💞💞गीत (चौपाई)💞💞
१मनहर वचन गीत जब गाया।
मन की आकुलता बतलाया।।
कहीं प्रकाश तो कहीं है छाया।
मनभावन भजन नहीं भाया।।
२
प्राण संकट में जब हैं पड़ते।
अपने सब बेगाने हैं लगते।।
दुख में सुमिरन सब हैं करते।
उदार मन सब अपने हैं बनते।।
३
काँटों का ताज पहन हैं हँसते।
सोना चाँदी ले क्या हैं करते।।
कर्मफल अपना भोग है करते।
प्रायश्चित कर आगे हीं चलते।।
४
मनमानी अपनी है करते।
खाली कर घट कुछ हैं भरते।।
सतसंग में हरि को हैं जपते।
छल प्रपंच से दूर हैं रहते।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल