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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ४३* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
पुत्र मेघनाद एवं पुत्रवधू सुलोचना की सद्गति के बाद रावण स्वयं युद्ध क्षेत्र में आ गया और श्रीराम से उसका घनघोर युद्ध हुआ | अंततोगत्वा श्री राम ने आततायी रावण का अंत किया | जब रावण का वध हुआ तो तुलसीदास जी ने कवितावली में बहुत सुंदर भाव दिया :--
*कुंभकरन्नु हन्यो रन राम ,*
*दल्यो दसकंधर कंधर तोरे !*
*पूषन वंस विभूषन पूषन ,*
*तेज प्रताप गरे अरि ओरे !!*
*देव निसान बजावत गावत ,*
*साँवत सो मनभावत भो रे !*
*नाचत वानर भालु सबै ,*
*"तुलसी" कहि हा रे हहा भै अहो रे !!*
अर्थात :- भगवान श्रीराम ने युद्ध में कुंभकरण को मारा और रावण की गर्दन तोड़ कर उसका भी वध कर दिया | इस प्रकार सूर्यवंशी विभूषण श्री राम रूप सूर्य के प्रतापरूप तेज से शत्रुरूपी ओले गल गए | देवता लोग नगाड़े बजाकर गाते हैं क्योंकि उनका सामंतपना (अधीनता) चला गया , और उनको मनचाहा वरदान मिल गया | वानर भालू भी सब के सब अहो रे खूब हुई ! अहो रे खूब हुई ! ऐसा कहकर नाचने लगे |
*जय-जय धुनि पूरी ब्रह्मांडा !*
*जय रघुवीर प्रबल भुजदंडा !!*
*बरसहिं सुमन देव मुनि बृंदा !*
*जय कृपाल जय जयति मुकुंदा !!*
रावण का वध होने पर सकल ब्रह्मांड में जय-जय की ध्वनि भर गई | परम प्रतापी श्री राम - रघुवीर की जय हो ! देवता और मुनियों के समूह फूल बरसाते हैं | और कहते हैं कृपालु की जय हो ! मुकुंद की जय हो !! जब देवता लोग चले गए तब *लक्ष्मण जी* ने कहा भैया ! अब विलंब क्यों है ? माता सीता को अब बुला लिया जाय क्योंकि जिसके कारण वे लंका में कैद थीं उसका तो वध हो चुका है | *लक्ष्मण जी* कहते हैं कि हे प्रभु ! अब यह पुत्र अपनी माता का दर्शन करने को लालायित है | भगवान श्री राम ने कहा *लक्ष्मण !* यद्यपि तुम्हारी भाँति मैं भी सीता के लिए व्याकुल हूँ , परंतु *लक्ष्मण !* हमें उतावलेपन में कोई भी नीतिविरोध कार्य नहीं करना चाहिए | *लक्ष्मण* ने कहा अब कैसी अनीति ?? श्री राम ने कहा *लक्ष्मण !* रावण लंका का राजा था उसकी मृत्यु के बाद लंका अनाथ (शासकविहीन) हो चुकी है | इस प्रकार शासक से विहीन हो चुकी लंका से सीता को बुलाना अनीति ही कही जाएगी | इसलिए *लक्ष्मण* पहले विभीषण को लंका का राजा बनाओ फिर उनकी आज्ञा से सीता को यहां लाया जाएगा | श्री राम जी की नीतियुक्त बात सुनकर जय जयकार होने लगी |
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* मनुष्य को अपने विजय की प्रसन्नता में अपनी मर्यादा का त्याग कदापि नहीं करना चाहिए | श्री राम ने सुग्रीव जामवन्त आदि को बुलाकर कहा :---
*सब मिलि जाहुँ विभीषन साथा !*
*सारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा !!*
श्री राम कहते हैं कि *लक्ष्मण !* तुम सबको लेकर जाओ और विभीषण का राज्याभिषेक करो | पिता को दिए वचन के कारण मैं नगर में नहीं जा सकता | श्रीराम की आज्ञा पाकर विभीषण का राज्याभिषेक हुआ तब सीताजी को लाने का प्रस्ताव रखा गया | राक्षियों ने सीता जी का सिंगार करके सुंदर पालकी पर बैठा दिया | पालकी रामादल में पहुंची | परंतु यह क्या ?? जिस सीता को प्राप्त करने के लिए इतना बड़ा संघर्ष हुआ उसी को श्रीराम ने अग्नि परीक्षा की आज्ञा दे दी | श्रीराम जी के इस आदेश का विरोध किया *श्री लक्ष्मण जी* ने | पहले तो *लक्ष्मण जी* ने माता की पवित्रता पर संदेह न करने की विनती की , परंतु जब श्रीराम ना माने तो *लक्ष्मण* क्रोधित हो गए और कहने लगे :---
