अरे ! लक्ष्मण !* आज यदि तुम न उठे तो पूरा रघुकुल समाप्त हो जाएगा | तुम ही इस रघुकुल के आधार हो , *लक्ष्मण* मेघनाद ने तुम्हें ही नहीं अपितु पूरे रघुकुल को जीत लिया है | श्री राम के विलाप को देखकर जामवंत जी ने लंका में रह रहे सुषेण वैद्य को लाने को कहा | हनुमान जी सुषेण वैद्य को भवन सहित उठा लाये | सुषेण से विभीषण ने कहा :- हे वैद्यराज आप *लक्ष्मण* का उपचार कीजिए | सुषेण वैद्य ने विभीषण से कहा :- मैं राष्ट्र विरोधी नहीं हूं | वह वैद्य भगवान श्रीराम से कहता है कि है राघव मैंने सुना है कि आप *धर्म हेतु अवतरेहुं गोसाईं* अर्थात आप का अवतरण धर्म की स्थापना के लिए हुआ है | तो हे रघुनंदन ! आज मैं आपसे अपना धर्म पूछना चाहता हूं | भगवान श्री राम एवं वैद्य सुषेण की इस वार्ता को *पण्डित राधेश्याम* ने अपनी *राधेश्याम रामायण* में बहुत ही सुंदर शब्दों में लिखा है | वैद्य कहता है :---
*मैं वैद्य दशानन के घर का ,*
*किस तरह आपका काम करूं !*
*लंकापति के बैरी को मैं ,*
*बोलो कैसे आराम करूँ !!*
*यदि बात अधर्म धर्म की हो ,*
*तो कर्मशील क्या कर्म करें ?*
*हे राघव क्या तुम कहते हो ,*
*यह वैद्य सुषेन अधर्म करें ??*
*सुषेण वैद्य ने कहा कि :- राघव ! मैं रावण का राजवैद्य हूं ! इस समय जब हमारे राष्ट्र पर आपत्ति आई हो तो क्या मेरा यह धर्म है कि मैं अपने राजा के बैरी को जीवनदान दूँ ! हे राम ! आप धर्म की मूर्ति इस समय मेरा क्या धर्म है आप हमें बताने की कृपा करें | भगवान श्री राम कहते हैं हे सुषेण ! इस समय तुम्हारा धर्म अपने राजा की सहायता करना है शत्रु की सहायता करना कदापि नहीं | और यदि आप धर्म की बात करते हैं तो मेरी बात सुने | श्री राम ने कहा :--
*जिस धर्म की खातिर राज्य गया ,*
*श्री पितृदेव का मरण हुआ !*
*जिस धर्म की खातिर भरत छुटा ,*
*सीता प्यारी का हरण हुआ !!*
*उस धर्म मार्ग पर लक्ष्मण भी ,*
*यदि मरता है तो मर जाए !*
*पर आन यही राघव की है ,*
*हां ! धर्म नहीं जाने पाए !!*
श्री राम कहते हैं वैद्यराज ! तुम्हारा यह धर्म कदापि नहीं है कि तुम हमारी सहायता करो | विभीषण ने कहा :- वैद्यराज ! वैद्य का एक ही धर्म होता समुपस्थित रोगी का उपचार करना | श्रीराम की धर्मयुक्त बात सुनकर सुषेण धन्य हो गया | मृत संजीवनी औषधि के विषय में बताकर कहा कि यह औषधि यदि सूर्योदय के पहले ही प्राप्त हो जाय तब तो लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं | हनुमान ने कहा कि आप चिंता ना करें बूटी लेने मैं जाऊंगा | हनुमान जी रात में बूटी लेने के लिए हिमालय की ओर चल पड़े | मार्ग में कालनेमि का वध करके बूटी लेकर आते समय भरत मिलाप करके सूर्योदय के पहले ही पूरा पर्वत खंड लेकर श्री राम के पास पहुंच गए | सुषेण को बूटी मिल गई उसकी चिकित्सा से *लक्ष्मण जी* उठ कर बैठ गए | उठते ही लक्ष्मण जी ने हुंकार भर कर कहा :---
*उठतहिं हुंकार भरेउ लछिमन ,*
*दसकन्धर पूत तू कहां छुपो रे !*
*कहाँ गयो मम धनुष औ बान ,*
*तूणीर हमारो कहाँ गयो रे !*
*हे हनुमान ! कहां हम हैं ,*
*सब वानर काहे शिथिल परो रे !*
*"अर्जुन" पकरि के लखनलाल ,*
*रघुनन्दन अपनी बाँह भरो रे !!*
*लक्ष्मण* को श्रीराम ने अपने हृदय से लगा लिया | भगवान की आंखों में प्रेमाश्रु भर गये | श्रीराम ने कहा :- *भैया लक्ष्मण !* आज रघुकुल पर बहुत बड़ा संकट आया था और इस संकट को टाला ही संकटमोचक हनुमान ने | वीरघातिनीशक्ति लगने के बाद से लेकर अब तक का सारा वृत्तांत हनुमान जी ने *लक्ष्मण* को सुनाया | *लक्ष्मण जी* को स्वस्थ जानकर के वानर सैनिक *जय श्री राम* का उद्घोष कर के गर्जना करने लगे | तब श्री राम की आज्ञा पाकर हनुमानजी ने सुषेण को के स्थान पर पहुंचा दिया |
*कपि पुनि वैद तहाँ पहुँचावा !*
*जेहि विधि तबहिं ताहि लइ आवा !!*
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* मनुष्य का यह कर्तव्य होना चाहिए कि अपना कार्य सिद्ध हो जाने के बाद अपने कार्य में सहायता करने वाले विशिष्ट व्यक्ति को भूले न | आज लोग अपना कार्य सिद्ध करने के लिए किसी की शरण में जाकर दीन हीन बनकर उसकी सहायता से अपने कार्य सिद्ध करते हैं और अपना कार्य सिद्ध हो जाने के बाद उसी व्यक्ति की उपेक्षा करने लगते हैं , जिसके माध्यम से उनका अभीष्ट सिद्ध होता है | ऐसे लोगों को श्रीराम के आदर्शों की शिक्षा लेने की आवश्यकता है | यदि श्रीराम चाहते तो *लक्ष्मण* के स्वस्थ हो जाने के बाद वैद्य से कह सकते थे कि अब आप अपनी लंका लौट जायं | परन्तु श्री राम ने ऐसा नहीं किया | ससम्मान से सुषेण जी को उनके भवन सहित हनुमान के माध्यम से यथा स्थान पहुंचाया | मनुष्य को संकट के समय अपना धैर्य एवं धर्म नहीं त्यागना चाहिए | धैर्य एवं धर्म ही संकट के समय मनुष्य के सच्चे हितैषी होते हैं | श्रीराम ने *लक्ष्मण* के प्राण संकट में होने के बाद भी सुषेण को उसके धर्म पालन की शिक्षा दी | इसीलिए श्री राम को *मर्यादा पुरषोत्तम* कहा गया है |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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