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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ३८* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
*लक्ष्मण जी* सुषेण वैद्य के उपचार से स्वस्थ हो गये , यह खबर जब लंका में पहुंची तो :--
*यह वृत्तांत दशानन सुनेऊ !*
*अति विषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ !!*
यह समाचार जब रावण ने सुना कि *लक्ष्मण* स्वस्थ हो गये हैं तो उसको बहुत कष्ट हुआ उसने विषाद से अपना सिर पीट लिया | मेघनाद ने कहा :- पिताजी ! चिंता ना करें ! आज *लक्ष्मण* एवं राम दोनों का वध मैं स्वयं करूंगा | रावण ने कहा :- नहीं पुत्र ! अब मैं कुंभकर्ण को जगाऊँगा |
*व्याकुल कुंभकरण पहिं आवा !*
*विविध जतन करि ताहि जगावा !*
बहुत प्रयास करके विशाल शरीर धारी कुंभकर्ण को जगाकर रावण ने उसे सारा वृत्तांत सुनाया | सारी कथा सुनने के बाद कुंभकर्ण ने कहा भैया ! आपने यह क्या किया ? जिसकी सारे देवता दिन-रात पूजा करते हैं आपने उनसे वैर कर लिया ? आपने मुझे जगाने में बहुत देर कर दी | यद्यपि मैं जानता हूं कि उनके सम्मुख जाने पर मेरा उद्धार ही होगा परंतु मुझे दुख है कि तुमने गलत कार्य किया है , लेकिन मैं अपने राजा एवं राष्ट्र के सम्मान के लिए अपना प्राण निछावर कर दूंगा | ऐसा कहकर कुंभकर्ण के रणभूमि में पहुँचा और भीषण युद्ध किया | बलशाली कुम्भकर्ण अंततोगत्वा श्री राम के हाथों मोक्ष को प्राप्त हुआ | रावण अपने भाई कुंभकर्ण के शीश को हृदय से लगाकर विलाप करने लगा | उसी समय :---
*मेघनाद तेहि अवसर आयउ !*
*कहि बहु कथा पिता समझायउ !!*
*देखहुँ कालि मोरि मनुसाई !*
*अबहिं बहुत का करउँ बड़ाई !!*
मेघनाद ने कहा :- पिताजी ! आप व्यर्थ विलाप कर रहे हैं | कल आप पर पुत्र मेघनाद युद्ध ही समाप्त कर देगा | दूसरे दिन मेघनाथ अपनी कुलदेवी निकुंभला की पूजा करके मायामय रथ पर सवार होकर युद्धभूमि पहुंच गया | युद्धभूमि में पहुंचते ही मेघनाथ काल बन गया |
*मारुतसुत अंगद नल नीला !*
*कीन्हेउं विकल सकल बलसीला !!*
मेघनाद ने हनुमान , अंगद , सुग्रीव , नल , नील आदिक वीरों को अपने रण कौशल से व्याकुल कर दिया | मेघनाथ गरजकर कहने लगा :----
*पूत सुमित्रा के कहां छुपेउ ,*
*कहां भाग गयउ राघव धनुधारी !*
*सम्मुख नहिं देखराइ परइं ,*
*बल भूलि गए आपन बलधारी !!*
*साहस युद्ध के खत्म भयो यदि ,*
*आइ गहौ अब शरण हमारी !*
*"अर्जुन" रावनसुत गरजइ ,*
*भयभीत भये सब सुर मुनि झारी !!*
मेघनाद की गर्जना सुनकर *लक्ष्मण* ने श्रीराम से कहा :- भैया ! मुझे युद्ध मे जाने की आज्ञा दीजिए | मेघनाद के यह कटाक्ष सहन नहीं हो रहे है | श्रीराम ने कहा :- *लक्ष्मण !* युद्ध आवेश में उत्साह से करना , क्योंकि उत्साह एवं आवेश में अंतर है | प्राय: लोग क्षणिक आवेश में आकर कुछ ऐसे कृत्य कर देते हैं जिससे कि जीवन भर उन्हें पश्चाताप ही करना पड़ता है | मनुष्य को आवेश की अपेक्षा उत्साह से कार्य करना चाहिए | उत्साही मनुष्य कभी न तो हार मांनता है और न ही असफल होता है | इसलिए *है लक्ष्मण !* तुम आवेश में नहीं उत्साह में भरकर युद्ध करने जाओ | श्री राम की आज्ञा पाकर *लक्ष्मण जी* वहां पहुंचे जहां मेघनाद गर्जना कर रहा था | *लक्ष्मण* ने पहुंचते ही कहा :--