*जीवत है जब लौं लछिमन ,*
*तब लौं नहिं पूरहिं बात तुम्हारी !*
*रावन कैद मां दुक्ख उठायव ,*
*फिर न दुखी होयं मात हमारी !!*
*हे प्रभु माफु करहु हमका ,*
*अपराध छमहुँ सब चूक हमारी !*
*"अर्जुन" पूत के प्रान रहत ,*
*नहिं अगिया मां कुदिहैं महतारी !!*
*लक्ष्मण जी* का श्री राम के विरुद्ध क्रोध देखकर सारा वानर दल कांप गया | श्रीराम ने कहा :- *लक्ष्मण !* तुम सत्यता को समझने का प्रयास करो | *लक्ष्मण* ने कहा भैया ! मैं मात्र एक ही सत्यता जानता हूं कि मेरी माता निर्दोष है | श्रीराम ने कहा :- *लक्ष्मण !* मैं सीता को दोष नहीं लगा रहा हूं परंतु एक रहस्य जो मैंने तुमसे भी छुपा रखा था वह बता रहा हूं सुनो :---
*सीता प्रथम अनल महं राखी !*
*प्रगट कीन्ह चहँ अंतर साखी !!*
*अनुज लक्ष्मण !* तुम्हारी माता सीता अग्नि देव के पास हैं | यह तो उनकी छाया है | छायारूपी सीता अग्नि को समर्पित करके हमें अपनी सीता अग्नि देव से प्राप्त करनी है , क्योंकि मैंने ही सीता से कहा था :---
*तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा !*
*जौं लगि करहुँ निसाचर नासा !!*
भगवान श्री राम की मर्मयुक्त बात सुनकर *लक्ष्मण* का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने अग्नि प्रकट की | छाया सीता अग्नि में प्रवेश कर गई और तब स्वयं अग्निदेव ने सुंदर शरीर रखकर :--
*धरि रूप पावक पानि गहि , श्री सत्य श्रुति जग विदित जो !*
*जिमि छीरसागर इंदिरा , रामहिं समरपीं आनि सों !!*
अग्निदेव ने वेदों में और जगत में प्रसिद्ध वास्तविक सीता जी का हाथ पकड़कर उन्हें श्री राम जी को उसी प्रकार समर्पित कर दिया जैसे छीर सागर ने श्री विष्णु भगवान को लक्ष्मी जी को समर्पित किया था | इस प्रकार सीता जी श्री राम को प्राप्त हुई | *भगवत्प्रेमी सज्जनों !* आज के युग में श्री राम के विरोधी उन्हें नारी को प्रताड़ित करने वाला बताते हुए अग्निपरीक्षा को अत्याचार कहने वाले श्री राम की लीला को जान ही नहीं सकते , क्योंकि श्री राम को समझने के लिए *श्रद्धा एवं विश्वास* की आवश्यकता होती है , और आज *श्रद्धा एवं विश्वास* की कमी स्पष्ट दिखाई पड़ती है | जिनकी लीला को सदैव साथ में रहने वाले *लक्ष्मण जी* नहीं जान पाये और अपने स्वामी श्री राम का विरोध करने को तैयार हो गए , उनकी माया को साधारण मनुष्य कभी नहीं समझ सकता क्योंकि भगवान की लीला एवं स्वरूप ऐसा दिव्य है कि:--
*सोइ जानइ जेहि देहुँ जनाई !*
*जानत तुम्हहिं तुम्हहिं होइ जाई !!*
भगवान की माया एवं लीला वही जान सकता है जिसे वह स्वयं जनाना चाहें | जिस दिन मनुष्य भगवान की लीला एवं माया को जान जाता है उस दिन वह संसार से अलग हटकर भगवान का ही हो जाता है |
भगवान श्री राम सीता , *लक्ष्मण* एवं प्रमुख वानरवीरों के साथ पुष्पक विमान पर बैठकर अयोध्या की ओर चल पड़े |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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