भाग 01 ★मेरी यादों के झरोखों से★ घटना साढ़े चार दशक पुरानी है, यू. पी. के बदायूं जनपद के एक अविकसित गांव की एक प्यारी सी कहांनी है जो मेरी "यादों के झरोखों से" वार वार झांकने लगती है।
वह " एक गांव प्यारा सा" जिसमें लगभग सभी धर्म एवं जाति वर्गों के लोग प्रायः एक साथ मिलजुल कर साथ साथ निवास करते थे,सभी लोग एक दूसरे के लिये विपत्तियों में और खुशियों के पलों में एक साथ मिलजुल कर बाँट कर सहयोग करते थे, किसी एक पर विपत्ती आने पर गाँव के सभी जाति वर्ग समुदाय के लोग एक दूसरे की परेशानियों में और खुशियों में संग देते।
बैसे तो यह ग्राम एक विकास खण्ड था। किन्तु यह क्षेत्र अधिक पिछडा होने के करण यहां लगभग अधिकांशत: मूलभूत सुविधाओं के नाम पर काम चलाऊ टूटी फूटी सड़के, एक प्राथमिक चिकित्सालय,एक पशु चिकित्षालय, और वहाँ के बच्चों की शिक्षा का एक मात्र उम्मीद का एक चिराग़ यही इंटर कालिज था,साथ ही वहीं एक खादी ग्राम उद्योग और यहीं एक ट्रेनिंग सेंटर भी था ।
ठीक इसी ट्रेनिंग सेंटर की बगल से सटा हुआ यह एक इन्टरकालिज था, जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के सभी आस-पास के गाँव के एक मात्र लड़का ,लड़कियों की आशाओं की शिक्षा का केंद्र था, यह विद्यालय ।
यह इंटर कालिज, ऐसे स्थान पर था जहाँ आस-पास कम से कम दस-दस किलोमीटर तक कोई अन्य दूसरा इंटर कालिज नहीं था।
बैसे भी यह क्षेत्र पिछड़ा होनें के कारण दूर दूर तक अन्य गांव में कोई भी सरकारी अथवा व्यक्तिगत शिक्षा का केंद्र ने होने के कारण इस इंटर कालिज में केबल इसी गाँव के ही बच्चें नहीं बल्कि यहाँ के दस दस किलोमीटर तक की परिधि में आने बाले गाँव के छात्रों एवँ छात्राओं की शिक्षा के लिये यही केंद्र था,।जिसमें छात्र-छात्राओं की 'को' शिक्षा की ब्यवस्था थी, या यूं कहें तो कोई अन्योक्ति नहीं होगी कि
यहां पर पढ़ने हेतु दूर दराज से बालाक, बालिकांए सभी पैदल,एवं साइकिल, बस आदि से पढ़ नें यहीं आते जाते थे ।
यूं तो भारत की आजादी की लड़ाई में यहां के लोगों का विशेष सहयोग भी रहा था,जिसका एक इतिहास अलग ही है।
यहाँ के एक स्वतन्त्रता सेनानी थे जिन्हें लोग परम श्रद्धा और प्यार से उन्हें दद्दाजी के नाम से पुकारते थे। और उन्हीं के नाम से इस ग्रामीण क्षेत्र में इस कालिज की स्थापना की गई थी।
अतः यहाँ ब्लाक होने के कारण यहां बिभिन्न प्रकार के हस्त शिल्प,एवं अन्य तकनीकी शिक्षा का ज्ञान भी बच्चों को अन्य संस्थाओं के द्वारा भी दिया जाता था।
कालिज के बगल से सटा हुआ ट्रेनिंग सेंटर था,और उसी से सटा हुआ गांधी खादी ग्राम उद्योग स्थापित होनें के कारण साथ ही स्वतंत्रता सेनानी इसके संस्थापक होनें के नातें इस इंटर मीडिएट कालेज की गणवेश खादी का पीला कुर्ता और सफ़ेद पायजामा छात्रों कों और लड़कियों की ड्रेश खादी का सफेद सलबार कुर्ता निर्धारित की गई ड्रेश में मुख्य आवश्यक था।
महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलनें बालें कॉलिज के संस्थापक थे, इसलिए अतः उन्हीं के प्रयास से यह कॉलिज के शिक्षक और छात्र इस कालिज के अनुगामी रहें इसलिए कॉलिज के अध्यापकों, प्रधानाचार्य और विद्यार्थियों पर उनका स्पष्ट असर दिखलाई देता था।
अनेक विद्यार्थी यहाँ आकर मन लगाकर शिक्षा ग्रहण करते थे।
छात्रों को रुकने के लिये विद्यालय के निकट एक छात्रावास भी महात्मा गांधी के नाम पर बना हुआ था, जिसमें दूर दराज के विद्यार्थी निवासकर अपनी शिक्षा पूर्ण करतें थे। छात्रावास के निकट एक पुलिस चौकी भी बनी हुई थी, जो कॉलिज के ठीक सामनें थी ।