*व्यर्थ कहावत बीर बली ,*
*छल से रन महं मोहिं शक्ती मारी !*
*चोर पिता के सपूत भी चोर ,*
*फिरे बिरथा बनिके बलधारी !!*
*माता के दूध लजावत घूमत ,*
*युद्ध करत माया करि भारी !*
*"अर्जुन" सम्हल निशाचर मूढ़ ,*
*लछिमन बनि आयो मृत्यु तुम्हारी !!*
मेघनाथ एवं लक्ष्मण का घनघोर संग्राम हुआ कभी अग्निबाण कभी वायु बाण का प्रहार चल रहा है | युद्ध करते-करते दिन व्यतीत हो गया | भीषण युद्ध देखकर तीनों लोक भयभीत हो रहे हैं परंतु श्री राम खड़े मुस्कुरा रहे हैं | श्री राम को मुस्कुराता देखकर विभीषण कहते हैं :- भगवन ! सूर्यास्त होने वाला है और सूर्यास्त के बाद मेघनाद की तामसिक शक्तियां चौगुनी हो जाएंगी | यदि मेघनाद अदृश्य होकर युद्ध करने लगेगा तो अनर्थ भी हो सकता है | इसलिए हे देव ! अब आप इस युद्ध में *लक्ष्मण* की सहायता करने के लिए आगे बढ़िए |
*सुनत नचन लंकेश के , लेकर के धनु हाथ !*
*"अर्जुन" रण में आ गये , रणकर्कश रघुनाथ !!*
श्री राम के रण में आते ही मेघनाद अदृश्य हो गया | *लक्ष्मण* ने कहा :- भैया ! आप के आते ही मेघनाथ भयभीत होकर भाग गया | श्रीराम ने कहा :- नहीं *लक्ष्मण !* मेघनाथ का नाम इंद्रजीत है वह भागा नहीं है बल्कि यह उसके युद्ध की कोई नई रणनीति होगी | विभीषण ने कहा :- *लक्ष्मण* सावधान रहना मेघनाथ कभी भी कोई भी प्रहार कर सकता है | इधर मेघनाद ने जब देखा कि उसका कोई भी अस्त्र *लक्ष्मण* को विचलित नहीं कर पाया और राम भी *लक्ष्मण* की सहायता करने के लिए आ गए हैं तो उसने एक नई युक्त निकाली |
*अस्त्र-शस्त्र से युद्ध में जब पायो नहिं पार !*
*मेघनाथ ने दोऊ पर , नागपाश दियो डार !!*
मेघनाद ने राम *लक्ष्मण* को नागपाश मैं बांध लिया | नागपाश में बंधकर दोनों भाई मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े | श्री राम को नागपाश के बंधन में बंधा देखकर कुछ लोग कहते हैं कि श्री राम तो परमात्मा एवं सदा स्वतंत्र रहने वाले अनंत भगवान हैं तो उन्हें कोई बंधन कैसे बांध सकता है ? युद्ध की मर्यादा रखने एवं मानव मात्र को यह संदेश देने के लिए कि मनुष्य शरीर को पाकर दुखों और कष्टों से स्वयं को नहीं बचाया जा सकता , श्रीराम नाग पाश में बंध गए | ईश्वर को समदर्शी कहा गया है मेघनाथ जैसे महान बलशाली योद्धा को सम्मान देने के लिए ही श्री राम *लक्ष्मण* नागपाश में बंध गये | रामादल में एक बार फिर शोक की लहर दौड़ गई | श्री राम *लक्ष्मण* के शरीर में विष फैलने लगा तभी एक बार फिर संकटमोचक हनुमान जी नारद जी के द्वारा भेजे गये गरुड़ जी को लेकर आ गये | गरुड़ जी ने भगवान को नागपाश से मुक्त कर दिया | श्री राम *लक्ष्मण* को नागपाश से मुक्त देखकर वानरदल प्रसन्न हो गया | देवता गगन से पुष्प बरसाने लगे |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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