अनुच्छेद 09 मेरीं यादों के झरोखों से ---------------------------------------------------------------
किसोर क्या बात है ? ,बेटा ! जब से तुम कालिज से आये हो कुछ गुमशुम से बैठे हो।
किशोर की माँ ने उसे गुमसुम देख कर अचानक पूँछते हुए कहा।
..................................।
कोई जबाब नहीं दिया उसने।
क्या बात है किशोर बेटा ।
उसकी मां ने बेचैनी से उसकी ओर देखा।
...............................................।
लेकिन प्रतिक्रिया स्वरूप किशोर ने कोई गतिविधि नहीं की।
मां जी ने उसे पुना पुकारा।
क्या बात है हमें.......बताओ तो।
किशोर की मां उसके सिर के ऊपर हाथ फिराती हुई प्यार से बोली।
मां ssssमाँ ssssमाँ ssssमाँ ssss........माँ माँ माँ माँ........ ।
वह केबल इतना ही बोला और फिर गुमसुम होगया।
उस के बालों में उसकी मां वेचैनी से हाथ फेरती हुई कई बार उस से पूंछ्ती रही ,परन्तु उसके मुहँ से कोई स्वर ही नहीं निकला।
क्या बात है कुछ तो बोलो।
किन्तु किशोर उसी तरहअनमना सा लेटा रहा ,वह बोलना चाहते हुए भी कुछ नहीं बोला, ।
उसकी इस हरकत से उसकी मां और भी दुखी हो गई।
किशोर मन ही मन विचार कर रहा था कि माँ को वह अपनी इस उलझन को कैसे बताये ?
किन्तु वह लज्जा के कारण कुछ कह भी तो नहीं पा रहा था।
तभी उसकी मां ने पुन: उसको ढाँढस बढ़ाया।
किशोर,क्या आज तुम अपनी माँ को भी, अपनी कोई बात या कुछ भी परेशानी के बारे में नही बताओगे क्या?
मां ने धीमी और गम्भीर आबाज में उसके बालों में अपनी उँगलियों की कंघी करते हुये वत्सलता भरे शब्दों में कहा।
नहीं ,मां कोई बात नही,है।
किशोर नें कुनमुना कर दूसरी ओर मुहँ कर लिया।
तो फिर ? आज तू इतना चुपचाप क्यों है?।
कहीं कोई बात नहीं है माँ ।
वह हकलाते हुए बोला।
अगर कोई बात नहीं है तो फिर आज इतना खामोश और चुपचाप उदास बैठा क्यों है।
माँ उसके सिर को प्यार से सहलाते हुई बोली।
ओssss मां assess तुम भी ..कितनीं.....अजीब हो।
वह सकपकाता हुआ बोला।
किशोर ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
ठीक है,........कुछ भी मत बता....अपनी मां को।
मां उस से लगभग रूठती हुई सी बोली।
किशोर कुछ पल ऊपर से एकदम शान्ति रहा किन्तु उसके मन में असँख्य प्रश्नों का बवण्डर उठ रहा था जो बिल्कुल ऊपर से एकदम समुंदर की भाँति वाह्य रूप शांत दिखरहा....था। कुछ पलों तक वह अपनें अंदर घुमड़ते प्रश्नों को रोके रहा, जब वह नहीं रोक सका तो...,फिर आपनी माँ से सहसा किसी छोटे बच्चें की तरह लिपट गया।
मां,मां... आज मेरे सिर में वहुत .....तेज.... दर्द हो रहा है।
किशोर ने माँ को टालने के उद्देश्य से झूठ बोला।
उसकी माँ ने उसके माथे को छुआ और एक लंबी स्वांस ली।
किशोर ने अपना सिर मां की गोद में रख दिया, परन्तु वह फिर भी कुछ नही बोला।
कुछ पल खामोशी से यूँ ही बीते।
दोनों के मन में अलग अलग चिंतन ,मनन चल रहा था।
" कैसी विचित्र विडम्बना थी दोनों की,"
एक अपने पुत्र के उदासी का कारण जानना चाहती थी ?
तो दूसरा अपनी माँ से मन की बात बताना चाह कर भी नही बता पा रहा था ?
कुछ पल यूँ ही खामोशी से गुजरते रहे ,लेकिन दोनो का संशय अपनी अपनी जगह पर स्थिर था।
किशोर अपनी हर बात जो भी होती थी वह आज तक अपनी माँ के साथ अब तक शेयर करता रहा था।
" किन्तु आज वह, अपने मन की "वह" बात बतना चाहते हुय भी वता नहीं पा रहा था,।
और माँ.......,तो माँ ही........ है,? जो अपने संतति की हल्की से हल्की बैचैनी को तुरंत ना भांप ले तो वह माँ ही क्या ?