कालिज ग्रामीण अंचल में होने के कारण यहाँ पढ़ने आये दूर दूर के छात्र छात्राओं में वहुत ही भोलापन था, वह छल कपट से वहुत दूर थे ,कहीं कोई धोखाधड़ी का नामोनिशान भी यहाँ नहीं दिखाई देता था साथ ही क्षेत्र के निवासियों में वेहद सरलता,भोलापन था ।
कॉलिज के सभी शिक्षक विद्यालय के सभी बच्चों के साथ पुत्रवत स्नेह करते थे ।
ग्रामीण अंचल में वसा यह गांव अनन्तपुर का नाम भी उसी के नाम के अनुरूप था, यहां के वासी सीधे सच्चे, कर्मठ परिश्रमी थे,सभी एक साथ प्रेम और सौहार्द्र से रहते थे, एक दूसरे की विपत्तियों में सहारा देना अपना परम कर्तब्य एवं अपना सौभाग्य मानते थे।
गाँव चूँकि आसपास के गाँवों से यह अनंतपुर काफी जनसंख्या बाला था।
अतः यहाँ हफ्ता में एक वाजार लगता था, जिसमें अड़ोस पड़ोस के लोग जानवरों की खरीद फ़रोख़्त से लेकर अपनी घरेलू जरूरतों की चीजें भी आकर खरीद फ़रोख़्त किया करतें थे , साथ ही होली, ईद, क्रसमस डे पर समयानुकूल मेला का आयोजन भी सभी धर्म के लोग मिलजुल कर किया करते थे।
साथ ही यहाँ हर वर्ष होलिकोत्सव भी वहुत धूमधाम से मनाया जाता था जिस से एक दूसरे सम्प्रदाय के लोगों की खुशियाँ देखते ही बनती थीं।
कालिज का वार्षिकोत्सव तीन दिन लगातार कालिज के स्थापना दिवस पर, छात्र छात्राओं द्वारा धूम धाम से ,सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन, उत्सव, क्रीड़ा प्रतियोगिताओ एवं कवि सम्मेलन आदि का आयोजन कर अंत में समापन किया जाता था।
इस कार्यक्रम को सफल वनाने हेतु अध्यापक ,और विद्यालय के सभी बच्चे उत्साह पूर्वक भाग लेते थे तथा उन्हें उत्साहित करने हेतु कालिज प्रवंधन द्वारा विजयी एवं परिश्रमी छात्रों और अध्यापकों को पुरष्कृत और सम्मानित किया जाता था।
कालिज का निर्माण चूँकि एक स्वतन्त्रता सेनानी के नाम पर कई एकड़ जमीन पर किया गया था , अतः कालिज के संस्थापक की मृत्यु के बाद इसी कॉलिज के क्षेत्र में उनकी स्मृति में उनकी आदम कद प्रतिमा और समाधि स्थल का निर्माण भी कराया गया था। दद्दाजी की जन्मोत्सव एवं निर्वाणोत्सव पर समाधि स्थल,एबम उनकी आदम कद प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते थे।, जो इस कालिज के छात्रों एवं अध्यापकों में एक प्रेरणा स्रोत थे।
इसी प्रकार हमारें देश के किसी भी महापुरुष की जयंती आदि पर प्रधानाचार्य ,अध्यापको द्वारा उन महापुरुषों के जीवनोपयोगी बातें माननीय गुरूजन के माध्यम से छात्रों को उनके जीवन से जुड़ीं प्रेरणादायक बातें बताई जाती। जिन्हें बच्चे ग्रहणकर सच्चाई के रास्ते पर आगे चल कर एक सुनागरिक बन सकें।
एसा था यह ग्रामीण आँचल में बना विद्यालय जिसके पढें हुए छात्र कोई डाक्टर,कोई अध्यापक, तो कोई सेना का अफशर आदि बनकर देश की सेवाएं प्रदान करते रहें हैं।साथ ही हर सेवा के क्षेत्र में हमेशा अग्रणी रहे,..हैं।
जब किशोर की जूनियर हाईस्कूल की पढ़ाई सम्पन्न हुई तो किशोर के दादा जी ने अनन्त पुर आकर उसका दाखिला इसी कॉलिज में करा दिया , चूँकि किशोर के पिता एक सरकारी अफसर थे, अतः उनके पास जिम्मेदारी अधिक होनें के कारण घर पर आनें का उन्हें समय नहीं मिलता था, चूँकि परिवार संयुक्त होनें के कारण अतः घर पर किशोर के दादाजी और और दादी जी के साथ उसकी माँ जी रहतीं थी, किशोर को उसकी माताजी नें वचपन से ही उसे कर्मठता और ईमानदारी की शिक्षा दी थी, साथ ही उसे सत्य बोलना ही सिखाया था।......शेषांश अगले भाग में।
Written by H.K.Joshi