
*इस सकल सृष्टि में समस्त जड़ चेतन के मध्य मनुष्य सिरमौर बना हुआ है | जन्म लेने के बाद मनुष्य को अपने माता - पिता एवं सद्गुरु के द्वारा सत्य की शिक्षा दी जाती है | यह सत्या आखिर है क्या ? तीनो लोक चौदहों भुवन में एक ही सत्य बताया गया है वह है परमात्मा | जिसके लिए लिखा भी गया है :-- "ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या" अर्थात ब्रह्म ही सत्य है बाकी सब संसार झूठा है | सत्य को परिभाषित करते हुए परमात्मा का महिमामण्डन किया गया है :-- "सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये ! सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्ना: !!" अर्थात :--- जिनका व्रत (संकल्प) सत्य है , सत्य ही जिनकी प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन है , जो तीनों कालों में , सृष्टि के पूर्व में , प्रलय के बाद एवं स्थिति में सत्यरूप से रहते हैं , जो सत्य अर्थात पृथ्वी , जल , तेज , वायु एवं आकाश के कारण हैं | उक्त पाँच महाभूतों में सत्य (अंतर्यामी) रूप से विराजमान हैं और जो इन पाँच महाभूतों के पारमार्थिक रूप हैं क्योंकि इनका नाश होने पर शेष रह जाते हैं | जो सूनृता (मधुर) वाणी और सत्य के प्रवर्तक हैं- हे भगवान्! इस प्रकार सब तरह से सत्यरूप आपकी शरण में हम प्राप्त हुए हैं | इस प्रकार परमात्मा को सत्य बताया गया है | पारलौकिक शक्तियों में यदि ब्रह्म सत्य है तो इस धरा धाम पर अटल सत्य है मृत्यु | जिसका प्राकट्य हुआ है उसका विनाश एक दिन निश्चित है | मृत्यु के लिए लिखा गया है :-- "जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु ध्रुवं जन्म मृतस्य च " अर्थात जो भी प्राणी जन्म ग्रहण करता है उसे समय आने पर मरना ही पड़ता है और जो मरता है उसे जन्म लेना ही पड़ता है | पुनर्जन्म सनातन धर्म की अपनी विशेषता | जीवन की समाप्ति मृत्यु से होती है इसको सभी जानते हैं परंतु मानना कोई नहीं चाहता है | संसार में मृत्यु स्पष्ट दिखाई पड़ती है लोग नित्य किसी न किसी के अंतिम संस्कार में जाते रहते हैं परंतु मृत्यु को कोई भी स्वीकार नहीं कर पाता | जिसने इस सत्य को स्वीकार कर लिया उसके मन की अशांति लुप्त हो जाती और वह मृत्यु की सत्यता को जानकर मान भी लेता है और सुखी रहता है | अनेक सुखभोग के साधन एकत्र कर लेने के बाद भी मनुष्य मृत्युरूपी परम सत्य से स्वयं को बचा नहीं सकता है क्योंकि सत्य सत्य होता है | जो सत्य होता है वह कभी परिवर्तित नहीं हो सकता |*
*आज मनुष्य ने बहुत विकास कर लिया है असम्भव कार्य को सम्भव कर लेने में मनुष्य सिद्धहस्त हो गया है | आज के वैज्ञानिक युग में मनुष्य ने जीवन को सुचारुरूप से चालित रखने के लिए अनेकों मशीनों का आविष्कार भी कर लिया है | अस्वस्थ होकर मृत्यु के मुंह में जाने वाले प्राणी को भी इन आधुनिक मशीनों पर रखकर चिकित्सक उनके प्राणों की रक्षा करने का दम भरते हैं परन्तु उनको यह नहीं पता है कि जब जिसकी मृत्यु का समय आ जायेगा तब उसको कोई भी मशीन कोई भी उपचार बचा नहीं पायेगा | सारे प्रयास कर लेने के बाद इस सत्यता को अन्तत: स्वीकार करना ही पड़ता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इस संसार के नियम की अलौकिकता देखकर यह कह सकता हूँ कि आज तक इस मृत्युरूपी सत्य से कोई भी न तो बच पाया है और न ही बच पायेगा | अनेकों चिकित्सक , स्नेही परिजन घेरे रहते हुए प्राण बचाने का सतत् प्रयास करते रहते हैं परंतु जीव शरीर को छोड़कर चला ही जाता है | "पद्मपुराण" में बताया गया है :--- "नौषधं न तपो दानं न माता न च बान्धवा: ! शक्नुवन्ति परित्रातुं नरं कालेन पीडि़तम् !! अर्थात :-- कालमृत्यु से आक्रान्त मनुष्य की रक्षा करने में औषधि , तपश्चर्या , दान और माता - पिता एवं बन्धु - बान्धव भी समर्थ नहीं नहीं हैं | क्योंकि जीवात्मा इतना सूक्ष्म है कि उसे शरीर का त्याग करते हुए कोई भी अपने चर्मचक्षुओं से नहीं देख सकता है | परंतु आज असत्य का इतना विस्तार है कि मनुष्य सृष्टि के दोनों सत्य (परमात्मा एवं मृत्यु) को भुलाये बैठा है | मृत्यु को सत्य मानकर जो भी परमात्मा की शरण में रहता है उसका लोक एवं परलोक दोनों ही संवर जाता है | क्योंकि जो सत्य है वह सत्य ही रहेगा इस सत्य को सहर्ष स्वीकार भी करना चाहिए |*
*जिस प्रकार सत्य परेशान हो सकता है परन्तु पराजित नहीं उसी प्रकार मृत्यु से बचने का प्रयास तो किया जा सकता है परंतु बचा नहीं जा सकता है क्योंकि मृत्यु ध्रुव सत्य है |*