अनुच्छेद 58 मेरी यादों के झरोखों से
______________________________________________________________________________ पिछले अंक में आपनें पढ़ा कि मधु के भाई इंद्रप्रकाश और उसकी भाबी इन्द्रा ने निकट पुलिस स्टेशन में जाकर एफ.आई.आर.अनन्त और मार्था के खिलाफ दर्ज करा दी थीं।
घरेलू हिंसा एवं महिला उत्पीड़न को लेकर,डॉक्टरी मुआयने में मधु के बदन पर पड़े नीले चोट के निशान, उससे की गई क्रूरता की कहानी किसी हद तक चीख चीख कर स्पस्ट बता रहे थे।
पुलिस स्टेशन में इंद्रप्रकाश द्वारा केस अनन्त और मार्था दोनों के खिलाफ़ दर्ज हो चुका था,।
मधु को उसके भाई और भावी को सौप दिया गया,केस की सुनबाई अदालत में दिल्ली की महिला सैल के हस्तक्षेप करनें से फ़ास्ट ट्रैक अदालत में प्रभावी ढंग से शुरू हो चुकी थी।
मिस्टर अनन्त और उसकी सेक्रेट्री मिस मार्था निजी जमानत पर छूट गए थे।
मधु ना चाहते हुए भी फिर एक बार फिर, अपने पिता के उसी गाँव और अपने बचपन के घर के आंगन में (अपने पिता जी के यहां) पुनः आ चुकी थी।
वस अंतर इतना था कि वह अब कुमारी के बजाय उसके नाम पर श्रीमती का स्टिकर हमेशा के लिय चिपक चुका था।
भारत में अधिकांशतया जो माता पिता अपनी अविवाहित पुत्री के प्रति , साथ रहते हुए, उस समय लड़की से जो सहानुभूति का व्यबहार करते हैं , ठीक उस लड़की की शादी और ससुराल पक्ष से सम्बन्ध खराव होनें पर शादी के बाद विपरीत स्थिति में ,वह पहिलें जैसा व्यबहार नहीं कर पाते ,।
वह पुत्री के साथ उसे सहायता तो करतें हैं पर उनका अंदाज उस शादी शुदा लड़की से एक दम उदासीन और लापरवाह ब्याबहार क्यों हो जाता है,?
जो उनकी अपनी बेटी भी है, उसी लड़की के प्रति, क्या उनका दायित्व उसके विवाह तक ही सीमित था या फिर उनकी सोच का बदलाव है,?
क्या विवाह के बाद उन माता पिताओं को अपनी जिम्मेदारी से बास्तब में मुक्ति मिल जाती है, ?
क्या उनके कर्तब्य की इतिश्री होगई ?अपने कर्तब्य बोध से?
और अगर यह सत्य है तो मैं ऐसे सामाजिक चेतना की मैं कठोर शब्दों में भ्रत्सना करता हूँ ,यहीं कारण है कि वह लड़कियाँ अपनें माँ पिता ,और उस समाज से एकदम कट कर रहजाती है ।
वह गुमनामियों में ऐसी लड़कियाँ, कुण्ठित होकर छिप जातीं है।
बस यहीं से शुरू होता है उस विवाहिता लड़की के जीवन की त्रासदी का नया दौर,घर परिवार,मुहल्ला,गांव पीहर, रिश्तेदारी आदि में ही नही बल्कि समाज की सोच के रुख का अंतराल दृष्टिगोचर होने लगता है।
कैसी विडम्बना है यह भारतीय समाज की ?.....उस समाज की जिसे हम सभ्य इंसानों का समाज कहते है ,मधु भी इसी समाज की एक इकाई थी,वह एकांत में घण्टो बैठी रहती ,मन मे विचारों के असंख्य झंझावात प्रबाहित होते रहते ।
वह कमरा जो शादी से पहिले कभी उसका हुआ करता था आज उसमें मधु के छोटे भाई प्रेम प्रकाश की पत्नी का बेड रूम बन चुका था।
जैसा कि आमबात है, शादी के बाद भारतीय लड़की अपने ही घर में मेहमान हो जाती है,जो भाई बहिन एक साथ संग पले,बड़े हुए उनकी सोच भी बदल जाती है उसके प्रति, वह सोचते है कि वहिंन तो दो दिन रह के चली जायेगी और तब तो हद हो जाती है जब वही बहिन अपने ससुराल को छोड़ कर अपने मायके कुछ दिनों को विताने हेतु अपने पीहर में आकर रहने लगे,तब आरम्भ होता है वह हिराक,श्यान का सिलसिला ,महिला वर्ग में तो यह क्रिया अधिक तेजी से होती है,और यही सब हुआ मधु के साथ भी ,।
