*हमारे जीवन में अनेकों शब्द , लोकोक्तियां एवं मुहावरे ऐसे हैं जिनका जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है | देखने में तो ये बहुत ही साधारण शब्द होते हैं परंतु यदि सकारात्मकता के साथ सूक्ष्मता से इनका अवलोकन किया जाय , गहनता से इन मुहावरों पर विचार किया जाय तो इनका बहुत ही गूढ़ अर्थ निकल कर सामने आता है | इन्हीं लोकोत्तियों में एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है :- "मरघट का सन्नाटा" | कहने एवं सुनने में तो यह बुरा शब्द माना जाता है परंतु इस लोकोक्ति पर गहनता से विचार करने की आवश्यकता है , क्योंकि जब इस पर गहनता से विचार किया जाता है तो इसका अर्थ बहुत ही गूढ़ निकल कर सामने आता है | सामान्य रूप से जब हम किसी का शव लेकर श्मशान में जाते हैं तो वहां सभी के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहता है | वहां पर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन - मृत्यु के विषय में विचार करने लगता है ! कुछ क्षण के लिए उसे यह जीवन एवं संसार की क्षण भंगुरता का आभास हो जाता है | अब इसके मूल तत्व पर विचार किया जाय | हमारे शास्त्रों में कुछ विशेष स्थान बताए गए हैं जहां मनुष्य में वैराग्य का प्राकट्य होता है | जिन स्थानों पर मनुष्य में वैराग्य उत्पन्न होता है उसमें से एक श्मशान भी है , जब मनुष्य के अंदर विषय वासनायें समाप्त हो जाती है और मनुष्य का मन इन विषय वासनाओं के दिवास्वप्न से हटकर परमात्मा में लगता है | इस प्रकार जब मनुष्य के हृदय में मरघट का सन्नाटा अर्थात भौतिक संसाधन एवं विषय वासनायें , अनेक कामनाएं समाप्त हो जाती हैं और वह क्षणभंगुर जीवन की सत्यता को जान जाता है तभी व्याप्त होता है | कहने का तात्पर्य यह है कि शब्द कोई भी बुरा नहीं है वरन् हमको अर्थ उसी प्रकार प्राप्त होता है जिस प्रकार हम उन शब्दों पर विचार करना चाहते हैं | इसलिए प्रत्येक शब्द एवं मुहावरों पर आध्यात्मिकता के साथ गहनता से विचार अवश्य करना चाहिए |*
*आज शोरगुल भरे जीवन में मरघट का सन्नाटा भी समाप्त हो गया है | लोग जब किसी प्रियजन का शव लेकर श्मशान में पहुंचते हैं तो वहां भी हंसी ठिठोली किया करते हैं | किसी का चले जाना प्रियजनों के लिए तो भारी पड़ता है परंतु साथ में जो लोग अंतिम यात्रा में जाते हैं जितनी देर अंतिम संस्कार होता है उतनी देर समय व्यतीत करने के लिए हंसी ठिठोली एवं राजनीतिक चर्चा करते रहते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देख रहा हूं कि ना तो मरघट में सन्नाटा है और ना ही मरघट के जाने वालों के हृदय में | विषय वासनाओं एवं अनेक कामनाओं से पीड़ित मनुष्य के हृदय में वैराग्य का प्राकट्य तो होना दूर वह उसके विषय में विचार भी नहीं करता | आज कुछ लोग "मरघट का सन्नाटा" बोल देने पर रुष्ट हो जाते हैं या उस पर टिप्पणी करने लगते हैं कि ऐसे शुभ अवसर पर मरघट का सन्नाटा जैसे शब्दों का प्रयोग क्यों किया गया ? ऐसे सभी लोगों को इस शब्द के अर्थ को समझने की आवश्यकता है | जब तक मनुष्य के हृदय में चारों ओर से विषय रूपी वायु आनी बंद नहीं होगी तब तक उसके हृदय में मरघट के जैसा सन्नाटा नहीं हो सकता है और जब तक मनुष्य के हृदय में मरघट जैसा सन्नाटा एवं वैराग्य की उत्पत्ति नहीं होगी तब तक वह ना तो अपने जीवन के यथार्थ को जान सकता है और ना ही ईश्वर के प्रति अपने मूल कर्तव्यों का आभास ही कर सकता है | इसलिए मनुष्य के हृदय में कुछ क्षण के लिए ही सही परंतु मरघट का सन्नाटा अवश्य होना चाहिए |*
*न तो कोई शब्द बुरा है ना ही हमारे पूर्वजों के द्वारा कहे गए मुहावरे या लोकोक्तियां | हमारे पूर्वजों ने जितनी लोकोक्तियां प्रसारित की है सबका एक गूढ़ अर्थ है हम भले ही उसे न समझ पाएं |*