*चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को देव दुर्लभ कहा गया है | मनुष्य जन्म बड़े भाग्य से मिलता है क्योंकि मनुष्य को छोड़कर अन्य सभी योनियाँ भोग योनि होती हैं | इस संसार में दो प्रकार की योनियों का वर्णन मिलता है एक भोगयोनि दूसरी कर्मियोनि | मनुष्य के अतिरिक्त अन्य योनियों को भोग योनि कहा गया है क्योंकि जीव अन्य योनियों में रहकर के कर्म बंधन से मुक्त होकर भोग भोगने के लिए विवश होता है ! वही मनुष्य योनि भोगयोनि नहीं बल्कि कर्मयोनि है | मानव योनि की विशेषता यह है कि है इसमें मनुष्य के पास कर्म करने की क्षमता होती है मनुष्य अपने शुभ पुण्य कर्मों के द्वारा अपने जीवन को सुखी व सुंदर बना सकता है | इसके साथ ही निष्काम कर्म , ज्ञान , भक्ति आदि के द्वारा अपने मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है | यह दुर्लभ मानव जीवन नष्ट करने के लिए नहीं प्राप्त हुआ है , मानव जीवन का परम उद्देश्य होता है ईश्वर की प्राप्ति करना और यह लक्ष्य जीवन के प्रारंभ से ही चुन लेना चाहिए | जिस प्रकार एक छोटे से बीज में विशाल वृक्ष छुपा होता है उसी प्रकार एक जीव अपने प्रारंभिक काल में अर्थात बचपन में कर्म व भक्ति से पूजित होकर पुष्पित व पल्लवित होता हैं अन्तत: विराट वृक्ष बन जाता है | बालक ध्रुव , प्रहलाद एवं आदि शंकराचार्य इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है | प्राय: मनुष्य ईश्वर की भक्ति करने के लिए वृद्धावस्था को चुनता है परंतु तब वह चाह कर भी कुछ करने की स्थिति में नहीं होता क्योंकि जीवन भर भोग भोगने के बाद समस्त इंद्रियाँ भोगों के प्रति इतनी तन्मय और अनुरक्त हो जाती है कि योग की ओर उनमें अनुरक्ति ही नहीं होती | इसलिए मानव जीवन की गरिमा को बनाए रखने के लिए मनुष्य को अपने जीवन के प्रारंभ काल से ही ईश्वर के प्रति उन्मुख हो जाना चाहिए अन्यथा मानव जीवन यूं ही चला जाता है | जो मानव जीवन हमें प्राप्त हुआ है वह योनि इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है | ईश्वर ने अपनी समस्त कारीगरी को समेट कर इस योनि का निर्माण किया है | मनुष्य में जो गुण और विशेषताएं ईश्वर ने प्रदत्त कर दी है वह किसी अन्य प्राणी को दुर्लभ है | मानव जीवन सौंदर्य से परिपूर्ण है किंतु इस सौंदर्य की अनुभूति तभी हो सकेगी जब मनुष्य वासना के पूर्ण अंधकार का विनाश कर सकेगा | अपनी मानव जीवन की गरिमा का हर पल बोध करते हुए सतत् ज्ञान व मोक्ष के मार्ग पर चलते हुए मानव जीवन को सुखी - सुंदर व सफल बनाने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए |*
*आज का आधुनिक मनुष्य अपने लक्ष्य से भटक गया है , चाहे वह साधारण मनुष्य हो या समाज में सम्मान प्राप्त कर रहे सन्त - महंथ या मठाधीश ही हों आज सभी अपने लक्ष्य से भटके हुए दिखाई पड़ते हैं | आज का मनुष्य जीवन भर विषय वासनाओं में लिप्त रहकर वृद्धावस्था में भगवान का भजन या भगवत प्राप्ति का उपाय करने का विचार करता है , परंतु तब तक उसके हाथ - पैर काम करना बंद कर देते हैं , जिह्वा साथ नहीं देती है मनुष्य राम कहना चाहता है परंतु उसके मुंह से आम निकलना चाहता है | ऐसी स्थिति में भागवत प्राप्ति का क्या साधन हो पाएगा यह विचारणीय है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि आज पुनः मनुष्य को एक बार बाल्यावस्था को सुधारना पड़ेगा क्योंकि जिसने बाल्यावस्था से ही मन को नियंत्रित कर लिया तो वह गृहस्थी में रहकर भी कभी विचलित होकर पथभ्रष्ट नहीं होगा | आज मानव जीवन पाकर मनुष्य यह विचार करता है कि यह जीवन दोबारा नहीं मिलना है इसलिए जो कर सको कर लो | यह तो सत्य है कि आज मनुष्य के कर्म संस्कारों इतने विपरीत हो गए कि वह शूकर - कूकर की योनि में ही जाएगा | मनुष्य जन्म तो दोबारा नहीं मिलना है क्योंकि आज मनुष्य मानव जीवन की गरिमा भूल चुका है , अपने दायित्वों से विमुख मानव आज अनेकों प्रकार के कर्म अकर्म करते हुए जीवन यापन कर रहा है , जो कि निंदनीय है | यह मानव जीवन देव दुर्लभ है और उदरपूर्ति , प्रजनन व परिवार के सान्निध्य में रहकर समाप्त कर देने के लिए नहीं मिला है बल्कि इस जीवन का उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति है जिसका सतत प्रयास करते रहने में ही मनुष्य का कल्याण है | परंतु आज मनुष्य आधुनिकता की चकाचौंध इतना चुंधिया गया है कि वह जीवित ईश्वर अपने माता पिता को भी सम्मान नहीं दे पा रहा है तो ईश्वर की प्राप्ति कैसे कर पाएगा ? यह विचारणीय है | यद्यपि मनुष्य जानता है इस योनि में आकर जो कर्म किया जाएगा उसका फल उसे ही भोगना पड़ेगा परंतु फिर भी वह अंधा बन करके अंधाधुंध दौड़ मैं सम्मिलित होकर के प्रतिपल मानव जीवन की उपयोगिता का क्षरण कर रहा है |*
*मनुष्य योनि विलक्षण है इस योनि को प्राप्त करके मनुष्य जो चाहे प्राप्त कर सकता है इसलिए मनुष्य को सदैव मानवीय जीवन की गरिमा का स्मरण करते हुए जीवन यापन करना चाहिए |*