एक दिन,वह कमरे में बैठी थी इंद्रा मधु के बालों में तेल डाल कर उसकी चोटी बना रही थी कि प्रेम की दुल्हन जो बरेली की रहने बाली थी,वह इंद्रा से अधिक तेज तर्रार थी,अतःअपने कमरे में मधु को देखकर उसके मन मे अक्सरअपनी ननद मधु के प्रति कुछ कुटिल भाव जाग्रत हो जाया करते और फिर वह उसको कोई भी वहांने नीचा दिखाने से नही चूक ती,और आज भी बही हुआ जब उसने कमरे में प्रवेश किया तो वह मधु से बोली,
दीदी आप इतना सजधज कर किसे दिखाओगी।
अनु अपनी मधुर आवाज में बोली। मधु ने उसकी बात अनसुनी कर दी,इंद्रा को भी अपनी देवरानी की टिप्पणी उस समय के लिहाज से भद्दी लगी,किन्तु वह कुछ न बोली,अतः उसने उसके बाल सम्भालने की क्रिया तेज गति से प्रारम्भ करनी शुरू की।
इंद्रा तेजी से उसके बाल सम्भारने लगी वह जानती थी कि मधु जबाब नहीं देगी उसे ,किन्तु हर बात को मधु अपने सीने से लगा लेती है,और फिर अंदर ही अंदर एक गीली लकड़ी की भांति तिल तिल कर जलती सुलगती रहती,अतः बात आगे न बड़े इस लिये वह मधु के साथ उठ कर खड़ी हुई और बोली।
चलो हमारे कमरे में वहां बड़ा शीशा में देखकर अपनी चोटी सही कर लेना और मुझे भी अब थकान हो चली है अतः मैं अब लेटना चाहती हूं।
इंद्रा ने बहाना बनाया।
जी ...भाभी..... मां।
और मधु भी अपनी छोटी भाबी से उलझने के मूड में ना थी,अतः जल्दी उठ कर अपनी भावी मां के साथ जाने लगी।
अरे बैठो दीदी, आप तो हमारे आते ही चली जाती हो, कम से कम हमसे भी बात करलिया करो हम भी तो तुम्हारी छोटी भाभी है।
वह मधु का हाथ पकड़ कर नींचे बिठाती हुई बोली।
आप ,ऐसी बात नहीं करें छोटी भाबी, अब आप दोनों ही तो है हमारे ऊपर ,पर मुझे कुछ काम याद आ गया है भाबी जी प्लीज जाने दीजिये ।
मधु धीरे से बोली।
इंद्रा बिना कुछ बोले वहां से पहले ही चली गई थी।
देखो ननद जी जब जीजाजी आये तो आप तुरंत उनके संग चली जाना, क्यों कि आपकी बेहतरी इसी में है।
ऐसा क्यों भाबी जी आपको पता है अब हम परित्यक्ता और पराश्रित हैं,।
मधु ना चाहते हुए भी बोल पड़ी।
हम इस लिए ही तो आपको यह समझा रहें हैं कि यह मर्द जाति ऐसी ही है,पता नही कब कहाँ मुहं मार बैठे।
आपको पता है भाबी की हम अदालत द्वारा अपनी इच्छा से अनन्त को छोड़कर यहाँ आचुके हैं,फिर भी .......आप यह सलाह ....हमें...दे रहीं हो।
मधु ने नम्रता से कहा।
अरे तो इस से क्या है,बात तो सत्य है,इन लोगों को जितना आप जितना ढील दोगी,वह उतने ही छुट्टा साँड़ की तरह इधर उधर मुहूं मारते रहेगें ,इसलिये तो कहती हूँ, जब भी तुम जाना चाहो तो निसंकोच यहाँ तो चली जाना।
वह बोली।
पर भाबीजी आपको मेरे साथ हुई ज्यादती की पूरी जानकारी नही है आपको शायद।
मालूम है पर तुम्हारा भविष्य यहाँ उज्ज्वल नहीं है।
फिर भी आप...जानते हुए ऐसा कहरहीं हैं.....।
मधु कहते कहते चुप हो गई।
भूल जाओ पुरानी यादें ,इसी में भलाई है।
