*मानव जीवन विचित्रताओं से भरा हुआ है , इस जीवन में मनुष्य अनेक प्रकार के अनुभव करता रहता है | जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य अनेक पड़ावों से गुजरता रहता है | ऐसी परिस्थिति में मनुष्य को सुख की अनुभूति दुख का अनुभव एवं अनेक प्रकार के क्रियाकलाप करते हुए जीवन व्यतीत होता है | वैसे तो इस जीवन में अनेकों घातक क्षण आते हैं जो मनुष्य के लिए जीवन एवं मृत्यु का पर्याय बन जाते हैं परंतु मनुष्य के जीवन में मनुष्य को सबसे ज्यादा परेशान करने वाला क्षण होता है स्वयं मनुष्य का मानसिक तनाव | यह एक ऐसी बीमारी है जिससे बचने के लिए किसी चिकित्सक के द्वारा चिकित्सा कराने की अपेक्षा मनुष्य को स्वयं उद्योग करना होता है | मनुष्य को मानसिक तनाव अपने ही मन के विचारों से उत्पन्न हो जाता है | कुछ विचार ऐसे होते हैं जो मनुष्य के मन में चलते रहते हैं और वह मनुष्य किसी के साथ साझा नहीं कर पाता है , इसके अतिरिक्त कुछ पारिवारिक चिंताएं , आर्थिक तंगी एवं शारीरिक परेशानियों के कारण मनुष्य मानसिक तनाव से ग्रसित हो जाता है | जब मनुष्य को ऐसी परिस्थिति में हो तब उसको तनाव से मुक्ति पाने का उपाय करना चाहिए अन्यथा अनेकों प्रकार के रोगों का भाजन बनना पड़ता है | यहां विचार करने वाली बात यह है कि मनुष्य यदि आर्थिक तंगी के कारण मानसिक तनाव में आता है तो क्या तनाव लेने से उसकी निर्धनता दूर हो जाएगी ? पारिवारिक परेशानियों के कारण यदि मनुष्य को मानसिक तनाव होता है तो अपने मस्तिष्क में तनाव लेकर बैठ जाने से पारिवारिक परेशानियां नहीं दूर होने वाली ! यदि शरीर में कोई व्याधि हो गई है , कोई रोग हो गया है और उसके कारण मानसिक तनाव है तो वह मानसिक तनाव मनुष्य को स्वस्थ करने की अपेक्षा और रोगी ही बनाता चला जायेगा | कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य को मानसिक तनाव की अवस्था में संकल्पित होकर के दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ वह कैसे दूर होगा इस पर मंथन करना चाहिए , क्योंकि मानसिक तनाव से निकलने का एक ही मार्ग है और वह है स्वयं की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं सकारात्मक विचार ! इनके अभाव में मनुष्य अवसाद ग्रस्त होकर के अपने मस्तिष्क पर से नियंत्रण खो देता है | कभी-कभी तो ऐसा भी देखा जाता है कि मनुष्य मानसिक चिंताओं से घिरा हुआ धीरे-धीरे समाज / परिवार से कटते हुए एकांकी हो जाता है और यह स्थिति मृत्युतुल्य कष्ट देने वाली होती है | किसी भी मनुष्य को मानसिक तनाव की स्थिति में अपने श्रेष्ठ एवं अग्रजों से दिशा निर्देशन अवश्य प्राप्त करना चाहिए |*
*आजकल के भागदौड़ भरे जीवन में मानसिक तनाव एक ऐसी बीमारी बन गयी है जिससे कोई भी स्वयं को बचा नहीं पा रहा है | तनाव एक ऐसा शब्द बन गया है जिसका सुबह से उठते ही प्रत्येक मनुष्य तो आभास होने लगाता है | आज प्रत्येक मनुष्य के ऊपर इतना भार है कि वह मानसिक तनाव से स्वयं को बचा नहीं पा रहा है | अपने - अपने कार्य क्षेत्र के कार्यों के प्रति दबाव मनुष्य में मानसिक तनाव पैदा करने का कारण बन रहा है | इसके साथ एक मुख्य कारण यह भी है कि मनुष्य ने प्रकृति का इतना दोहन कर दिया है कि अब प्रकृति की गोद में बैठने का स्थान भी मनुष्य के पास नहीं बच रहा है , अन्यथा हमारे पूर्वज बताया करते थे कि जब मनुष्य तनावग्रस्त हो तब उसको प्रकृति का सहारा लेना चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" अपने अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूं कि मनुष्य को कितना भी तनाव हो यदि वह शांतचित्त वातावरण में जाकर के प्रकृति की सुंदरता का अवलोकन करें या एकांत में बैठकर के ध्यान लगाने का प्रयास करें तो वह तनाव से मुक्ति अवश्य पा सकता है | ऐसी स्थिति में मनुष्य को तनावग्रस्त परिवेश से बाहर निकलते हुए स्वयं को थोड़ी देर के लिए सभी विचारों से मुक्त कर लेना चाहिए | यद्यपि ऐसा कर पाना संभव नहीं हो पाता है परंतु यदि मनुष्य में दृढ़ इच्छाशक्ति है तो असंभव कुछ भी नहीं है | हमारे महापुरुषों के अनुसार तनाव मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है :- सकारात्मक तनाव एवं नकारात्मक तनाव | दोनों मे अंतर इतना है कि सकारात्मक तनाव प्रगति की ओर ले जाता है और नकारात्मक तनाव समय और जीवन नष्ट करता है | सकारात्मक तनाव के कारण मनुष्य अपने काम को सही तरीके से और समय पर कर पाते है | वहीं दूसरी ओर नकारात्मक तनाव के कारण मनुष्य अपने स्वास्थ्य को क्षति पंहुचाते है और मानसिक बीमारियों को निमंत्रण देते है |*
*मानसिक तनाव आजकल लोगो पर इतना प्रभावी हो चुका है कि लोगो को मनोचिकित्सक का सहारा लेना पड़ रहा है | यह एक भयंकर रोग फैल रहा है जिसकी चिकित्सा आवश्यक है | इस रोग से बचने के लिए मनुष्य को आध्यात्म एवं प्रकृति का अवलम्ब लेना चाहिए |*