दोनो अपने अपने चिंतन में लीन , समय ख़ामोश पलों के साथ गुजर रहा था, और फिर आखिर जीत माँ की ही हुई थी,।
किशोर ने हिचकिचाते हुए अपनी माँ को देखा।
मन में वही अंतर्द्वंद,
लज्जा का विषय,
माँ क्या सोचेगी?
आदि ढेर सारे प्रश्न।
मां.... मां ...।
किशोर अस्पस्ट सा अपने आप से बड बडाया।
उसकी मां किशोर के चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
मां....,ओssssss... मां......।
वह अत्यंत धीमी आबाज में बोला।
किन्तु माँ तो आखिर मां ही थी, वह चुपचाप टकटकी बांधे उसके चेहरे के भावों को पढ़ती रही,।
किन्तु उसने अपनी ओर से कोई किशोर को उत्तर नहीं दिया।
बह अपने लाल को एक टक देखे जा रही थी।
ओ ...मां ....मेरी माँ ..... तू ....नाराज है।
किशोर मां का हाथ पकड़ते हुए बोला।
बेटा , अब तुम कितना बदल गए हो ?।
मां एकदम शांत सधे स्वर में बोली।
मां सच में आप नाराज हो गयी हो।
बह मां से और भी बचपने की तरह लिपटता हुआ बोला।
किन्तु बह उसी तरह चुप चाप वहीं बैठी रही ।
वह जानती थी उसका लाड़ला जरुर अपने दिल की बात उसे अब जरूर बतायेगा।
ओ मां .....अब... मैं......क्या करूँ।
किशोर का कंठ अबरुद्ध सा हो चुका था।
उसकी आंखों से आँसुओं की बून्दें स्वतः ही बहने लगीं।
मां ने उस की पीठ स्नेह के साथ थपथपाई ।
बोल ना क्या बात है ?।
माँ ने अब स्पस्ट ही पूछा।
मां ......मां मुझे लज्जा आ रही है, आप को बताते हुये।
पुत्र क्या पहले कभी संकोच किया करते थे तुम।
माँ की ओर से बेबाक प्रश्न था।
नहीं माँ बो बात... बो बात.तो अअअअअअ लग...।
वह कहते हुए अपनी जुबान की लडखडाहट को नहीं रोक सका, अता वह पुना बोला।
जी ...वो .... वो.....आज मेने अपनी कालिज .....में एक लढ़की को देखा।
बह धीमे से बोला।
मां उसके चेहरे को देखने लगी।
मां ...वह ...वहुत ....अच्छी थी, माँ मै उसे देखता.... रह गया।
किशोर ने एक लंबी स्वांस खींच कर अपनी बात पूरी एक बार में कह डाली ,और माँ की प्रतिक्रिया का इन्तज़ार करने के लिए कुछ देर नीचे लज्जा से सिर झुकाए कुछ पल रुका रहा।
माँ जान चुकी थी उसके किशोर की किसोराबस्था की क्या समस्या है, अतः वह क्यों अपने हृदय के भावों को छुपा रहा था ,अता वह हल्का सा मुश्कराई और पूँछा।
फिर क्या हुआ ?
मां उसे हल्का घूरते हुई बोली।
मां तू .....ही ....बता ......ये ...सब ...मेरे साथ....ऐसा क्यों हुआ।
किशोर अपनी माँ से कोई भी बात छुपाना गलत है।
माँ ने धीमे से कहा।
मां तेरी सौगंध ,तू मेरी अच्छी मां है ना।
और आगे बोल।
मां धीमी आबाज में बोली।
बह बहुत सुंदर और अच्छी है ।
अच्छा.... और...... आगे......।
मां .....उसकी .....आबाज .....मेरे कानों में..जब भी.. सुनाई तो देती ... है... पर मेरी ......समझ .में...नही आती।
किशोर... अब तुम बड़े हो रहे हो ? देखो कोई ऐसा कदम मत उठाना,जिस के कारण तुम्हे और तुम्हारे पिता जी को शर्मिंदा होना पड़े।
मांजी ने उसे नेक सलाह दी।
मां .....प्लीज....तुम निश्चिंत रहो ,मैं तुम्हें बचन देता हूं,कि " मै कोई ऐसा कार्य नही करूँगा जिस के कारण मां और पिताजी को शर्मिंदा होना पड़े "।
किशोर ने अपनी माँ के सिर पर हाथ रखते हुए सौगन्ध खा कर कहा।
मुझे अपने बेटे से ठीक यही उम्मीद थी चलो , अब जल्दी से हाथ मुहँ धो कर नास्ता कर लो ।
वह उसके सिर पर हाथ फेरती हुई बोली।
किशोर उठ कर बाथ रूम की तरफ बड़ा।.....क्रमशा ...आगे के अंक में....।
Written By H.K.Joshi