अनुच्छेद 07 मेरी यादों के झरोखों से
_______________________________________किशोर अकेला कॉलिज के मुख्य गेट से लगभग 200 कदम दूर खड़ा उस अनिंद्य सुंदरी की प्रतीक्षा कर रहा था, पिछले हफ़्ते कॉलिज में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ था, वस उस दिन ही उसनें उस अनिंद्य सुंदरी को वेहद करीव से देखा था बस तब से वह स्वप्नसुंदरी कॉलिज में पुनः आई ही नहीं थी, इसलिए उसकी आज राह देखने वह उसके गाँव के ओर की राह पर खड़ा उसकी कॉलिज आनें की वहुत देर से प्रतीक्षा कर रहा था।
गुमसुम खोया हुआ किशोर उसकी राह देखतें हुए बही खड़ा रहा ,इसबीच उसकी अनेक सहेलियाँ आती हुई दिखीं पर जिसके इंतज़ार में वह पलक विछाए वहाँ खड़ा था वह अभी तक नहीं आई थी।किशोर के मन में अनेक आशंकाओं नें जन्म ले लिया था, उसके ना आनें के बारे में सोच सोचकर।
यह सच है मानव जिसे वेहद प्यार करता है, अगर वह इंशान उसे कुछ पलों को नहीं दिखता तो, वह उसके चाहनें बाला पल भर में उसके बारे में, पता नहीं क्या क्या सोचनें लग जाता है, ।
यही हाल किशोर का था, पता नहीं उसके मन में क्यों अशुभ ख्याल आते रहे, अतः वह प्रतीक्षा करतें करतें जब उम्मीद खो बैठा तो वह पलट कर कॉलिज की राह पर चलने को पीछें मुड़ा ।
तभी अचानक वही जानीं पहिचानी आवाज जिसे सुनकर वह सुध बुध अक्सर भूलजाता था, उसकी खनकती आवाज किशोर के कानों में पड़ी।
वह अपनी सहेली से कह रही थी।
रमा ....ठहर ...हम भी तो आपके साथ आरहें हैं,।अचानक किशोर आबाज़ की दिशा में पलटा और फिर वह उसको अपलक एक टक उस को जाते हुए देखता रहा,मन में असंख्य मिलन की खुशियाँ भर आईं।
हे भगवान! अगर मैं आज कुछ माँगता तो वह भी अबश्य देता,आज मैंने अपनें आप को माँगा था,भगवान से।
किशोर बड़बड़ाया।
वह स्वप्न सुंदरी उसी की ओर देखती वह उसके सामनें से चलती हुई निकल गई अपनी सहेलियों के साथ।
किशोर को लगा कि उस का कुछ.. उस से अलग हो कर अभी अभी चला गया है।
बह समझ नहीं रहा था इस बदलाब का क्या रहस्य है।
अचानक उस के कदम उसी दिशा की ओर मंथर गति से बढ़ने लगे, जिधर उसके सपनों की रानी अभी अभी गई थी।
अभी वह मुश्किल से 100 कदम आगे बडा था कि प्रधानाचार्य आवास से एक गोल मटोल लड़की तेजी से किशोर का रास्ता रोक कर खड़ी हो गई।
ए ...मिस्टर.........इधर कहाँ ......जा रहे हो।
किशोर के कानों में एक कड़क आबाज गूंजी।
उसने अपनी नजर ...ऊपर उठाई देखा......एक तेज तर्रार ....हृष्ट-पुष्ट एक.लढ़की उसका रास्ता रोक कर खड़ी हुई उसे घूर रही थी।
किशोर ने उसे सामान्य नजरो से देखा किन्तु बोला कुछ नही।
सुना नही, .......क्या बहरे हो...?....।
उस लढ़की की आबाज पुन: उसके कानों मे पड़ी जो अत्यंत कर्कश थी।
मैं....मै.....अपने फ्रेंड के पास मिलने जा रहा हूँ।
क्या.......क्या ...?....क्या..कहा....जरा दुबारा से कहना ।
उस लढ़की ने किशोर की ओर अविश्वसनीय नजरों से घूरा।
किशोर चुप चाप उसे देखता रहा।
......तुम यहाँ से .........पीछे लौटते हो....... या फिर .....प्रन्सिपल सर से .....कुछ...कहूँ।
