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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ३९* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
मेघनाद ने जब सुना कि राम *लक्ष्मण* नागपाश से मुक्त हो गये तो उसे क्रोध के साथ-साथ आश्चर्य भी हुआ | उसने मन में दृढ़ निश्चय किया और लंका के गुप्त स्थान पर स्थित देवी निकुंभला के मंदिर में बैठकर शत्रुंजय यज्ञ करने लगा | दूसरे दिन लंका की ओर से कोई भी बीर लड़ने नहीं आया तो श्रीराम को आश्चर्य हुआ | श्रीराम ने कहा विभीषण ! क्या रावण ने पराजय स्वीकार कर ली है ? क्योंकि आज कोई भी वीर युद्ध क्षेत्र में दिखाई नहीं पड़ रहा है | विभीषण ने कहा :- प्रभो ! रावण एवं मेघनाद पराजय स्वीकार करने वाले नहीं हैं , वह अवश्य कुछ नई रणनीति बना रहे होंगे | अचानक विभीषण की दृष्टि आसमान में धुंएं के बादलों पर गई | विचार मग्न होते हुए विभीषण श्रीराम से कहते हैं :- राघव ! आप पूछ रहे थे कि आज कोई वीर क्यों नहीं आया तो हे श्री राम ! यह धुंएं का समूह आप देख रहे हैं ? *लक्ष्मण* ने कहा यह कैसा धुआँ है ? विभीषण ने कहा ;- हे *लक्ष्मण !* हे राघव !!
*मेघनाद मख करइ अपावन !*
*खल मायावी देव सतावन !!*
*जौ प्रभु सिद्धि होइ सो पाइहि !*
*नाथ वेगि पुनि जीति न जाइहि !!*
विभीषण कहते हैं कि देवताओं को भयाक्रान्त करने वाला मेघनाद लंका की कुलदेवी भवानी निकुंभला का बहुत बड़ा भक्त है | वह गुप्त स्थान पर बैठकर एक अपवित्र तामसिक यज्ञ कर रहा है , उसका यह यज्ञ पूर्ण एवं सफल हो गया तो मेघनाद अजेय हो जाएगा फिर उसे कोई भी जीत नहीं सकता | विभीषण की बात सुनकर श्री राम ने हनुमान , अंगद एवं जामवंत आदिक वीरों को बुलाकर कहा :--
*लछिमन संग जाहुं सब भाई !*
*करहुं विधंस जग्य कर जाई !!*
श्रीराम ने वानर वीरों से कहा :- हे भाई आप लोग *लक्ष्मण* के साथ जाकर मेघनाद के द्वारा किए जा रहे यज्ञ को विध्वंस कर दो | हाथ में धनुष लेकर *लक्ष्मण* जब श्रीराम के सामने आये तो श्रीराम ने *लक्ष्मण* से कहा :--
*तुम्ह लछिमन रन मारेहु ओही !*
*देखि सभय सुर दुख अति मोही !!*
*मारेहु तेहि बल बुद्धि उपाई !*
*जेहि छीजै निसिचर सुन भाई !!*
भगवान श्री राम ने *लक्ष्मण* से कहा :-- *हे लक्ष्मण !* देवताओं को मेघनाद के भय से भयभीत देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है इसलिए आज तुम अपने बल एवं बुद्धि से इंद्रजीत का वध कर दो | श्री राम के मुखारविंद से मेघनाद के वध का आदेश सुनकर देवता पुष्प बरसाने लगे |तीनों लोकों में यह घोषणा हो गई कि आज *लक्ष्मण* द्वारा मेघनाद का वध हो जाएगा क्योंकि आज श्री राम ने मेघनाद के वध का आदेश *लक्ष्मण* को दे दिया है , और श्रीराम *"अनृतं नोक्तं पूर्वम्"* कभी झूठ नहीं बोलते | अपने भैया श्री राम का आदेश एवं आशीर्वाद पाकर *लक्ष्मण* का शरीर रोमांचित हो गया और *लक्ष्मण जी* कहने लगे :---
*आज वधउँ दसकन्धर पूत को ,*
*प्रभु साक्षी मानि के शपथ उठावौं !*
*जौ न हतउँ तेहि रन महँ आज ,*
*तो रघुपति सेवक मैं न कहावौं !!*
*एक नहीं सौ सौ शंकर यदि ,*
*इंद्रजीत कहँ आइ बचावौं !*
*"अर्जुन" आज बचे न निसाचर ,*
*बचे तो मैं फेरि के मुंह न दिखावौं !!*
