मैं प्राण हूँ
यत्र हूँ
तत्र हूँ
मैं सर्वत्र हूँ
मानो तो
तुम्हारा खसमखास,
नहीं मानो तो,
न कोई आकार हूँ
चाहो तो आस पास,
न चाहो तो भी साथ हूँ
नहीं कोई और है
मुझसे नजदीक
खींची हुई है
हमारे बीच एक लीक
बता मैं आखिर कौन हूँ?
हाँ, मैं तेरे प्राण हूँ
तभी देख पाता हूँ
कहा सुन पाता हूँ
भाव व्यक्त करता हूँ
कर्म सभी करता हूँ
मैं प्राण हूँ
इंसान की जान हूँ
प्यार इसे तुम करते
सब इसे हैं प्यार करते
आखीर मैं भी एक इंसान हूँ
सौहार्दपूर्ण गर तुम रहते
ईर्ष्या द्वेश नहीं करते
व्यवहार आहार विचार से
सात्विक तुम बनते
प्रेम सुधा हरपल बरसा
आह्लादित तुम
निश्चय ही रहते
प्रतारण- शोषण-
अत्याचार नहीं कोई करते
स्वर्ग इसी धरती पर
उतरा हरओर तुम पाते
तभी तुम इंसान बन रह पाते
सज्जन नेक इंसान कहलाते
कहते तुम, "मैं भी एक इंसान हूँँ।"
मैं कहता, "मैं ही तेरा प्राण हूँ।"
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार