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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹
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*मानव जीवन बड़ा ही विचित्र है ! जब मनुष्य स्वयं कोई गल्ती करता है तो उसे वह अपनी गल्ती मानता और जब उसकी गलत क्रिया पर किसी के द्वारा यथोचित प्रतिक्रिया होती है तो वह बौखलाकर अनाप - शनाप बकने लगता है | मनुष्य को विचार करना चाहिए कि यह भूमि कर्मभूमि है यहाँ वही प्राप्त होता है जो स्वयं मनुष्य वितरित करता है | सुख - दुख , मान - अपमान सब कुछ मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार ही प्राप्त होता है | परंतु मनुष्य का स्वभाव ऐसा होता है कि उसे अपनी क्रिया नहीं दिखाई पड़ती और वह प्रतिक्रिया पर सारा दोष दूसरों पर डाल देता है | स्वयं की क्रिया पर प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहकर ही कोई क्रिया सम्पन्न करनी चाहिए जिससे कि बाद में कष्ट न हो |*
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*शुभम् करोति कल्याणम्*
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