अनुच्छेद 17 ● मेंरी यादों के झरोखों से●
_____________________________________________एक लंबे अंतराल तक दोनों एक दूसरे से लगभग दो मीटर की उचित दूरी पर खड़े हुए थे वह दोनों ,एक दूसरे को देखते हुए , सारी दुनियाँ से बे ..दोनों.....लापरवाह की भाँति दोनों एक दूसरे की ......आंखों में .आँखे डालें झांकते हुए , पता नहीं क्या तलाश रहे थें वे दोनों, एक दूसरे की आँखों में, आँखें डालें ? ऐसा क्या था उस प्यार भरीं उन चारों आँखों में, जिसमें वह अपनें सम्पूर्ण अस्तित्व को भुला बैठे थे ।
उन दोनो के साथ ही मानों पूरी कायनात..भी.. सिमट कर अपनी जगह पर आकर गतिहीन हो कर रुक गई हो..।
और शायद विधाता भी ऊपर से इन दोनों प्रेंम पुजारियों के इस महा मिलन को देख कर खुश हो रहा होगा ,।
उस सर्वांग सुन्दरी का सफ़ेद रंग का दुपट्टा उसके उभरें हुए वक्ष स्थल से पता नहीं कब फिसल कर नीचे क्यारियों में लगे गुलाब के गुलाबी फूलों पर गिर चुका था , जो शायद कब से फूलों के चेहरों को संसार की नजर ना लगे इस लिए छुपा रहा था।
अरे ओ प्रेम की दीवानी , मैं तुझे अभी कहाँ कहाँ ढूंढ़ के आ रही हूँं ।
उस सर्वांगसुन्दरी की सहेली रमा ने दूर से ही उसे देख कर एक लंबी हांक लगाई । आवाज़ सुन कर
अचानक उस स्वप्नसुंदरी की तंद्रा भंग हुई ,वह चिहुँक कर किशोर के निकट से दो कदम और पीछे हट चुकी थी, और अब वह अपनी स्थिति को देख कर लाज से घबरा कर दुहरी हुई जा रही थी।
लेकिन किशोर भावना शून्य अब भी उसे उसी तरह ताक रहा था ।
मैं कब से तुझे देखती फिर रही हूं।
रमा क्यारियों को लांघकर उसके निकट आती हुई बोली।
ओ रमा, ! माई डिअर फ्रेंड प्लीज,मुझे अब और ज्यादा परेशान न कर।
उस ने अपना दुपट्टा जल्दी से फूलों की झाड़ियों के ऊपर से उठाया और एक नजर किशोर को देखती हुई आगे को रमा की ओर बड़ी।
तुझे पता है कि, आज हमारे कालिज ने सबसे अधिक अब तक कितनें प्राइज किस प्रकार के खेल में जीते है।
रमा उसे एकाएक इसतरह की अनोखीं बातों को बताती हुई बोली।
नहीं पता...अब तू ही,.,यह बात बता तो ?
बह स्वप्नसुंदरी उस से बोली।
सच मुच क्या तुझें नहीं मालूम।
रमा एक बार फिर मुश्कराती हुई बोली।
अगर मुझें मालूमात होती तो भला मैं तुझसे क्यों पूँछती।
वह स्वप्नसुंदरी मन्द मन्द मुश्कराई।
रमा उसको इस तरह अपनी ओर मुश्कराती देख कर वह भी मुश्करा उठी ,और उस से भोलेपन से बोली।
अच्छा,...अब ..आगे की कहांनी के बारे में, बता कि अब क्या हुआ ? ।
रमा कनखियों से उसकी ओर देखती हुई हंसी।
रमा तू भी आज कल पता नहीं कहाँ की बाते कहाँ जोड़कर वहुत बनाने लगी है।
वह झूठ मूठ नाराज होती हुई बोली।
अच्छा तो मेरी जान,.....अब तुम्हीं बताओ न ..कि तेरी... मेरीं प्रेंम कहांनी अब कितनी आगे और बढ़ी ...?।
रमा शरारत से उसकी आँखों में झाँकती हुई बोली।
चल ....बेशर्म,.......मैं नही बात करती .....तुझ से।
वह रुठ ने का झूठा नाटक करने लगी।
हाय रे हाय..क्या क़िस्मत है मेरे दिलदार की,यह जमाना ...ही ऐसा आगया है..... दोस्तो,कि उल्टा चोर कोतबाल को डांटनें लगा है आजकल ।
रमा अपने दोनो हाथ हिलाती हुई बोली।
इधर..... आ... कोतबाल की...... बच्ची ।
उस स्वप्नसुंदरी ने रमा की चोटी पकड़ कर अपनीं ओर खींची।
