
*भारतीय संस्कृति एवं सनातन मान्यताएं सदैव प्रकृति से जुड़ी रही हैं क्योंकि प्रकृति के सहयोग के बिना मानव जीवन संभव नहीं है | जिस प्रकार चौरासी लाख योनियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है उसी प्रकार बारह महीनों में छ: ऋतुयें बताई गई और इन छ: ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ वसंत ऋतु कहा गया है | माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को जब वसंत ऋतु प्रभावी होती है तब बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है | जाड़े की ठिठुरन कम होने के बाद सूर्य देव के उत्तरायण होते ही वसंत ऋतु का पदार्पण हो जाता है | पतझड़ के बाद जहां पेड़ पौधों मैं नई कोपले आने लगती हैं तथा प्रकृति एक नवीन श्रृंगार करती वहीं मानव जीवन में प्रेम का संचार होने लगता है | बसंत पंचमी के दिन ज्ञान की देवी भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होना बताया गया है | आज के दिन को बसंत पंचमी , ज्ञान पंचमी एवं श्री पंचमी के नाम से जाना जाता है | जीवन में ज्ञान के प्रकाश के बिना मनुष्य अंधकार में जीवन व्यतीत करता रहता है इसलिए बसंत पंचमी की भगवती सरस्वती की आराधना करके जीवन में ज्ञान ज्योति प्रकाशित करने का प्रयास करना चाहिए | बसंत का मानव जीवन में इसलिए भी महत्वपूर्ण योगदाम है क्योंकि शीत लहरी के प्रकोप से छुटकारा पाने के बाद मानव में नई ऊर्जा का संचार होता है , मानव के प्रेमीहृदय में प्रेम का संचार होने लगता है और यह सृष्टि नव प्रेम से आलोकित होने लगती है | जिस प्रकार मानव जीवन प्रेम के बिना व्यर्थ है कि लगता है उसी प्रकार यदि जीवन में / प्रकृति में बसंत का पदार्पण ना हो तो मानव जीवन या यह समस्त सृष्टि व्यर्थ ही लगने लगती है ! क्योंकि मानव के हृदय प्रेम का प्रादुर्भाव करने में वसंत का महत्वपूर्ण स्थान होता है | बसंत पंचमी का दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि गुरु एवं शुक्र के अस्त होने पर जहां सारे मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं वही बसंत पंचमी को अबूझ एवं जागृत मुहूर्त कहा गया है विवाह , भवन निर्माण एवं अन्य मांगलिक कार्य बसंत पंचमी के दिन बिना मुहूर्त देखे ही किए जा सकते हैं परंतु हम अपनी दिव्य परंपरा को भूलते जा रहे हैं |*
*आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में हमारे देश के युवा १४ फरवरी को वैलेंटाइन डे मना कर थोथे प्रेम का प्रदर्शन तो करते दिख रहे हैं परंतु बसंत पंचमी की दिन मनाए जाने वाले मदनोत्सव एवं वसंतोत्सव को भूलते जा रहे हैं जबकि मदनोत्सव का संबंध मनुष्य की उत्पत्ति के ऋतु काल धर्म से जुड़ा हुआ है | आज बसंत पंचमी के दिन से जब प्रकृति अपना श्रृंगार करना प्रारंभ करती है तो सौंदर्य के देवता कामदेव एवं रति के मिलन के रूप में मदनोत्सव प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कहना चाहता हूं कि काम के बिना सृष्टि का गतिमान होना संभव नहीं है क्योंकि ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि को मैथुनी सृष्टि बनाई है जिसमें रति एवं काम का महत्त्वपूर्ण योगदान है | आज हमारे देश के युवाओं को अपने मुख्य पर्वों के विषय में जानकारी ही नहीं है इसका कारण यही है कि आज के युवाओं ने सोशल मीडिया एवं गूगल को ही ज्ञान का भंडार मान लिया है अपने सनातन ग्रंथों का अध्ययन करने के लिए ना तो किसी के पास समय बचा है और ना ही वह करना चाहता है यही कारण है कि हम सनातन के पर्व एवं त्योहारों के विषय में अनभिज्ञ होते जा रहे हैं | बसंत पंचमी के दिन कामदेव एवं उनकी पत्नी रति की उपासना भी करनी चाहिए | हमारे देश के ग्रामीण एवं आंचलिक क्षेत्रों आज भी बसंत पंचमी के साथ-साथ कामदेव एवं रति के प्रेम भरे गीत गाए जाने की परंपरा बनी हुई है | आज हम वैलेंटाइन डे तो खूब उत्साह के साथ मनाते हैं परंतु शुद्ध प्रेम का पर्व मदनोत्सव मनाना भूल गए हैं | हमें अपनी सनातन संस्कृति की ओर लौटने की परम आवश्यकता है |*
*हमारी सनातन संस्कृति को आज आधुनिकता के साथ जोड़ने की परम आवश्यकता है जिससे कि हमारी प्रीति की प्राचीन रीति आधुनिकता एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर धूमिल एवं अंतर्ध्यान ना होने पाए |*