*सनातन धर्म में मंत्रों का बड़ा महत्व है , प्रत्येक कार्य के लिए अलग-अलग मंत्रों का विवरण हमारे धर्म ग्रंथों में प्राप्त होता है | वैदिक मंत्र , पौराणिक मंत्र , तांत्रिक मंत्र , शाबर मंत्र आदि अनेक प्रकार के मंत्र सृष्टि में मानव जाति का सहयोग करते हैं | किसी मंत्र का प्रयोग करने के पहले उसके विषय में विधिवत जान लेना परम आवश्यक होता है | हमारे महान ऋषियों ने किसी भी धार्मिक कृत्य , पूजा पाठ , मंत्र आदि जप से पूर्व की जाने वाली क्रियाओं का विधिवत वर्णन किया है इनको जाने बिना कोई भी मंत्र प्रभावी नहीं हो सकता | यह सूक्ष्म क्रिया होती है :- संकल्प , विनियोग , न्यास एवं ध्यान | इनको करने के बाद ही किसी मंत्र का जप या पूजा पाठ करना चाहिए | संकल्प लिये बिना कोई भी धार्मिक कृत्य सफल नहीं होता | संकल्प में मनुष्य अपना पूरा विवरण एवं अपनी कामना का वर्णन करते हुए संकल्प लेता है , किसी भी धार्मिक कृत्य के पहले संकल्प न लिया जाय और सीधे वह कृत्य करने लगे तो वह सफल नहीं होता है | संकल्प करने के बाद मनुष्य को विनियोग करना चाहिए | विनियोग का अर्थ होता है नामांकित करना | किसी भी मंत्र जप के पूर्व विनियोग का विवरण मिलता है जिसमें मंत्र के ऋषि , देवता , छंद एवं तत्वों का उल्लेख किया जाता है | बिना विनियोग का विवरण किये यदि मंत्र जप किया जाता है तो वह मंत्र मनुष्य के खाते में कदापि नहीं जा सकता | विनियोग के बिना जपा जाने वाला मंत्र साधक को कोई फल न प्रदान करके ब्रह्मांड की विराटता में समा जाता है | विनियोग करने के बाद मनुष्य को न्यास करना चाहिए | न्यास के द्वारा मंत्र या पाठ के टुकड़ों को शरीर के आंतरिक और वाह्य अंगों में आरोपित किया जाता है | जिससे साधक मंत्र व इसके देवता के साथ एकाकार हो सके और उसने भाव का उदय हो | जीव और परमात्मा में भेद को समाप्त करने का उपदेश हमारे धर्म ग्रंथों में प्राप्त होता है इसी उद्देश्य की पूर्ति के कारण न्यास की प्रक्रिया बनाई गई है | न्यास की प्रक्रिया तत्वमसि होने का व्यवहारिक रुप है | ऐसा किए जाने पर यह कवच की तरह साधक की रक्षा करता है | न्यास का अर्थ है साधक का देवमय हो जाना | यदि मंत्र में कोई त्रुटि भी रह जाती है तो न्यास साधक की रक्षा करता है | न्यास करने के बाद साधक को संबंधित देवता का ध्यान करना चाहिए | ध्यान करने से मन एकाग्र हो जाता है और मन की एकाग्रता से ही किसी भी पूजा पाठ का फल मिलता है | इस प्रकार मंत्र के रहस्य को समझ कर जो भी साधक इनका प्रयोग करता है सफलताएं उसकी दासी बन जाती है |*
*आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आकर अपने मंत्र विज्ञान को भूलता चला जा रहा है | कुछ लोग ऐसे भी मिलते हैं जो दिन-रात पूजा पाठ , मंत्र जाप आदि तो करते हैं परंतु फिर भी उनको कष्ट ही रहता है क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें पूजा पाठ का , मंत्र जाप का फल नहीं प्राप्त हो रहा है | आज यदि मनुष्य को किसी भी पूजा पाठ का मंत्र का फल नहीं प्राप्त होता है उसका एक ही कारण है कि वह मंत्र विज्ञान को समझना नहीं चाहता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" समाज में अनेक लोगों को देखता हूं जो किसी भी मंत्र प्रयोग के लिए तत्पर दिखाई पड़ते हैं और करते भी हैं परंतु उनको सफलताएं नहीं मिलती क्योंकि उनके द्वारा संकल्प , विनियोग , न्यास एवं ध्यान को महत्व नहीं दिया जाता है | जिस प्रकार किसी बैंक में धन जमा करने के पहले मनुष्य को अपना विवरण देना पड़ता है उसी प्रकार संकल्प भी लेना पड़ता है | बिना नामांकन की प्रक्रिया पूरा किये जिस प्रकार खाताधारक की मृत्यु होने पर बैंक में जमा धन सरकार के खाते में चला जाता है उसी प्रकार विनियोग के बिना जपा हुआ मंत्र ब्रह्मांड में समाहित हो जाता है | इस रहस्य को जाने बिना ही आज मंत्र जाप किया जा रहा है जिसका फल साधक को नहीं मिल पा रहा है और फल ना प्राप्त होने पर सार्थक इन मंत्रों को बेकार का मानने लगते हैं | सनातन धर्म का कोई भी मंत्र कोई भी प्रयोग व्यर्थ नहीं है आवश्यकता है उसको जानने एवं समझने की | जिस प्रकार कोई चिकित्सक रोगी के रोग की जांच किए बिना चिकित्सा करने लगता है और सफल नहीं होता वहीं दूसरा चिकित्सक रोग को विधिवत जांच परख करके जब चिकित्सा करता है तो रोगी निरोग हो जाता है | उसी प्रकार मंत्र रहस्य को भी जाने बिना इसका प्रयोग करने वाला साधक कभी सफल नहीं हो सकता | आवश्यकता है कि संकल्प , विनियोग , न्यास एवं ध्यान की प्रक्रिया को समझते हुए ही किसी मंत्र का जप एवं पूजा पाठ आदि संपादित किया जाए जिससे कि सफलता प्राप्त हो और इनके प्रति विश्वसनीयता बनी रहे |*
*सनातन धर्म की दिव्यता अलौकिक है परंतु इसे समझ पाना साधारण मनुष्य के बस की बात नहीं है इसको समझने के लिए मनुष्य को सद्गुरु के माध्यम से इसकी गहराई में उतरना पड़ेगा |*