*लक्ष्मण जी* की प्रतिज्ञा एवं क्रोध देख कर आज चार और प्रसन्नता व्याप्त हो गई | जो दिकपाल , लोकपाल , देवता एवं पृथ्वी जनकपुर तथा पंचवटी में (भरत के प्रति लक्ष्मण का क्रोध) देखकर भयभीत हो गए थे और अपना स्थान छोड़कर भाग जाना चाहते थे वही आज *लक्ष्मण* का क्रोध देखकर भयभीत न होकरके प्रसन्न हो रहे हैं | आज *लक्ष्मण* का क्रोध देखकर यदि सभी देवता एवं दिक्पाल प्रसन्न हो रहे हैं तो उसका कारण यह है कि आज *लक्ष्मण* का क्रोध सकारात्मक है |
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* क्रोध के भी दो स्वरूप होते हैं :- सकारात्मक एवं नकारात्मक | जहां नकारात्मक क्रोध को मनोविकार कहा गया है वहीं सकारात्मक क्रोध को परम आवश्यक बताया गया है | जीवन में क्रोध का होना भी आवश्यक है क्योंकि यदि समाजविरोधी , नीतिविरोधी लोगों का विरोध न किया जाय तो वे समाज का कोढ़ बन जाते है इसलिए किसी भी प्रकार की कुरीति एवं समाज का अहित करने वालों पर क्रोध अवश्य करना चाहिए | यदि ऐसे समय में भी क्रोध नहीं आता है तो आततायी पूरे समाज को डरपोक मानकर मनमाने कृत्य करने लगता है | हिरणाकश्यप के प्रति भगवान नरसिंह ने क्रोध न किया होता तो वह संपूर्ण सृष्टि के लिए घातक बन गया था | इसीलिए क्रोध का सकारात्मक रूप विध्वंसक नहीं बल्कि सृजनात्मक होता है | आज *लक्ष्मण जी* का क्रोध एक निशाचर का वध उसके भय से तीनों लोकों को छुटकारा दिलाने के लिए है | इसीलिए आज ना तो दिगपाल थरथराये और ना ही धरती कांपी , बल्कि आज *लक्ष्मण* के क्रोध पर देवता गगन से पुष्प वर्षा कर उनका अभिनंदन कर रहे हैं | मेघनाद साधारण योद्धा नहीं है , इसलिए श्री राम को *लक्ष्मण* की सुरक्षा की भी चिंता है , क्योंकि श्रीराम जानते हैं कि जीवन में किसी भी क्षण तनिक भी असावधानी किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है | इसीलिए श्रीराम नें जामवंत सुग्रीव एवं विभीषण को बुलाकर कहा :---
*जामवंत सुग्रीव विभीषन !*
*सेन समेत रहेउ तीनिउ जन !!*
श्री राम कहते हैं कि :- हे जामवन्त जी आप सुग्रीव एवं विभीषण जी सेना लेकर हमारे अनुज *लक्ष्मण* के आस-पास ही रहना क्योंकि मेघनाद ने देवताओं को भी परास्त करने में सफलता प्राप्त की है | अतः आप सभी सजग रहते हुए *लक्ष्मण* की सुरक्षा करना | इस प्रकार सब को दिशा निर्देश देते हुए श्री राम ने विदा किया |
*रघुपति चरन नाइ सिरु , चलेउ अनंत तुरंत !*
*अंगद नील मयंद नल , संग सुभट हनुमंत !!*
श्री राम के चरणों में प्रणाम करके हनुमान , अंगद एवं मयंद आदिक वीरों को साथ में लेकर पृथ्वी को धारण करने वाले *श्री लक्ष्मण जी* पृथ्वी का भार हल्का करने के लिए चल पड़े |
*अंगद नील मयंद चले ,*
*सुग्रीव चले कपिदल सब गाजे !*
*रीछराज लंकापति मध्य ,*
*सुमित्रा के लालन वीर विराजे !!*
*आइ गये सोइ गुप्त गुफा ,*
*घननाद जहाँ कुलदेविहिं याजे !*
*"अर्जुन" देखिके कपिदल भीर ,*
*निसाचर सैनिक इत उत भाजे !!*
*लक्ष्मण जी* उस गुफा के बाहर अपनी सेना लेकर पहुंच गए जहां एकांत में मेघनाद कुलदेवी निकुंभला की यज्ञ करके सिद्धियां प्राप्त करना चाहता था | बंदर - भालू की सेना देखकर निशाचर सैनिक (जो गुफा की सुरक्षा में लगे थे)वह भाग खड़े हुए | वानरों की सेना उस तामसिक यज्ञ को विध्वंस करने के लिए गुफा में प्रवेश कर गयी |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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