वह लड़की एक दम भन्नाती हुई बोली।
देखिये...... मिस.....आपको.... क्या..... मिलेगा।
किशोर ने शांत लहजे में उत्तर दिया।
और साथ ही उस से बच कर आगे की ओर जाने की कोशिशें करनें लगा।
तो तुम इस तरह नहीं मानोगे..?......अच्छा।
बह पाव पटकती हुई प्रसीपिल साहब के केबिन की ओर बड़ी।
तभी किशोर का मित्र भास्कर तेजी से उसका हाथ पकड़ कर एक ओर ले जाकर बोला।
अबे तूझे मालूम है ....यह लड़की कौन है।
नही मालूम।
किशोर ने उससे माशूमियत से कहा।
अबे ,तू ....खुद मरेगा .......और मुझे भी..... मर बायेगा।
उसके मित्र भास्कर की आबाज कुछ तेज हो गई थी।
लेकिन मुझे उस से मिलना है, जो अभी अभी इस तरफ गई है।
अरे आभा वहिन प्लीज सुनिये तो जरा।
किशोर के कानो में भाष्कर की आवाज पड़ी ।
किशोर थोड़ा सचेत हुआ उसने देखा भास्कर उस लढकी की ओर लपकते हुए गया और कुछ देर बाद जब वह बापिस आया तो वह उसे ही घूरता हुआ उसे देख रहा था।
भास्कर, ....मेरे यार, ......तू.... बता मैं .....क्या करूँ।
अब यहां से चलने में ही...... भलाई है,...... तू नही जानता.... ,अभी तू जिस लढ़की से ......बात कर रहा था ,वह प्रन्सिपल की.... बेटी आभा है।
भास्कर उस के कान में फुसफ़साते बोला।
और फिर अगले पल वह किशोर का हाथ पकड़ कर एक ओर तेजी से चलने लगा।
तभी कालिज की छुट्टी की घंटी घनघना उठी। छात्रों के झुंड एक साथ निकल ने लगे।
किशोर और भास्कर भी अपने घर की ओर चल पड़े दोनो मित्र एक ही गांव के थे ।
किशोर कुछ गुमसुम था,उसके दिमाग मे अनेक सबाल घुमड़ रहे थे।
उसने उस सुंदरी की मोहनी मूर्ति की छवि अपनी आंखों में छुपा रखी थीं ।
कुछ दूर चलने पर एक प्याऊ पड़ी जहां अक्सर राहगीर अपनी थकान उतारने को बैठा करते थे,बह दोनो भी वहाँ बैठ कर सुस्ताने लगे।
अबे किशोर तू बालिका कक्ष की ओर क्यों गया था ,तुझे मालूम है उधर टीचर स्टाफ़ के अलाबा कोई भी लड़का उधर नही जाता है।
भास्कर उसे घूरता हुआ बोला।
भास्कर....... यार...तू मेरा ....लंगोटिया यार है अब तुझ से क्या छिपाना.... यार......वह .....क्या.... बताऊँ यार जब से मेने उस लढ़की को देखा है पता नहीं मुझे क्या हो जाता है।
अबे चुप ...बे ....,साले तू....,खुद मरेगा .....और मुझे भी मर....बायेगा.... जानता है ....बो लढ़की.....अबे, बेबकूफ , दिल भी आया तो.प्रिंसिपल की बेटी पर......।
अरे नही भाई....... अपनी ही कहेगा या फिर........,मेरी भी .....सुनेगा।
किशोर धीरे से बोला।
चल बक जल्दी।
भास्कर तीब्र स्वर में गुस्सा से नाक फुला कर बोला।
अरे वह बात नही है , जिसे तू समझ रहा है, वह तो मेरी और है कोई।
क्या बकता है .......तू ...होशो हबास में है।
अबे तू पढ़ने आता है या मुहब्बत करने ।
भास्कर चिहुँक कर बोला। ।
अबे यार घोंचू क्या तूने कभी किसी को प्यार किया है।
किशोर ने उसे देखते हुए कहा।
अबे यह तेरी उमर पढ़ने की है .....चल उठ घर चले भास्कर उसका हाथ पकड़ कर खींचता हुआ बोला।
किशोर उसके साथ अपने घर की तरफ जाने लगा।शेषांश आगे.... .. Written by H.K.Joshi
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