अरे अर्र्ररर यार क्या बाल उखाड़ेगी? बडा दर्द होता है इन बालों में।
रमा ने अपने बालों को छुड़ाने की कोशिश की।
क्यों... क्या.... अब आगे की कहानी न .......पूछेगी।
वह रमा से बोली।
न बाबा ... न... पूँछूगी , अब छोड .जल्दीसे.....छोड़ भी दे यार, वहुत दर्द होता है ....इन लंबे बालों को खींचनें से।
उसने रमा के बालों को छोडा ।
चल जल्दी चलें घर ।
वह धीमें से बोली।
अरे यार तू बड़ी बेदर्दी है , एक बार कम से कम पलट कर देख तो भला, कैसे खड़ा है तेरे प्यार में ,एक दम प्यारे देवदास की स्टेच्यु की भांति।
रमा ने किशोर की तरफ इशारा करते हुयें कहा।
तुझे बड़ी दया आ रही है उन पर।
वह होंठों ही होठों में बुदबुदाई और अपना हाथ किशोर की ओर हिलाती हुई बोली।
बाय ,किशोर फिर मिलेंगे।
और अगले पल वह हाथ हिलाती रमा के साथ आगे बढ़ती चली गई।
किशोर की तंद्रा भंग हुई वह बेबसी से अपनें होंठों को बंद किये उसे जाता देखता रहा।
अबे मजनू की तरह क्यों आँखे फाड फाड़ कर क्या देख रहा है।
भास्कर उसके कान में फुस फुशाया।
यार भास्कर पता नहीं मुझे क्या होजाता है जब वह मेरे सामने होती है ।
किशोर उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला।
बेटा एसा ही होता है .....बेटा? जब कोई पहली बार प्रेमी अपनी प्रेंमिका से जब मिलता है तो...।
एकाएक किशोर का मित्र भाष्कर किशोर के नज़दीक जाकर बोला।
तो क्या करूँ मैं जल्दी बोल यार, मैं समझ नहीं पाता कि उस से उस समय क्या कहूँ।
किशोर ने अपनी मन की बात अपने प्रिय मित्र को पूरी बतानी चाही किन्तु वह बोल ना सका।
अबे घोंचू तभी तो मैं तुझ से पूँछता हूँ कि तेरा प्यार कहाँ तक परवान चढ़ा।
भाष्कर गर्व से बोला।
क्या बोलूँ मेरे दोस्त ,मन वश उसे ही देखता रहता है ,जीभ तालू से चिपक जाती है मानों उसे कुछ कहना ही नहीं है।
एक्जेक्टली , यही तो वह मूँक प्यास है, उसकी... आकर्षण... शक्ति के सामने तेरी ...शक्ति क्षीण हो जाती है।
भास्कर ने अपने विचारों को इस तरह पेश किया मानों वह कोई माना हुआ लवगुरु है।
तू ठीक कहता है ,मेरे यार जब वो मेरे सामने होती है तो ,मुझे नही पता रहता कि मैं कहाँ हूँं ,मैं चेतना रहित होकर उसके हृदय में उसकी स्वांसों में होकर दिल बन कर उसके हृदय में धड़कनें लगता हूँ ......और जीवन की उस....प्यारी आलौकिक स्पंदन भरी नई मादकता में भाव-विभोर होकर मंथरगति से आंदोलित होकर उसके हृदय को धीमे धीमे प्यार की ध्वनि से रोमांचित करता रहता हूँ।
किशोर खोया हुआ सा बोलता चला गया।
अबे साले , दार्शनिक किसी ने तेरी प्रेम कहानी देख ली, तो बस उसी दिन तेरा कालिज से निकलना तय है और उस बेवकूफ लड़की की बदनामी भी निश्चित ही होनी है।
भास्कर ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा।
अबे तू मेरा ......मित्र है कि .....शत्रु।
किशोर खीजता हुआ बोला।
चल चल अब बेहतर है कि घर की ओर यहां से निकल चलें।
भाष्कर उसका हाथ खींचता हुआ बड़बड़ाया।
किशोर और भास्कर दोनों गहरे मित्र थे अतः वह दोनों हाथ में हाथ डाले क्यारियों से निकल कर अपने गाँव की ओर जाने बाली पगडंडी पर आगे बड़ने लगे।
शेष ...आगे के अंक में कृमशा ......
Written By H.K.Joshi P. T. O.