लेकिन भाबीजी,मुझे वह तहखाने की यातना अभी भुलाई नही गई, और शायद भूल भी ना पाऊं। मधु को बीती बातों की याद कर झुरझरी सी आने लगी थी, वह कुछ क्षण रुक कर पुनः बोली। उस दुर्घटना जो मेरे साथ घटी उसे कैसे भुला दूं, उस दृश्य....को ,.......उफ.....भुलाए नहीं ....भूल पाती... मधु की रूह भी कांप उठी थी उस घटना को पुनः याद करने पर।
तभी इंद्रा की आबाज उसके कानों में पड़ी।
अरे कहाँ रुक गई हो मधु, यहाँ आजा ओ,।
ओह, सॉरी भाबीजी आपका समय बर्बाद किया।कहती हुई मधु उस कमरे से निकल गई,वह इंद्रा के पास जाकर गुमसुम खड़ी हो गई।
आओ मेरे पास बैठो ....।
इंद्रा उसे प्यार से देखती हुई बोली।
भाबी माँ....भाबी माँ......माँ.ssssssss....वह पसीने से सराबोर हो चुकीं थी..उसका.पूरा बदन कांप रहा था।
इंद्रा ने मधु की ओर ध्यान से देखा,और तुरन्त उसे अपनी बांहों की गिरफ्त में ले लिया बरना वह अव तक जमीन पर गिर गई होती,इंद्रा ने उसे अपने बेड पर लिटा दिया और स्वयं उसकी हवा अपने साड़ी के आंचल से करने लगी,कुछ समय बाद मधु ने कपकँपाती आंखों से इंद्रा को देखा,और स्वतः ही मधु की आँखों से आँसू निकल ने लगे,वह उठने को हुई,किन्तु इंद्रा ने उसे अपनी गोद से उठने न दिया।
भावी माँ हम कितने बदनशीब है,जो आपको भी कभी दो पल सुख ना दे पाए।
क्या बोलती हो....भला कोई संतान अपनी माँ को दुख कैसे दे सकती है भला।
इंद्रा भर्राए गले से बोली।
भावीमाँ एक बात पूंछू।
बोलो।
मैने आपको ही माँ माना है।
तू कहना क्या चाहती है।
इंद्रा ने उसे कस कर अपने सीने से सटा लिया।
मां आपको मैने कभी सुख नहीं दिया,क्या मैं मनहूंस हूँ।
क्या बोलती हो,अब तुम्हे इतनी भी तमीज नहीं जो आया वहीँ अनापशनाप मुहँ से बोल रही हो,।
नहीं माँ यही सच है।
वह विलखते हुए बोली।
मधु ,मैं तुझे वहुत मारूंगी,।
इंद्रा का कण्ठ रुंध गया,वह उसे समझाते समझाते स्वम् विलख विलख कर रोने लगी।
तू क्यो ऐसा सोचती है।
इंद्रा ने अपने आंसुओं को अपनी साड़ी के आँचल से पौंछा।
छोटी भाबी कहती हैं कि मुझे अनन्त के साथ अभी भी रहना चाहिए।
नही, कभी नही,मेने तेरी वह स्तिथि देखी है,क्या कमी रह गई थी तेरे मरने में।
काश मैं मर गई होती।
वह सिसकते हुए रुँधे कण्ठ से बोली।
तुम ऐसे क्यों बोल रही हो ,तुम्हे हमारी जरा भी परबाह नही।
ऐसी बात नही भाबीमां।
फिर यह सब क्यों कह रही हो।
मधु कुछ पल शांत रही वह, अब तक इंद्रा की गोद मे सिर रखे लेटी थी,इंद्रा उसके मनो भाव को पढ़ने का असफल प्रयास करती रही।
भाबी मां क्या मैं,वापिस अनन्त के पास चली जाऊँ।
यह बात किसने तुम्हारे दिमांग में डाली है।
इंद्रा ने मधु से पूँछ ही लिया।
मधु एक पल चुप रही।
क्या तुम से यह बात तुम्हारी छोटी भावी ने कही थी।
इंद्रा ने पुनः पूँछा।
वह फिर भी चुप रही।
इंद्रा समझ चुकी थी ,यह सब उसकी छोटी देवरानी की गंदे दिमांग की उपज थी।
अब तुम कभी भी अपनी छोटी भावी के कमरे में नहीं जाओगी,जिससे वह तुम्हारे दिमांग में फिजूल की बातें ठूंस सके।
इंद्रा रुष्ट होकर बोली। ठीक है भाबीमाँ आज के बाद मैं कभी भी उनके कमरे में नहीं जाऊंगी.............।
.शेशांक....आगले अंक में.......।
Written by H.K.Joshi. P.T.O.